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जातीय, भौगोलिक, प्रजातीय और धार्मिक पहचान के भेद...
09-Oct-2021 3:11 PM
जातीय, भौगोलिक, प्रजातीय और धार्मिक पहचान के भेद...

-लक्ष्मण सिंहदेव

ध्यान रहे एक शब्द के अनेक अर्थ होते हैं और वो देश काल के अनुरूप परिवर्तित होते हैं।

पहचान एक बड़ा सामाजिक घटक है जो किसी वयक्ति को परिभाषित करता है। सही-सही पहचान करना और उसका पता होना लाखों में एकाध व्यक्ति को ही होता है। यथा हिन्दू पुराने समय में एक भौगोलिक पहचान थी, सिंधु के पार के सभी लोग हिन्दू थे भले ही वो किसी भी मत/धर्म के हो। सल्तनत काल में हिन्दू बेग नाम का उल्लेख मिलता है। मुझे गाजा में एक व्यक्ति (अरबी) मिला, जिसने बताया कि उन्हें हिंदी कहा जाता है क्योंकि उसके पूर्वज कभी हिन्द से आए थे। तुर्की के कुर्दिस्तान में मुझे एक कुर्द लडक़ा मिला, धर्म और पंथ के हिसाब से वो सुन्नी मुसलमान था लेकिन उसे वहां लोग हिन्दू कहते हैं, पता चला उसका पिता कोई बंगाली मुसलमान था जो 60 के दशक में तुर्की मजदूरी करने गया और वहां एक कुर्द महिला से विवाह कर लिया। इसलिए वो थोड़ा अलग दिखता है।

हिन्दू सांस्कृतिक पहचान भी है, वियतनाम में वियतनाम की मूल नस्ल (मंगोलाइड) के 50 हजार हिन्दू हैं, जो धर्म से हिन्दू हैं, उसी प्रकार इंडोनेशिया के बाली द्धीप में 5 लाख हिन्दू हैं जिनका भौगोलिक रूप से जम्बूद्वीप (भारत भूमि) से कोई मतलब नहीं है।

एक शब्द और है जिसमें लोग काफी भ्रमित होते हैं वो है- पंजाबी, बचपन से ही सुनते आ रहे थे पंजाबी कोई एक पर्टिकुलर हिन्दुओं की जाति है। मूल खोजने पर पता चला तो केवल हिंदुओं की खत्री बिरादरी के लोग प्रचलित रूप से इस जाति के दायरे में आते हैं जबकि पंजाबी एक भौगोलिक , भाषाई शब्द है, वस्तुत: जिसका मूल पंजाब राज्य से हो या जो पंजाबी भाषी हो वो पंजाबी होगा। लेकिन पंजाबी शब्द का पर्याय कुछ लोगों के लिए सिख धर्म से भी है भले ही उनका पंजाब से कोई मतलब न हो। महाराष्ट्र के इलाके में गुरु गोविन्द सिंह अनेक लोगों को सिख बनाया क्या हम उन महाराष्ट्रीयन लोगों को पंजाबी कह सकते हैं?

वैसे भारत के पंजाब राज्य से चार गुना बड़ा पंजाब पाकिस्तान में है और वहां के लोग भी अपनी इस भौगोलिक भाषायी विशेषता पर गर्व करते हैं।

भारत के अनपढ़ टाइप काफी पत्रकार इत्यादि लोग अफ्रीकी एवं अन्य जगह के काली नस्ल के लोगों के लिए अश्वेत शब्द का प्रयोग करते हैं जबकि शब्द से अर्थ स्पष्ट हो जाता है कि अश्वेत वो जो श्वेत नहीं उसमें भारतीय और मंगोलायड नस्ल के लोग भी आ जायेंगे। ऐसा मैंने कई बार पढ़ा, नवभारत टाईम्स जैसे अखबारों में और एनडीटीवी जैसे टीवी चैनल में देखा। एक बार तो नवभारत टाईम्स में रेड इंडियन का अनुवाद लाल भारतीय भी पढ़ा। मारवाड़ी शब्द भौगोलिक पहचान है लेकिन मारवाड़ी का गूढ़ अर्थ बनिया हो गया, भले ही वो किसी भी इलाके का हो। कुछ लोगों के लिए हर अग्रवाल, मारवाड़ी है। जबकि अग्रवालों का मूल स्थान अग्रोहा (हरियाणा) में है। शेखावटी, मेवाड़ के लोगों को भी लोग मारवाड़ी कह देते हैं। बंगाली नार्थ इण्डिया की एक जाति भी है जो दलित है, भौगोलिक पहचान रूढ़ बनकर जातीय पहचान के रूप में प्रकट हुई।

जयपुर में हिन्दू पठानों की एक कॉलोनी है जो इस रूढ़ धारणा को ध्वस्त करती है कि पठान नस्ल के सभी लोग मुसलमान होते हैं। खैबर पख्तून खवाह में अभी भी मु_ी भर हिन्दू पठान हैं। काबुल का एकमात्र जीवित यहूदी तो बहुत प्रसिद्ध है जो नस्ल से पठान है। वैसे पठान, नस्ल अपने मूल में यहूदी ही है। पठानों के बड़े कबीलों के नाम इसके द्योतक भी हैं, जैसे युसुफज़़ई, दाउदजाई। कुछ लोगों के लिए हर खान टाइटल लगाया हुआ व्यक्ति पठान है जबकि आधे से ज्यादा यूपी में खान लिखने वाले लोग राजपूत कन्वर्टेड  मुसलमान  हैं। जब कुछ राजपूत, मुसलमान बने तो उन्होंने भी अपने आपको विदेशी मूल का दिखाने का पूरी कोशिश की और यहाँ तक कि किस-किस पश्तून कबीले के हैं वो भी जबरदस्ती जोड़ लिया। कुछ अपनी राजपूत पहचान पर ही डटे रहे।

अभी कुछ दिन पहले ही पाकिस्तान के प्रसिद्ध मौलाना तारिक जमील का एक वीडियो देखा जिसमें वो कह रहा है कि वो पृथ्वीराज चौहान का वंशज है।

मेरे जिले के अधिकतर शियाओं को मैं सैयद ही समझता था बाद में पता चला वहां भी वेरायटी बहुत है। भारत में शियाओं का सबसे बड़ा असरफ समूह नस्ली तौर पर मुझे लगता है तुर्क हैं। मध्य युग में तुर्क या तुरक शब्द विदेशी मूल के मुसलमान के लिए प्रयोग होने वाला सामान्य शब्द था वैसे कुछ राजपूत शिया भी मिले। मैंने मुसलमान कायस्थ भी देखे जो ज्यादातर फारुकी टाइटल लगाते हैं।

10 फीसदी अरबी गैर मुस्लिम भी हैं। ज्यादातर ईसाई हैं, धर्म से यहूदी भी हैं। सीरिया में ईसाई अरबों से मैं खुद मिला। अफ्रीका के सभी लोग काले नहीं, उत्तरी अफ्रीका की नस्ल बहुत गोरी है। ऐसे ही अधिकतर भारतीयों के लिए ज्यादातर गोरी नस्ल के यूरोपीय लोग अंग्रेज हैं। जबकि वो कोई स्पेनी है कि स्वीडिश, या अन्य टाइटल से भी किसी की पहचान बता पाना बहुत मुश्किल है। ऐसे सैकड़ों टाइटल हैं जो कई बिरादरी एक साथ प्रयोग करती हैं। यथा तंवर, राजपूत भी मिलेंगे, गुर्जर, चमार, जाट भी। टाइटल भी समझना आसान नहीं।

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