विचार / लेख
-संजीव बख्शी
प्रिय मित्र हरिहर वैष्णव नहीं रहे। यह बहुत ही दुखद हुआ। बहुत ही नेक इंसान थे वे। उन्हें मेरी विनम्र श्रद्धांजलि। उनकी स्मृति में पुरानी बातें याद आ रही हैं।
कोंडागाँव में हरिहर वैष्णव ने अपने घर में ‘लक्ष्मी जगार’ का पहली बार आयोजन करवाया था। मैं भी देखने गया था। सात से लेकर ग्यारह दिनों तक यह जगार चलता है। दो महिलाएं, जिन्हें गुरुमाँय कहते हैं, इस लोक महाकाव्य को ही भाषा में गाती हैं और सब सुनते हैं। उसे हरिहर वैष्णव रिकार्ड कर रहे थे। बाद में उन्होंने उसका लिप्यांतरण (ट्रांसक्रिप्शन) किया और हिंदी में अनुवाद भी। ऑस्ट्रेलिया के ऑस्ट्रेलियन नेशनल यूनिवर्सिटी, केनबरा से क्रिस ग्रेगोरी आए तो उन्हें सुनाने के लिए फिर से एक बार ‘लक्ष्मी जगार’ का आयोजन किया गया और फिर हल्बी हिंदी और अंग्रेजी में इसे प्रकाशित कराया गया। इसमें चित्रकारी खेम वैष्णव ने की। यह अब तक वाचिक परम्परा में ही रहा परंतु पहली बार हरिहर वैष्णव ने लिखित में लाया। यह उनका एक महत्त्वपूर्ण कार्य था। ‘लक्ष्मी जगार’ के अलावा ‘तीजा जगार’, ‘आठे जगार’, ‘बाली जगार’ और इसी तरह से अन्य वाचिक परम्परा की चीजों को हरिहर वैष्णव ने लिखित स्वरूप में लाकर महत्त्वपूर्ण कार्य किया हरिहर वैष्णव ने बताया था कि गुरुमाँय सुखदयी कोर्राम गरीब स्थिति में अपने जीवन का निर्वाह किया करती थीं। उन्हें आस्ट्रेलियाई विश्वविद्यालय की ओर से सम्मानजनक राशि दिलाई गई। इसके साथ ही उन्हें क्रिस ग्रेगोरी और उनकी पत्नी जूडिथ रॉबिन्सन की ओर से प्रति माह सम्मानजनक राशि अब भी प्रदान की जा रही है।
यहाँ यह बताना शायद प्रासंगिक होगा कि क्रिस ग्रेगोरी की पत्नी जूडिथ रॉबिन्सन 2010 से 2012 तक फिजी में ऑस्ट्रेलियाई उच्चायुक्त के पद पर भी पदस्थ रहीं। मुझे स्मरण है कि 1999 में तो हरिहर वैष्णव के साहित्यिक विदेश प्रवास के लिए विदेशी आयोजकों ने टिकट आदि सब करवा लिये थे और कोंडागाँव से निकलने की तारीख में वे हरिहर को फोन कर पूछते हैं कि वे निकले कि नहीं? जवाब मिला कि उन्हें मलेरिया हो गया है और वे खाट से उठ नहीं पा रहे हैं। वे ठीक हुए उसके बाद सन् 2000 में फिर से उन्हें बुलाने के लिए सब व्यवस्था की गई तब वे गए। विदेश से लौटने के बाद उनका एक बहुत ही आत्मीय पत्र आया।