सामान्य ज्ञान
सहरिया जनजाति राजस्थान के लोग सबसे डरपोक एवं पिछड़ी हुई हैं। ये लोग मुख्य: शाहदाब, किशनगढ़ (कोटा) पंचायत समितियों में निवास करते हैं। सहरिया शब्द सहारा से बना है जिसका अर्थ रेगिस्तान होता है। इनका जन्म सहारा के रेगिस्तान में हुआ माना जाता है। मुगल आक्रमणों से त्रस्त होकर ये लोग भागकर राजस्थान पहुंचे और झूम खेती करने लगे।
सहरिया के पच्चास गोत्र हैं। इनमें चौहान और डोडिया गोत्र राजपूत गोत्र से मिलते हैं। सहारिया जाति के लोग स्थायी वैवाहिक जीवन को सम्मान की दृष्टि से देखते हैं। यद्यपि नाता प्रथा विवाहिता एवं कुंवारी दोनों मानते हैं। अतीत में नाता प्रथा के लिए स्रियों को शारीरिक दण्ड दिया जाता था, आजकल आर्थिक व कोतवाल के मामलों के द्वारा इसे सुलझाया जाता है।
अन्य समाज में जो स्थान मुखिया का होता है, पटेल का होता है, वही स्थान सहरिया समाज में कोतवाल का होता है। इस जाति के लोग हिन्दू त्यौहारों और देवी देवताओं से जुड़े धार्मिक उत्सव मनाते हैं। ये लोग तेजाजी को आराध्य के रूप में विशेष तौर पर मानते हैं। तेजाजी की स्मृति में हर साल भंवरगढ़ में एक मेला लगता है जिसे इस जनजाति के लोग बड़े ही उत्साह व श्रद्धा से देखते हैं। ये लोग अपनी परम्परा से उठकर स्रियों के साथ मिल - जुलकर नाचते गाते हैं । राई नृत्य का आयोजन करते हैं, होली के बाद के दिनों में ये सम्पन्न होता है।
इनके सघन गांव देखने को मिलते हैं। ये छितरे छतरीनुमा घरों में निवास करते हैं। इनका एक सामूहिक घर भी होता है जहां वे पंचायत आदि का भी आयोजन करते हैं। इसे वे बंगला कहते हैं। एक ही गांव के लोगों के घरों के समूह को इनकी भाषा में थोक कहा जाता है। इसे ही अन्य जाति समूह फला भी कहते हैं।