सामान्य ज्ञान
मेनलाइन इलेक्ट्रिकल मल्टीपल यूनिट यानी मीमू या मेमू कोच, रेलगाडिय़ां हैं, जो गैर उपनगरीय क्षेत्रों में बहुत लोकप्रिय हैं। इन गाडिय़ों आमतौर पर काम के लिए बड़े शहरों के लिए आसपास के ग्रामीण क्षेत्रों और छोटे शहरों से बदलना करने के लिए स्थानीय यात्रियों द्वारा इस्तेमाल किया जाता है.
मीमू कोच की ढोने की क्षमता काफी अधिक होती है। आजीविका के लिए दैनिक यात्रा करने वालों के लिए मीमू परिवहन का एक बेहतर और किफायती साधन है। मीमू परम्परागत रेलगाडिय़ों की तुलना में तेजी से त्वरित और मंद होती हैं। इनसे ऊर्जा की खपत में 30 प्रतिशत की बचत हो जाती है। इन ट्रेनों में अधिक से अधिक यात्री सुविधा होती है। वर्तमान में मेमू कोच सिर्फ रेल कोच फैक्ट्री (आरसीएफ) कपूरथला में है। नए मीमू रेल कोच कारखाने की नींव राजस्थान में भीलवाड़ा में 22 सितंबर 2013 को रखी गई। केंद्र में शासन कर रही संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन की अध्यक्ष सोनिया गांधी ने इस कारखाने की आधारशिला रखी। बाड़मेर का मीमू कारखाना भारतीय रेल मंत्रालय, राजस्थान तथा सार्वजनिक क्षेत्र के प्रमुख उपक्रम भारत हेवी इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड (भेल) की संयुक्त पहल है। बाड़मेर में मीमू कारखाने का पूरा व्यय भेल द्वारा वहन किया जाना है।
अनुमानत: 800 करोड़ रुपये की लागत वाली इस मीमू परियोजना के लिए आवश्यक मंजूरी वर्ष 2013-14 के रेल बजट में की गई थी। कारखाने की स्थापना को लेकर 25 फरवरी 2013 को रेल मंत्रालय तथा भेल के मध्य सहमति ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए गए थे। इसके अतिरिक्त भारतीय रेल मंत्रालय ने राजस्थान सरकार के साथ 21 सितंबर 2013 को कारखाने हेतु 518 एकड़ का नि:शुल्क उपलब्ध कराने हेतु हस्ताक्षर किए गए। बाड़मेर में मीमू कारखाने की स्थापना का उद्देश्य रेलवे के लिए मीमू कोच की उपलब्धता को बढ़ाना तथा स्थानीय लोगों को प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रोजगार मुहैया कराना है। बाड़मेर को अब मीमू कोच के उत्पादन हेतु भी जाना जाएगा, हालांकि इस क्षेत्र को पहले से टेक्सटाइल सिटी के तौर पर जाना जाता है।