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मेरे बदन के कैंसर सेल पर किसका हक?
17-Oct-2021 5:12 PM
मेरे बदन के कैंसर सेल पर किसका हक?

विश्व स्वास्थ्य संगठन ने अभी एक ऐसी अफ्रीकी अमेरिकी महिला का सम्मान किया है जो 1951 में 31 बरस की उम्र में गुजर चुकी थी। उसे कैंसर था, और डॉक्टरों ने उसकी या उसके परिवार की इजाजत के बिना उसके कैंसर के कुछ सेल निकाल लिए थे। आज से करीब पौन सदी पहले लोगों के अधिकारों की इतनी खुलासे से बात नहीं होती थी, और डॉक्टरों ने उसके कैंसरग्रस्त सेल जब निकाल लिए, तो यह उस वक्त कोई मुद्दा नहीं बना। लेकिन अब जाकर हेनरिटा लैक्स नाम की इस महिला की स्मृति का सम्मान क्यों किया गया इसकी कहानी बड़ी दिलचस्प है।

इन कैंसरग्रस्त सेल को इस महिला के बदन के बाहर प्रयोगशाला में बढ़ाया गया और उन्हें कई गुना किया गया। बाद में दुनिया भर की अलग-अलग प्रयोगशालाओं ने, दवा कंपनियों ने इन सेल्स का इस्तेमाल पोलियो का टीका विकसित करने में किया, जींस का नक्शा बनाने में किया, और कृत्रिम गर्भाधान तकनीक में किया। इस महिला के कैंसरग्रस्त सेल का इतना व्यापक और महत्वपूर्ण इस्तेमाल हुआ कि आज इसे ‘आधुनिक चिकित्सा की मां’ नाम दिया गया।

इस महिला के कैंसरग्रस्त सेल का इस्तेमाल एचआईवी-एड्स की दवाइयां विकसित करने में भी किया गया और अभी कोरोना का इलाज ढूंढने में भी इनका इस्तेमाल हो रहा है। दरअसल इस महिला के सेल ऐसे पहले मानवीय सेल थे जिन्हें शरीर के बाहर क्लोन करके बढ़ाया गया। इसके पहले जितने कैंसर मरीजों के कैंसर सेल अस्पतालों में लिए जाते थे ताकि उन पर कोई शोध हो सके, तो वे तमाम नमूने 24 घंटे के भीतर दम तोड़ देते थे। लेकिन हेनरिटा लैक्स के सेल्स करिश्माई तरीके से जिंदा रहे और हर 24 घंटे में वे 2 गुना होते चले गए, इस तरह वे मानव शरीर के बाहर बढऩे वाले पहले कैंसर सेल थे, और इसलिए रिसर्च में उसका भारी इस्तेमाल हो सका। डब्ल्यूएचओ का हिसाब-किताब बताता है की हेनरिटा लैक्स के सेल अब तक 75000 से ज्यादा स्टडी में इस्तेमाल किए जा चुके हैं।

अभी इस महिला का सम्मान करते हुए स्विट्जरलैंड में डब्ल्यूएचओ के डायरेक्टर जनरल ने कहा कि उसके बदन के सेल का खूब दोहन हुआ, और वह अश्वेत या काली महिलाओं में से एक थी जिनके शरीर का विज्ञान ने बहुत बेजा इस्तेमाल किया। उन्होंने कहा कि इस महिला ने अपने आपको चिकित्सा विज्ञान के हवाले किया था ताकि वह इलाज पा सके, लेकिन चिकित्सा व्यवस्था ने उसके बदन के एक हिस्से को उसकी जानकारी और उसकी इजाजत के बिना लेकर उसका तरह-तरह से इस्तेमाल किया। चिकित्सा विज्ञान की खबरें बताती हैं कि इस महिला के नाम पर रखे गए इन कैंसर सेल, ‘हेलो’, का उपयोग उस सर्वाइकल कैंसर के इलाज में भी हुआ, जिस सर्वाइकल कैंसर की शिकार वह महिला थी।

अभी जब इस महिला के वंशजों का सम्मान हुआ, उसके 87 बरस के बेटे सहित कुनबे के कई लोग मौजूद थे, तो दुनिया के कुछ लोगों ने यह भी कहा कि उसके परिवार को इसका मुआवजा मिलना चाहिए क्योंकि दवा कंपनियों ने उसके कैंसर सेल का इस्तेमाल करके टीके या दवाइयां बनाए, उनका खूब बाजारू इस्तेमाल हुआ। कुछ दूसरे लोगों का कहना था कि ऐसे बनाई गई सारी दवाइयों और सारे टीकों को बिना किसी मुनाफे के मानव जाति के लिए इस्तेमाल करना चाहिए।

अभी कुछ हफ्ते पहले इस परिवार ने ऐसी एक कंपनी के खिलाफ एक मुकदमा किया है जिसने हेनरिटा लैक्स के कैंसर ग्रस्त सेल से दवा बनाकर अरबों रुपए कमाए हैं। परिवार का कहना है कि कंपनी इसे अपना बौद्धिक पूंजी अधिकार करार दे रही है। परिवार के वकील ने अदालत में यह मुद्दा उठाया कि किसी के शरीर का कोई हिस्सा कैसे उसकी इजाजत के बिना किसी दवा कंपनी की संपत्ति हो सकता है और इस महिला के सेल से विकसित की गई दवाइयों की कमाई का पूरा हिस्सा इस परिवार को दिया जाना चाहिए।

पश्चिमी दुनिया में चल रहे इस सिलसिले को देखें, तो लगता है कि हिंदुस्तान जैसे देश ऐसी भाषा से किस तरह पूरी तरह छूते हैं। यहां पर महिलाओं को जानवरों की तरह एक हॉल में लिटाकर उनकी नसबंदी कर दी जाती है, उनमें से कितनी जिंदा बचती हैं, और कितनी नहीं, इसकी कोई फिक्र नहीं होती। यहां इलाज के बीमे की रकम हासिल करने के लिए छत्तीसगढ़ जैसे राज्य में गांव के गांव की जवान सारी महिलाओं को लाकर उनका गर्भाशय निकाल दिया जाता है, ताकि अस्पताल का बिल बन सके, और बीमा कंपनी से उसे वसूल किया जा सके। यहां कोई पूछने वाले भी नहीं रहते कि उस महिला को ऐसे ऑपरेशन की जरूरत थी या नहीं। किसी के बदन की कोई कीमत हो सकती है, उस पर उसका कोई हक हो सकता है, ऐसे तमाम मुद्दों से हिंदुस्तान मोटे तौर पर बेफिक्र रहता है। यहां बुनियादी इलाज के लिए आज भी सरकारी अस्पताल जाने वाले लोग उसे डॉक्टर और नर्सों का एक एहसान मानते हैं, फिर चाहे वह सरकारी अस्पताल ही क्यों ना हो। लोगों के नागरिक अधिकार इस कदर कुचले हुए हैं कि उनका हौसला ही नहीं होता कि वे कहीं अपने हक की बात गिना सकें। इसलिए हिंदुस्तान में किसी के शरीर के सेल अगर लिए भी जाते होंगे, तो शायद ही उसे इस बारे में कुछ बताया जाता होगा। और यह सिलसिला पश्चिम के पौन सदी पहले के इस सिलसिले जैसा आज भी यहां चल रहा होगा।

(क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)

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