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बूढ़े होते जर्मनी में उम्र और जेब का वोटिंग पर असर
24-Sep-2021 7:03 PM
बूढ़े होते जर्मनी में उम्र और जेब का वोटिंग पर असर

जर्मनी का निर्वाचक वर्ग यानी मतदाता समूह बूढ़ा हो रहा है और सिकुड़ भी रहा है. अंगेला मैर्केल के बाद के युग में जर्मन संसद के लिए इसका क्या अर्थ होगा?

 डॉयचे वैले पर ईयान बाटेसन, येन्स थुराऊ की रिपोर्ट- 

जर्मनी में 26 सितंबर को होने वाले मतदान के लिए करीब छह करोड़ मतदाता हैं. चार साल पहले हुए पिछले आम चुनाव की तुलना में इस संख्या में करीब 13 लाख की गिरावट आई है और आधे से अधिक मतदाता भी 50 साल से अधिक आयु के हैं.

यह बदलाव जर्मनी में व्यापक जनसांख्यिकीय परिवर्तन का हिस्सा है, जिसमें देश में जन्म से अधिक मौतें लगातार जारी हैं. हालांकि प्रवासन ने जर्मनी की आबादी को स्थिर करने में मदद की है, लेकिन उनमें से कई प्रवासी मतदान करने में सक्षम नहीं हैं. नतीजतन, जर्मनी का मतदाता समूह उम्रदराज होता जा रहा है और सिकुड़ता जा रहा है.

एक बूढ़ा मतदाता आधार

जनसंख्या में जैसे-जैसे उम्रदराज लोगों की संख्या बढ़ती जाती है, चुनावों में सत्ता के पीढ़ीगत संतुलन में भी बदलाव होता है. पश्चिमी जर्मनी में साल 1987 के राष्ट्रीय चुनाव में 23 फीसद मतदाता तीस साल से कम उम्र के थे और 26 फीसद मतदाताओं की उम्र साठ साल के आस-पास थी. साल 2021 में होने वाले चुनाव के लिए संघीय रिटर्निंग ऑफिसर को उम्मीद है कि तीस साल से कम उम्र के मतदाताओं की संख्या सिर्फ 15 फीसद रह जाएगी और साठ साल की उम्र वाले मतदाताओं की संख्या 38 फीसद से ऊपर रहेगी.

इस परिवर्तन ने बेबी बूमर्स को प्रभावित किया है, यानी द्वितीय विश्व युद्ध के बाद पैदा हुई पीढ़ी जो आज अपनी उम्र के साठवें दशक में है. और यह प्रवृत्ति आगे भी जारी रहेगी क्योंकि बाद में पैदा हुए जर्मन नागरिकों के कम बच्चे हैं.

इसके अलावा, पुराने मतदाताओं में मतदान करने की प्रवृत्ति ज्यादा रही है. साल 2017 में हुए पिछले आम चुनाव में 70 वर्ष के ऊपर के मतदाताओं में से 76 फीसद ने मतदान में हिस्सा लिया था और 81 फीसद मतदाता 60 की उम्र के आस-पास थे. इस बीच 21 से 24 आयु वर्ग के मतदाताओं में सिर्फ 67 फीसद ने मतदान में हिस्सा लिया.

बुजुर्ग और युवा मतदाताओं में मतदान की प्रवृत्ति में भी फर्क देखा गया है. डीडब्लू से बातचीत में बर्लिन स्थित इंफ्राटेस्ट डिमैप पोलिंग इंस्टीट्यूट के मैनेजिंग डायरेक्टर निको जीगल कहते हैं, "पुराने मतदाताओं में युवा मतदाताओं की तुलना में दीर्घकालिक पार्टी संबद्धता होने की संभावना अधिक होती है. यह प्रवृत्ति अक्सर जीवन के पहले चरणों में विकसित होती है.”

जर्मनी में पुराने मतदाता क्रिश्चियन डेमोक्रैट या सोशल डेमोक्रैट जैसी जर्मनी की ऐतिहासिक बड़ी पार्टियों के पक्ष में मतदान करते हैं और उनकी निष्ठा बदलने की संभावना बहुत कम होती है.

पूर्व-पश्चिम विभाजन

जर्मन एकीकरण के तीस से भी ज्यादा साल होने के बावजूद, पूर्व और पश्चिम में जर्मन मतदाता कैसे वोट करते हैं, इस पर अभी भी मतभेद हैं. सेंटर-राइट क्रिश्चियन डेमोक्रैटिक यूनियन और उसकी सहयोगी पार्टी, बावेरियन क्रिश्चियन सोशल यूनियन (CSU), सेंटर-लेफ्ट सोशल डेमोक्रैट्स (SPD), प्रो-फ्री मार्केट फ्री डेमोक्रैट्स (FDP) और ग्रीन पार्टी को उनका अधिकांश समर्थन देश के पश्चिमी हिस्से से ही मिलता है.

कम्युनिस्ट लेफ्ट पार्टी और धुर दक्षिणपंथी पार्टी एएफडी को ज्यादातर समर्थन पूर्वी हिस्से से मिलता है. यह पूर्व में कम्युनिस्ट जर्मन डेमोक्रैटिक रिपब्लिक का कम घनी आबादी वाला क्षेत्र है जहां देश की कुल आठ करोड़ 32 लाख  में से सिर्फ एक करोड़ 25 लाख की आबादी निवास करती है.

राजनीतिक दलों का समर्थन आय के स्तर से सबसे अधिक प्रभावित होता है. सीडीयू/सीएसयू, एसपीडी और विशेष रूप से ग्रीन्स और एफडीपी के मतदाता आम तौर पर औसत आय से ऊपर वाले होते हैं. एसपीडी के मतदाता आम तौर पर मध्य आय वर्ग वाले होते हैं. और वामपंथी और एएफडी के समर्थक आम तौर पर औसत आय से कम कमाते हैं जिनमें से कई पूर्वी जर्मनी और उन क्षेत्रों में स्थित हैं जो गैर-औद्योगीकरण से प्रभावित हुए हैं.

ग्रीन पार्टी का प्रदर्शन शहरी क्षेत्रों में बेहतर रहता है जहां अपेक्षाकृत युवा और सुशिक्षित आबादी है. ग्रीन्स ने पारंपरिक रूप से युवा वोट का एक बड़ा प्रतिशत जीता है, मसलन साल 2019 के यूरोपीय संसद के चुनाव में उन्हें जर्मनी के 24 साल से कम उम्र के लोगों का 34 फीसद समर्थन हासिल किया.

लेकिन गर्मियों में ग्रीन्स के संक्षिप्त उछाल के दौरान भी, वे पूर्वी भाग में अपनी पैठ बनाने में असफल रहे. पोल्स्टर फोर्सा के अनुसार, जून महीने में पश्चिमी जर्मनी में हुए सर्वेक्षण में 26 फीसद ने जबकि पूर्वी जर्मनी में सिर्फ 12 फीसद ने ग्रीन्स के पक्ष में मतदान करने की इच्छा जताई.

पुरुष और महिलाएं

जर्मनी में साल 2021 के चुनाव के लिए में तीन करोड़ 12 लाख महिलाएं और दो करोड़ 92 लाख पुरुष वोट देने की पात्रता रखते हैं. कुल मिलाकर, संघीय चुनावों में पुरुषों और महिलाओं के मतदान का प्रतिशत लगभग समान है लेकिन 70 साल से अधिक उम्र के पुरुषों की तुलना में महिलाओं की भागीदारी कम होती है.

पार्टी की प्राथमिकताओं के मुताबिक, सीडीयू/सीएसयू पार्टियों और ग्रीन्स पार्टी को हालिया संघीय चुनावों में पुरुषों की तुलना में महिला मतदाताओं का ज्यादा समर्थन मिला जबकि एएफडी के लिए महिलाओं के मुकाबले दोगुने पुरुषों ने मतदान किया.

निवासी जो मतदान नहीं कर सकते

बढ़ती आबादी और जन्म से अधिक मौतों के बावजूद, प्रवासन के कारण जर्मनी की आबादी अब तक काफी हद तक स्थिर रही है. लेकिन उनमें से कई प्रवासी राष्ट्रीय चुनावों में मतदान करने में सक्षम नहीं हैं क्योंकि वे जर्मन नागरिक नहीं हैं.

जर्मनी में पंजीकृत यूरोपीय संघ के नागरिक स्थानीय चुनावों में मतदान करने में सक्षम हैं, लेकिन जर्मनी में रहने वाले करीब एक करोड़ लोग यानी हर आठ में से एक व्यक्ति आम चुनाव में मतदान की योग्यता नहीं रखता, क्योंकि उसके पास जर्मन नागरिकता नहीं है. बर्लिन जैसे महानगर में यह संख्या और भी ज्यादा है क्योंकि जर्मन राजधानी की लगभग एक चौथाई आबादी के पास जर्मन पासपोर्ट नहीं है.

कई विदेशी नागरिकों ने निवास की जरूरतों को पूरा करने के बाद भी जर्मन नागरिक नहीं बनने का विकल्प चुना है क्योंकि इसके लिए उन्हें अपनी पिछली नागरिकता को त्यागना पड़ता है.

उम्र, प्राथमिकताएं और जलवायु परिवर्तन

जब राजनीतिक मुद्दों को प्राथमिकता देने की बात आती है तो उम्र भी एक महत्वपूर्ण कारक बन जाता है. जर्मनी में युवा मतदाताओं के लिए जलवायु परिवर्तन सबसे अधिक दबाव वाला विषय पाया गया है. प्रकृति और जैव विविधता संरक्षण संघ यानी एनएबीयू के एक सर्वेक्षण के अनुसार, बुजुर्ग मतदाताओं के संबंध में ऐसा नहीं है. 65 वर्ष से अधिक आयु वालों में से 60 फीसदी का मानना है कि वे युवा पीढ़ी के जलवायु और प्रकृति संरक्षण हितों के चलते अपने मतदान के निर्णय को प्रभावित नहीं होने देंगे.

एनएबीयू के अध्यक्ष जॉर्ज आंद्रियास क्रूगर सर्वेक्षण को परिणामों को चौंकाने वाला बताते हैं, "हम अन्य सर्वेक्षणों से जानते हैं कि बुंडस्टाग चुनावों के लिए जलवायु और पर्यावरण संरक्षण सबसे महत्वपूर्ण मुद्दों में से हैं. जलवायु परिवर्तन के परिणामों से सबसे ज्यादा हमारे बच्चों और नाती-पोतों को निपटना होगा.”(dw.com)

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