विचार / लेख
-ध्रुव गुप्त
अपनी शुरुआत से अबतक हिंदी सिनेमा में पुरुष संगीतकारों का वर्चस्व रहा। फिल्म संगीत के नब्बे साल के सफर मे बस इक्का-दुक्का स्त्री संगीतकार ही पुरुषों के आधिपत्य वाले इस क्षेत्र में अपनी थोड़ी-बहुत पहचान बना पाई हैं। पिछली सदी के तीसरे-चौथे दशक की एक संगीतकार सरस्वती देवी को हिंदी सिनेमा की पहली स्त्री संगीतकार होने का गौरव हासिल है। उस दौर में अभिनेत्री नरगिस की मां जद्दनबाई तथा बाद में पाकिस्तान जा बसी इशरत सुल्ताना ने भी कुछ फिल्मों का संगीत दिया था, लेकिन जानकार पहली स्त्री संगीतकार होने का श्रेय सरस्वती देवी को देते हैं। पंकज मलिक और आर.सी बोराल जैसे दिग्गज संगीतकारों के उस दौर में सरस्वती देवी की लोकप्रियता चरम पर थी।
1912 में एक पारसी परिवार में जन्मी ख़ुर्शीद मिनोचर होमजी उर्फ सरस्वती देवी ने विष्णु नारायण भातखंडे से हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत की शिक्षा लेने के बाद रेडियो पर गाना शुरू किया था। रेडियो पर उन्हें सुनकर बॉम्बे टॉकीज के मालिक हिमांशु राय ने उन्हें अपनी पहली फिल्म ‘जवानी की हवा’ और ‘जीवन नैया’ के संगीत निर्देशन का भार सौंपा। इन फिल्मों का संगीत खूब चला। अशोक कुमार की आवाज़ में ‘जीवन नैया’ का एक गीत ‘कोई हमदम न रहा, कोई सहारा न रहा’ तब बेहद लोकप्रिय हुआ था। इसके बाद अशोक कुमार और देविका रानी अभिनीत उनकी फिल्म ‘अछूत कन्या’ ने सफलता के झंडे गाड़े। उस फिल्म का एक गीत ‘मैं बन की चिडिय़ा बन के वन-वन बोलूं रे’ हिंदी सिनेमा के अमर गीतो में एक साबित हुआ। सरस्वती देवी ने पचास से ज्यादा फिल्मों के लिए संगीत रचा था जिनमें से कुछ चर्चित फिल्में हैं - जीवन नैया, अछूत कन्या, प्रेम कहानी, ममता, कंगन, झूला, बंधन, भाभी, निर्मला, वचन और आम्रपाली। गायक किशोर कुमार और संगीतकार मदन मोहन ने उनकी कई फिल्मों में कोरस गाया था। उनकी फिल्म ‘उषा हरण’ में गाने वाली लता मंगेशकर का मानना है कि सरस्वती देवी से उन्हें संगीत की कई बारीकियां सीखने को मिली थी।
उनकी फिल्म ‘जीवन नैया’ के गीत ‘कोई हमदम न रहा’ को 1961 में किशोर कुमार ने फिल्म ‘झुमरू’ में अपनी आवाज देकर अमर कर दिया था। उनकी फिल्म ‘झूला’ में अशोक कुमार की आवाज में एक गीत ‘एक चतुर नार करके सिंगार’ को दोबारा राहुल देव बर्मन ने फिल्म ‘पड़ोसन’ में किशोर कुमार और मन्ना डे की आवाज में रिक्रिएट किया था। उनकी फिल्म ‘बंधन’ के एक मशहूर गीत ‘चनाजोर गरम बाबू मैं लाया मजेदार’ का इस्तेमाल मनोज कुमार ने कुछ फेरबदल के साथ 1981 की अपनी फिल्म ‘क्रांति’ में किया था।
चौथे दशक में बॉम्बे टॉकीज के बंद होने और नौशाद, हुस्नलाल भगतराम, अनिल बिस्वास, सी रामचंद्र, शंकर जयकिशन जैसे संगीतकारों के उदय के साथ फिल्म संगीत में नए-नए प्रयोगों की बाढ़ आने के बाद सरस्वती देवी धीरे-धीरे पृष्ठभूमि में चली गई। उनके बाद हिंदी फिल्म संगीत में बदलाव के कई दौर आए, लेकिन यह निर्विवाद है कि हिंदी फिल्म संगीत को उसका वर्तमान स्वरूप देने में सरस्वती देवी की भूमिका अहम रही थी। उनके बाद छठे दशक में एक दूसरी स्त्री संगीतकार उषा खन्ना अपनी अलग पहचान बनाने में सफल हो सकी थी। दुर्भाग्य से फिल्म संगीत के इतिहास ने सरस्वती देवी को वह श्रेय नहीं दिया जिसकी वे वाकई हकदार थीं।