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भारत में महामारी के दौरान भी लाखों घरों से बेदखल किए गए
15-Sep-2021 7:06 PM
भारत में महामारी के दौरान भी लाखों घरों से बेदखल किए गए

कोरोना महामारी के दौरान पूरे भारत में ढाई लाख लोगों को उनके घरों से बेदखल किया गया. अधिकार कार्यकर्ताओं का कहना है कि और तेजी से आर्थिक विकास के लिए अधिकारियों की नजर परियोजनाओं के लिए लाखों आवास को उखाड़ने पर है.

  (dw.com)

दिल्ली स्थित अधिकार समूह हाउसिंग एंड लैंड राइट्स नेटवर्क (HLRN) के मुताबिक मार्च 2020 से जुलाई 2021 तक अधिकारियों ने 43,000 से अधिक घरों को ध्वस्त किया. और हर घंटे लगभग 21 लोगों को उनके घरों से बेदखल किया जा रहा है.

नेटवर्क ने अपनी सालाना रिपोर्ट में कहा कि लगभग सभी मामलों में अधिकारियों ने पर्याप्त नोटिस देने सहित उचित प्रक्रिया का पालन नहीं किया. बेदखल किए गए अधिकांश लोगों को सरकार से मुआवजा नहीं मिला है.

HLRN की कार्यकारी निदेशक शिवानी चौधरी के मुताबिक, "इस घातक महामारी के दौरान जब लोग जीवित रहने के लिए बहुत संघर्ष कर रहे थे तब आवास से बेदखली और तोड़फोड़ के कार्य ने गंभीर मानवाधिकार और मानवीय संकट में योगदान दिया है." हालांकि भारत में बेदखली पर कोई आधिकारिक डेटा नहीं है.

दिल्ली में जहां पिछले एक साल में हजारों लोगों के मकान उजड़ गए. दिल्ली विकास प्राधिकरण में भूमि प्रबंधन इकाई के निदेशक अमरीश कुमार के मुताबिक अधिकारियों ने केवल "अवैध अतिक्रमण" को ध्वस्त किया. कुमार के मुताबिक, "वे सरकारी जमीन पर मौजूद थे, जो जनता के लिए है."

संकट में गरीब

आवास विशेषज्ञों का कहना है कि दुनिया भर में बेघर लोग और झुग्गी-झोपड़ियों में रहने वालों को कोरोना वायरस को रोकने के लिए लगाए प्रतिबंधों का खामियाजा भुगतना पड़ा है. ऐसे इलाकों में रहने वाले लोगों में संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है. जुलाई में संयुक्त राष्ट्र में मानवाधिकार विशेषज्ञों ने भारत सरकार को महामारी के दौरान बेदखली समाप्त करने के लिए अपील की थी.

आंकड़ों के मुताबिक भारत में 40 लाख से अधिक लोग बेघर हैं. लगभग साढ़े सात करोड़ लोग मलिन बस्तियों और शहरी बस्तियों में रहते हैं.

भारत सरकार शहरी क्षेत्र के गरीब लोगों के लिए 2022 तक दो करोड़ और ग्रामीण क्षेत्र के गरीबों के लिए तीन करोड़ आवास देने का लक्ष्य कर रही है.

एचएलआरएन के मुताबिक भारत में लगभग 1.6 करोड़ लोगों पर बेदखली और विस्थापित होने का खतरा है, जिसमें लगभग 20 लाख वे लोग शामिल हैं जिनके वन भूमि के दावों को खारिज कर दिया गया है.

एए/सीके (थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन)

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