संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : खुद तो जाने किस कमाई की बड़ी-बड़ी गाड़ी में चलते हैं, लोगों को हेलमेट विरोध सिखाते हैं
18-Oct-2021 5:50 PM
‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : खुद तो जाने किस कमाई की बड़ी-बड़ी गाड़ी में चलते हैं, लोगों को हेलमेट विरोध सिखाते हैं

छत्तीसगढ़ में एक भी दिन ऐसा नहीं गुजरता जब सडक़ों पर दुपहियों के एक्सीडेंट में किसी की मौत ना होती हो। और ऐसा करीब-करीब बाहर राज्य में होता होगा, बहुत छोटे राज्यों में शायद हर दिन मौत न होती हो, लेकिन देश के छत्तीसगढ़ जितने बड़े किसी भी राज्य में रोजाना सडक़ों पर कई मौतें होती हैं, और यहां इस राज्य में तो लगातार दुपहियों पर मौत दिखती है। पुलिस की जानकारी बतलाती है कि इनमें से शायद ही कोई हेलमेट पहने रहते हैं, और किसी भी हादसे में सिर पर लगने वाली चोट के बाद बचने की गुंजाइश कम रहती है, जो कि हेलमेट से बच सकती थी। देशभर में सडक़ों के लिए यह नियम तो लागू है कि बिना हेलमेट लोगों पर जुर्माना लगाया जाए, दुपहिया पर तीन लोग दिखें तो जुर्माना लगाया जाए, या कारों और बड़ी गाडिय़ों में लोग बिना सीट बेल्ट दिखें तो जुर्माना लगाया जाए, या किसी भी तरह की गाड़ी चलाते हुए लोग अगर मोबाइल फोन पर बात कर रहे हैं तो उन पर जुर्माना लगाया जाए, लेकिन ऐसा होता नहीं है। छत्तीसगढ़ की राजधानी में बैठकर हम देखते हैं जहां पर पुलिस की कोई कमी भी नहीं है वहां पर भी चौराहों पर से इन तमाम नियमों को तोड़ते हुए लोग निकलते हैं, लेकिन उनका चालान होते नहीं दिखता। नतीजा यह होता है कि बड़ों को देखकर बच्चे भी कम उम्र से ही इन तमाम नियमों को तोडऩा सीख जाते हैं, और उनके मिजाज में नियमों का सम्मान करना कभी आ भी नहीं पाता।

दिक्कत यह है कि जो लोग ऐसे नियम तोड़ते हैं वे न सिर्फ खुद खतरे में पड़ते हैं बल्कि सडक़ों पर दूसरे तमाम लोगों को भी बड़े खतरे में डालते हैं। कुछ लोगों की लापरवाही का दाम दूसरे लोग अपनी जिंदगी देकर चुकाते हैं। इसलिए भ्रष्टाचार की वजह से या लापरवाही की वजह से, या ताकतवर लोगों से किसी टकराव से बचने के लिए, जब कभी पुलिस सडक़ों पर अपनी जिम्मेदारी से मुकरती है, वह बहुत सी जिंदगियों को खतरे में डालती है। इसी छत्तीसगढ़ में आज से 20-25 बरस पहले हमने एक जिले के एसपी को कड़ाई से हेलमेट लागू करवाते देखा था, और उस पूरे जिले में कोई दुपहिया बिना हेलमेट नहीं दिखता था। अगर लोगों पर हजार-पांच सौ रुपये जुर्माना होने लगे तो तुरंत ही सारे लोग नियमों को मानने लगेंगे। लगातार जुर्माना करके नियम लागू करवाने में पुलिस का कुछ भी नहीं जाता, लेकिन जैसे-जैसे सत्तारूढ़ दल, दूसरी राजनीतिक पार्टियां, मीडिया के लोग अपनी ताकत का इस्तेमाल करके ट्रैफिक पुलिस की कार्यवाही को रोकते हैं, वैसे-वैसे पुलिस का हौसला पस्त होते जाता है, और सडक़ों पर तमाम लोगों के लिए खतरा बढ़ जाता है।

हिंदुस्तान में कई ऐसे प्रदेश हैं जहां कई शहरों में हेलमेट लागू है और 100 फ़ीसदी लोग उसका इस्तेमाल करते हैं या फिर जुर्माना पटाते हैं। इन शहरों में बिना हेलमेट लोग 2-4 चौराहे भी पार नहीं कर पाते। हेलमेट जैसे नियम को लागू करना सत्तारूढ़ लोगों के लिए चुनाव के ठीक पहले तो एक परेशानी की वजह हो सकती है क्योंकि जिन लोगों की जिंदगी बचाने के लिए यह किया जा रहा है, वैसे वोटर भी इस बात को लेकर तात्कालिक रूप से नाराज हो सकते हैं, और अगर चुनाव कुछ महीनों के भीतर हों, तो उसमें सत्तारूढ़ पार्टी को इस नियम को लागू करवाने का नुकसान हो सकता है। लेकिन जब कोई चुनाव सामने नहीं रहता, वह वक्त किसी भी सरकार के लिए या स्थानीय संस्थाओं के लिए नियमों को कड़ाई से लागू करवाने का मौका रहता है, जिससे नियम भी लागू हो जाए और वोटरों की नाराजगी चुनाव तक शांत भी हो जाए. लोगों को यह समझ भी आ जाए कि हेलमेट सरकार की जिंदगी बचाने के लिए नहीं है, दुपहिया चलाने वालों की जिंदगी बचाने के लिए है। हमने इस अखबार में वर्षों तक हेलमेट की जरूरत को लेकर जन जागरण अभियान चलाया। लेकिन जब सरकार की नीयत ही इसे लागू करने की नहीं रहती, तो कोई अखबार इसमें क्या कर ले।

छत्तीसगढ़ जैसे प्रदेश की हालत यह है कि जब भाजपा में सरकार रहती है तो विपक्षी कांग्रेस पार्टी सरकार के फैसले को ‘हेलमेट के दलाल का फैसला’ करार देती है। और जब कांग्रेस सत्ता में आती है तो विपक्षी भाजपा हेलमेट के खिलाफ हो जाती है। राजनीति इतनी सस्ती और घटिया हो चुकी है कि नेता लोगों की जिंदगी की कीमत पर उन्हें जागरूकता से दूर रखना चाहते हैं, गैर जिम्मेदारी सिखाते हैं, और उनकी जिंदगी खतरे में डालते हैं। जो नेता हेलमेट के खिलाफ सडक़ों पर आते हैं वे खुद तो जाने कहां से की गई कमाई से खरीदी गई बड़ी-बड़ी गाडिय़ों में चलते हैं खुद महफूज रहते हैं, और दुपहिया वालों की जिंदगी खतरे में डालकर अपनी नेतागिरी चलाते हैं। हम ऐसी किसी भी सरकार को गैर जिम्मेदार मानते हैं जो लोगों की जिंदगी बचाने की पूरी-पूरी संभावना रखने वाले नियमों को लागू करने की अपनी जिम्मेदारी से कतराती हैं, और लोगों को गैर जिम्मेदार बनाती हैं। छत्तीसगढ़ में अभी अगला चुनाव 2 बरस बाद है । अगर सरकार अभी से ट्रैफिक नियम कड़ाई से लागू करे तो अगले चुनाव तक लोगों का गैरजिम्मेदारी छोडऩे का दर्द जाता रहेगा, और वे हेलमेट लगाना सीख जाएंगे, सीट बेल्ट लगाना सीख जाएंगे, मोबाइल पर बात करते हुए गाड़ी चलाना छोड़ देंगे। लेकिन इसके लिए सरकार में जिम्मेदारी की जरूरत है। देश में नियम-कानून पर्याप्त बने हुए हैं, और उनका इस्तेमाल करना सरकार की एक बुनियादी जिम्मेदारी है।
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