विचार / लेख
-अशोक तिवारी
पिछले लगभग 5 वर्षों से जब से मैंने छत्तीसगढ़ से अन्यत्र जाकर बस गए छत्तीसगढ़िया लोगों के बारे में कुछ जानने समझने की कोशिश की है, तब से ऐसा कुछ हुआ कि यह इच्छा लगातार बढ़ती ही गई और उसका दायरा बहुत व्यापक होने लगा। इस क्रम में मैंने असम में रहने वाले छत्तिसगढ़िया लोगों के साथ संपर्क कर उनके बीच क्षेत्रकार्य करते हुए एक प्रारंभिक किताब की भी रचना की है। ज्ञातव्य है कि असम में लगभग 20 लाख छत्तिसगढ़िया निवासरत हैं। मेरी इस शुरुआत के बहुत अच्छे परिणाम आये हैं। अब छत्तीसगढ़ में लोग अपने असम में रहने वाले बांधवों के बारे में जानने लगे हैं औऱ वहाँ इस साल हुए विधानसभा के निर्वाचन के दौरान दो राष्ट्रीय दलों ने उनकी वोट शक्ति को रिझाने छत्तीसगढ़ से दर्जनों लोग प्रचारक भेजे थे। हमारे असमिया छत्तीसगढ़ी भाइयों का भी अब छत्तीसगढ़ के लोगों से लगातार संपर्क होने लगा है और वे अब सोसल मीडिया के माध्यम से नियमित रूप से राज्य और लोगों से जुड़े रहते हैं। उनके साथ मेरा संपर्क सतत बना हुआ है। इसी क्रम में असम के अतिरिक्त अन्य राज्य में खासकर उत्तर पूर्व में रहने वाले छत्तीसगढ़िया लोगों से संपर्क करने की मेरी कोशिश जारी है।
इस बीच एक महत्वपूर्ण बात यह हुई कि मुझे यह जानकारी प्राप्त हुई कि आज से लगभग 150 वर्ष पहले छत्तीसगढ़िया लोगों को अंग्रेजों द्वारा चाय बागानों में काम करने के लिए जब असम ले जाना आरंभ या गया किया गया, उस दौर में अंग्रेज अपने सभी उपनिवेशों में वहां की संपदा का दोहन करने के लिए त्वरित कार्यवाही कर रहा था जिसके अंतर्गत कृषि, बागवानी और उद्योग सब कुछ सम्मिलित थे। भारत में चाय बागानों की शुरुआत भी अंग्रेजी शासनकाल में हुई। अंग्रेज सरकार ने बहुत कम मूल्य में या निशुल्क जमीन देकर असम में चाय उगाने के लिए अंग्रेजों को आमंत्रित किया और साथ ही दूसरे अनेक उपनिवेशों में गन्ना, रबर आदि बागवानी के लिए भी अंग्रेजों ने अपना कारोबार बढ़ाया। इन सभी कामों में अंग्रेजों को मेहनतकश मजदूरों की आवश्यकता थी जिसके लिए उन्होंने भारत सहित अपने अन्य उपनिवेशों से लोगों को इंडेंचर्ड लेबर के रूप में ले जाना शुरू किया। किंतु अंग्रेजी सत्ता वाले देशों में भारतवर्ष एक ऐसा देश था जहां से सर्वाधिक संख्या में लोगों को इंडेंचर्ड लेबर के रूप में अपने अन्य उपनिवेशों में ले जाया गया। कालांतर में वे लोग उन्हीं देशों में बसते गए और वही के स्थाई निवासी हो गए। 1834 से लेकर 1916 तक अंग्रेजों द्वारा ब्रिटिश गयाना, त्रिनिडाड, जमैका, नटाल, मॉरीशस, सूरीनाम, ग्रेनाडा, पूर्वा अफ्रीका, फिजी, सेसल्स इत्यादि देशों में ले जाने का कार्य किया। इन देशों में काम करने गए लाखों लोगों में अधिकतर इंडेंचर्ड लेबर उत्तर प्रदेश और बिहार से गए किंतु उसके साथ ही कुछ संख्या में देश के दूसरे हिस्सों से भी मजदूर उन देशों में गए। इनमें से एक संदर्भ ऐसा भी प्राप्त हुआ है जिसमें यह ज्ञात होता है की सन उन्नीस सौ में छत्तीसगढ़ से भी लोग गन्ने के खेत में काम करने के लिए फिजी गए थे। उनके वहां से लौटने के बारे में तो कोई जानकारी नहीं मिली है तथा यह अनुमान लगाया जा सकता है कि वे लोग भी वहां पर स्थायी रूप से बस गए होंगे। ब्रज विलास लाल जो स्वतः एक निवासी प्रवासी भारतीय हैं तथा जिन्होंने फिजी के प्रवासी भारतीयों पर महत्वपूर्ण शोध कार्य किया हुआ है उनके द्वारा प्रकाशित पुस्तक से यह जानकारी मिलती है कि छत्तीसगढ़ के रायपुर, बिलासपुर, रायगढ़ और सरगुजा जिलों से लगभग 980 लोग फिजी गए जिसमें सर्वाधिक संख्या रायपुर से गए लोगों की 744 थी। वे लिखते हैं कि उस दौर में मध्य प्रदेश के अन्य क्षेत्रों जिसे तब मध्य प्रांत कहा जाता था, वहां से भी लोग गए थे। उनके पुस्तक में उल्लेख है कि तत्कालीन मध्यप्रान्त से 2802 लोग फिजी गए थे। इनमें छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश के अन्य क्षेत्रों से यह जाने वालों की संख्या 2450 थी तथा शेष विदर्भ क्षेत्र के नागपुर, भंडारा आदि जिलों से गए थे। मध्य प्रदेश के जिन तत्कालीन जिलों से लोग फिजी गए वह जिले हैं बैतूल, बालाघाट, छतरपुर, छिंदवाड़ा, उज्जैन, दमोह, होशंगाबाद, जबलपुर, सागर, भोपाल, ग्वालियर, इंदौर, मंडला, रीवा, सिवनी, नरसिंहपुर, आदि। भारत से सन 1879 से लेकर 1916 तक 37 वर्षों में 60965 लोग मजदूर के रुप में फिजी गए। उनमें यदि तब की स्थिति देखी जाए तो छत्तीसगढ़ से गए लोगों की संख्या लगभग 1.60% थी और यदि यह बात पूरे मध्यप्रदेश से गये लोगों के संदर्भ में देखें तो यह संख्या लगभग 4% होती है। मैंने असम में पाया वहां मध्य प्रदेश के दूसरे जिलों जिसमें सिवनी, बालाघाट, मंडला, छिंदवाड़ा, रीवा आदि सम्मिलित हैं से जो लोग काम करने के लिए गए हैं और वहीं बस गए हैं वे भी अपने आप को छत्तीसगढ़ी कहते हैं तथा असम के छत्तीसगढ़िया ही उनके सबसे समीपवर्ती लोग हैं, और उन्होंने छत्तीसगढ़ी को ही अपनी बोलचाल की भाषा के रूप में स्वीकार किया हुआ है।संभव है कि यदि छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश के अन्य जिलों से गये सभी लोग फिजी में भी एक दूसरे के निकट या संपर्क में रह रहे हों तो शायद वहां पर भी सभी के बीच छत्तीसगढ़ी प्रचलित हो सकती है, क्योंकि उन लगभग ढाई हजार लोगों में छत्तीसगढ़ी बोलने वालों की संख्या सर्वाधिक अर्थात करीबन एक हज़ार थी।
वर्तमान में फिजी की कुल जनसंख्या लगभग 8 लाख है जिसमें 40% से करीब लोग भारतवंशी हैं।यदि 1916 की भारतीयों की संख्या में छत्तीसगढ़ के लोगो की संख्या को आधार माना जाए तो अभी की वहां पर भारतीयों की संख्या जो 3 लाख से ऊपर हो सकती है, में 1916 के आधार पर 1.6 प्रतिशत की दर से छत्तीसगढ़ी लोगों की संख्या अभी लगभग 5 हज़ार हो सकती है, और यदि मध्यप्रदेश से गये सभी लोगों के संदर्भ में देखें तो यह लगभग 12 हज़ार आंका जा सकता है।
सभी केरेबियन देशों, मॉरीशस और सूरीनाम इन सब के प्रवासी भारतीयों के बारे में यह वर्णित है कि वहाँ अधिकांश लोग उत्तर प्रदेश तथा बिहार और बाकी अन्य राज्यों से गये थे जिनमें कुछ संख्या में लोग मध्यभारत से भी थे।मेरा अनुमान है कि इन मध्भारत से गये लोगों में छत्तीसगढ़ के लोग भी रहे होंगे। छत्तीसगढ़ के लोगों में आजीविका के लिए अन्यत्र जाने का विवरण हमे 1875 से ही मिलता है जिसके असम और फिजी महत्वपूर्ण उदाहरण हैं। जिस तरह से हमारे देश के अन्य अनेक राज्यों में वहाँ की प्रवासी लोगों के लिए प्रवासी मंत्रालय या विभाग की स्थापना की है उसी तरह से छत्तीसगढ़ में भी एक प्रवासी छत्तीसगढ़िया विभाग की स्थापना की जानी चाहिए जो इन ज्ञात-अज्ञात कड़ियों को जोड़े तथा छत्तीसगढ़ के एक समृद्ध सांस्कृतिक इतिहास की रचना करे और छत्तीसगढ़ से बाहर देश-विदेश में रहने वाले छत्तीसगढ़ के लोगों के लिए नवीन सांस्कृतिक सेतु का निर्माण करे।