सामान्य ज्ञान
दांतों का मंजन और दूसरी दवाइयां तो नीम से बनती आई हैं, लेकिन भारतीय डॉक्टरों का दावा है कि इससे कैंसर का इलाज भी संभव है। चूहों पर प्रयोग के बाद उनका उत्साह और बढ़ा है।
कोलकाता स्थित चितरंजन नेशनल कैंसर इंस्टीट्यूट (सीएनसीआई) के वैज्ञानिकों ने नीम को कैंसर जैसी जानलेवा बीमारी के खिलाफ लडऩे का एक असरदार हथियार बनाने का प्रयास कर रहे हैं। वैज्ञानिकों के अनुसार नीम के पत्तियों से निकलने वाले एक खास किस्म के संशोधित प्रोटीन नीम लीफ ग्लाइकोप्रोटीन यानी एनएलजीपी के जरिए चूहों में ट्यूमर कोशिकाओं की वृद्धि रोकने में कामयाबी मिली है। यह प्रोटीन कैंसर से सीधे लडऩे की बजाय ट्यूमर से निकलने वाले जहरीले और घातक रसायनों के खिलाफ शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को मजबूत कर देता है। प्रतिरोधक कोशिकाओं कैंसर जैसी घातक बीमारियों से शरीर की रक्षा करती हैं। कैंसर कोशिकाएं धीरे धीरे विकसित होने पर प्रतिरोधक कोशिकाओं पर नियंत्रण कर लेती हैं। ऐसे में रोग से बचाने की जगह यह कोशिकाएं उल्टे कैंसर को फैलने में सहायता देने लगती हैं।
इन वैज्ञानिकों ने सर्वाइकल कैंसर से पीडि़त 17 मरीजों की कैंसर कोशिकाओं पर किए प्रयोग के नतीजे का भी खुलासा किया है। ये वैज्ञानिक अब इस प्रोटीन की और बारीकी से जांच करके पता लगाएगी कि इसका कौन सा तत्व सही मायने में सक्रिय है। इसकी वजह यह है कि इस प्रोटीन में तीन हिस्से हैं। टीम की कोशिश यह पता लगाने की है कि यह प्रोटीन रेजिस्टेंट कैंसर के मामलों में भी प्रभावशाली होगा या नहीं। प्रतिरोधक कोशिकाओं में कैंसर को मारने वाली कोशिकाओं का एक समूह होता है जिसे सीडी8 प्लस टी कोशिकाएं कहते हैं। ट्यूमर कोशिकाओं की वृद्धि के साथ ही एनएलजीपी की वजह से टी कोशिकाओं की तादाद भी बढ़ जाती है। इससे कैंसर को विकसित होने से रोकने में सहायता मिलती है। यही प्रोटीन टी कोशिकाओं को निष्क्रिय होने से भी बचाता है।