विचार / लेख

हिंदी भाषा की लोकप्रियता में फिल्मों का अवदान
14-Sep-2021 12:59 PM
हिंदी भाषा की लोकप्रियता में फिल्मों का अवदान

-बिकास के शर्मा

विगत एक सौ दस वर्षों की अपनी यात्रा में भारतीय सिनेमा विशेषकर हिंदी फिल्मों ने स्वदेश के साथ-साथ विदेशों में भी गाढ़ी लोकप्रियता हासिल की है। भारत में बनाने वाली हिंदी फिल्में संयुक्त अरब, यूनाइटेड किंगडम, अमेरिका, पाकिस्तान, श्रीलंका, मॉरीसस आदि देशों में हिन्दी भाषा को प्रोत्साहित करती रहीं हैं और उन देश की सरहद के पार वहां के लोगों के मनोरंजन का एक प्रचलित साधन बनकर सामने आईं हैं। भारत जैसे बहुलतावादी देश में तो करीब-करीब सभी राज्यों में हिन्दी फिल्में देखी जाती हैं और उनके प्रमुख अभिनेता, अभिनेत्रियों को जनता काफी पसंद भी करती है। इन फिल्मों ने हिन्दी भाषा के प्रचार-प्रसार में काफी योगदान दिया है। भारत की प्रथम सवाक फिल्म 'आलमआरा' का निर्माण एक गैर हिंदी भाषी नागरिक आर्देशिर ईरानी ने वर्ष 1931 में हिंदी भाषा में किया था।

 

अनुमान लगाएं कि श्री ईरानी से उनके हिंदी में फिल्म बनाने के कारणों को पूछा जाये तो निश्चित रूप से वो कहते कि हिन्दी तो हिन्दुस्तान के जनमानस की भाषा है। बहरहाल वर्तमान में हिन्दी फिल्में जितनी लोकप्रिय हैं शायद ही किसी अन्य भाषा की फिल्में होंगी। विश्व में बनने वाली हर चौथी फिल्म हिन्दी भाषा की होती है। हमारे देश में 60 प्रतिशत फिल्में हिन्दी भाषा में बनती हैं और वे ही सर्वाधिक चर्चा का विषय होतीं हैं। क्षेत्रीय भाषा की फिल्में विशेषकर असमी, बांग्ला, तेलुगु, मलयाली, भोजपुरी आदि भाषाई फिल्में अपने क्षेत्रों में ही लोकप्रियता के शिखर को छूतीं हैं वहीँ इसके बरअक्स हिन्दी भाषा में बानी फिल्में समूचे देश में विभिन्न भाषाई दर्शकों द्वारा देखी जाती है। इसका एक कारण यह भी है कि हिन्दी हमारी संपर्क भाषा है, जो अन्य भाषाओं के संग जुड़ने के सेतु का कार्य कुशलतापूर्वक करती है।

कश्मीर से कन्याकुमारी तक हो अथवा गोवा से असम तक, हिन्दी लिखने, पढ़ने, बोलने वाले मिल ही जाएँगे। कुछ सीमा तक दक्षिण में हिन्दी का विरोध है, लेकिन हिन्दी फिल्में लोकप्रिय वहां भी हैं। खासकर तमिलनाडु में हिन्दी भाषा का विरोध देखा जाता है लेकिन वहीँ के शहरों मदुरै, चेन्नई और कोयम्बटूर में रमेश सिप्पी द्वारा निर्मित प्रसिद्द हिन्दी फिल्म 'शोले' ने स्वर्ण जयंती मनाई थी। 'शोले' के अलावा 'हम आपके हैं कौन', 'दिलवाले दुल्हनिया ले जाएँगे', 'बॉर्डर', 'दिल तो पागल है' भी पूरे देश में सफल रहीं। 'गदर' और 'लगान' जैसी कितनी ही फिल्में आई हैं जिन्होंने पूरे देश में सफलता के झंडे गाड़ दिए। हिन्दी फिल्मों में अहिन्दी भाषी कलाकारों के योगदान के कारण भी हिन्दी को अहिन्दी भाषी प्रांतों में हमेशा बढ़ावा मिला है।

सुब्बालक्ष्मी, बालसुब्रह्मण्यम, पद्मिनी, वैजयंती माला, रेखा, श्रीदेवी, हेमामालिनी, कमल हासन, चिरंजीवी, एआर रहमान, रजनीकांत आदि प्रमुख सितारे हिन्दी में भी उतने ही लोकप्रिय रहे हैं जितने की अपनी क्षेत्रीय भाषाओं में। बांग्ला बोले जाने वाले बंगाल प्रदेश से मन्ना डे, पंकज मल्लिक, हेमंत कुमार, आरसी बराल, बिमल रॉय, शर्मिला टैगोर, उत्त कुमार, राखी गुलजार सहित सिक्किम के डैनी डेंग्जोग्पा और प्रसिद्ध संगीतकार सचिन देवबर्मन तथा राहुल देव बर्मन त्रिपुरा से ताल्लुकात रखते हुए भी हिंदी भाषियों में काफी लोकप्रिय रहे और आज भी हैं। इसी प्रकार हिन्दी फिल्मों के लोकप्रिय कलाकार राजकपूर, धर्मेद्र, प्रेम नाथ, जितेंद्र आदि पंजाबी होने के बावजूद हिंदी के साथ-साथ दक्षिण में भी पहचाने और माने जाने वाले नाम हैं।

यहाँ तक कि राजकपूर की 'आवारा' और 'श्री 420' ने रूस में लोकप्रियता के झंडे गाड़े थे और वहां के लोग राज कपूर की एक झलक पाने को बेताब रहते थे। सदी के महानायक अमिताभ बच्चन, माधुरी दीक्षित, लता मंगेशकर एवं हिन्दी फिल्मों के अन्य कई कलाकार सारी दुनिया के बड़े-बड़े शहरों में अपने रंगमंचीय प्रदर्शन सफलतापूर्वक कर चुके हैं। हिंदी फिल्मों के गीतों की जनप्रियता का अंदाजा लगाने के लिए यह पर्याप्त है कि आॅल इंडिया रेडियो के उर्दू कार्यक्रमों के फर्माइशकर्ता 90 प्रतिशत पाकिस्तानी श्रोता होते हैं। पाकिस्तानी नागरिक मेहँदी हसन, गुलाम अली और अदनान सामी के हिन्दी गीत हमारे मस्तिष्क पर अमिट छाप छोड़ चुके हैं। उल्लेखनीय है कि अमेरिका में हिंदी फिल्मी गीतों के माध्यम से पढ़ाई जाती है और प्रवासी भारतवंशी हिंदी की अलख और संस्कृति को जगाए हुए हैं। वहां पर हिंदी के विकास में चार संस्थाएं प्रयासरत हैं, जिनमें अखिल भारतीय हिंदी समिति, हिंदी न्यास, अंतरराष्ट्रीय हिंदी समिति प्रमुख हैं। अमेरिका की भाषा नीति में दस नई विदेशी भाषाओं को जोड़ा गया है, जिनमें हिंदी भी शामिल है।

हिंदी शिक्षा के लिए डरबन में हिंदी भवन का निर्माण और सामुदायिक रेडियो के माध्यम से सोलह घंटे हिंदी में सीधा प्रसारण कई लोगों के लिए कौतुहल का विषय हो सकता है। मॉरीशस में तो हिंदी का वर्चस्व ही स्थापित है तथा उस देश का संकल्प हिंदी को विश्व की सर्वोच्च भाषा बनाने का है। क्या ऐसा कोई संकल्प भारत में हिंदी की बिंदी कहलवाने वालों अथवा हिंदी के भरोसे चलने वाले मुंबई फिल्म उद्योग से जुडी हस्तियों को नहीं लेना चाहिए?
(लेखक युवा पत्रकार हैं)

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