संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : धर्म को कितनी अराजकता की इजाजत मिलनी चाहिए देश में?
22-Oct-2021 12:51 PM
‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय :  धर्म को कितनी अराजकता की इजाजत मिलनी चाहिए देश में?

हिंदुस्तान के एक बहुत चर्चित फिल्म कलाकार आमिर खान ने दिवाली के ठीक पहले यह सलाह दी कि लोग सडक़ों पर पटाखे ना फोड़ें। उनकी यह सलाह कोई निजी सलाह नहीं थी, बल्कि टायर बनाने वाली एक कंपनी के एक इश्तहार में उन्होंने यह बात कही। इस तरह इस इश्तहार के लिए मोटे तौर पर यह कंपनी जिम्मेदार थी और क्योंकि टायर का सडक़ों से लेना-देना रहता है इसलिए शायद टायर कंपनी को सडक़ों को महफूज रखना भी सूझा होगा। खैर जो भी हो आमिर खान और उनकी पिछली पत्नी कुछ बरस पहले भी एक विवाद में थे जब उनकी पूर्व पत्नी किरण राव ने भारत में रहने में अपने को सुरक्षित न महसूस करने की बात कही थी। उस बात को लेकर भी सोशल मीडिया पर बात का मतलब समझे और निकाले बिना दुर्भावना से उनके खिलाफ एक बड़ा अभियान चला था, और उसके बाद से आमिर तकरीबन चुप चल रहे थे। अब आमिर खान को दिखाने वाले इस इश्तहार के बारे में कर्नाटक के एक सांप्रदायिक मिजाज वाले भाजपा सांसद अनंत कुमार हेगड़े ने इस टायर कंपनी को चि_ी लिखकर कहा है कि इस विज्ञापन से हिंदुओं में नाराजगी है। उन्होंने लिखा है- आमिर खान इस इश्तहार में लोगों को सडक़ों पर पटाखे नहीं जलाने की सलाह दे रहे हैं, जो कि बहुत अच्छा संदेश है, सार्वजनिक के मुद्दों पर आपकी चिंता के लिए मैं आपकी सराहना करता हूं, और आपसे एक और समस्या के समाधान का अनुरोध करता हूं जिसमें शुक्रवार और अन्य महत्वपूर्ण त्योहारों के दिन नमाज पढऩे के नाम पर मुस्लिमों द्वारा सडक़ें जाम कर दी जाती हैं। उन्होंने लिखा कि कई भारतीय शहरों में यह बहुत आम नजारा है और ऐसे वक्त एंबुलेंस और फायर ब्रिगेड जैसी गाडिय़ां भी ट्रैफिक जाम में फंस जाती हैं जिसे बड़ा नुकसान होता है. सांसद हेगड़े ने यह भी लिखा है कि वह अपनी कंपनी के विज्ञापनों में ध्वनि प्रदूषण का मुद्दा भी उठाएं क्योंकि हमारे देश में मस्जिदों के ऊपर लगे लाउडस्पीकर से अजान के समय बहुत अधिक शोर होता है।

आमिर खान ने शायद अपने मन की बात नहीं कही है और एक विज्ञापन में उनसे जो कहने के लिए कहा गया वह कहा हो, और इस कंपनी के मालिक गोयनका तो एक हिंदू हैं इसलिए ऐसा खतरा नहीं लगा होगा कि एक मुस्लिम अपने पैसे से पटाखों के खिलाफ अभियान चला रहा है। भाजपा के इस सांसद से ऐसी ही प्रतिक्रिया की उम्मीद की जा रही थी क्योंकि उनका पुराना रिकॉर्ड कुछ इसी किस्म का रहा है। लेकिन इन दोनों पक्षों की नीयत से परे हम इस मुद्दे पर आना चाहते हैं जिसमें चाहे एक हिंदू त्योहार दिवाली पर चारों तरफ अंधाधुंध पटाखे जलाकर इतना प्रदूषण फैला दिया जाता है कि दमे के मरीजों को सांस के मरीजों को भारी तकलीफ होने लगती है और उनके लिए बड़ा खतरा इक_ा हो जाता है। भारत के शहरों के वैज्ञानिक परीक्षण बतलाते हैं कि दिवाली के पटाखों से प्रदूषण का स्तर कितना बढ़ जाता है और हवा कितनी जहरीली हो जाती है इसलिए किसी बारात में फूटने वाले पटाखे या किसी के जुलूस में फूटने वाले पटाखों से परे दिवाली के पटाखों में फर्क यह है कि एक साथ कुछ घंटों में अंधाधुंध संख्या में फूटने वाले रहते हैं और उसे हवा में प्रदूषण का स्तर बहुत अधिक बढ़ जाता है।

लेकिन भाजपा सांसद अनंत हेगड़े ने जो दूसरा मुद्दा उठाया है वह मुद्दा भी सही है कि नमाज पढऩे के लिए सडक़ों को कैसे रोका जा सकता है? हिंदुस्तान में जहां पर कि सांप्रदायिक नजरिए से धर्मों के बीच एक अंधा मुकाबला चलता है और एक धर्म सार्वजनिक जीवन को बर्बाद करने के लिए दूसरे धर्म से अधिक गैर जिम्मेदारी दिखाने में लगे रहता है. ऐसे में अगर नमाज से जाम होने वाली सडक़ों के मुकाबले अगर हिंदू मंदिरों के सामने कोई विशाल आरती होने लगे सडक़ों के बीच विशाल भंडारा लगने लगे तो क्या होगा? नमाज तो हफ्ते में एक दिन पढ़ी जाती है, लेकिन आरती तो सडक़ों पर रोज की जा सकती है, दिन में दो बार की जा सकती है। इसका मुकाबला कैसे तय होगा कि किसे कितनी इजाजत मिले? हेगड़े ने मस्जिदों से लाउडस्पीकर से दी जाने वाली अजान की बात उठाई है। दिन में कई बार कुछ -कुछ मिनटों की यह अजान बहुत से लोगों के लिए दिक्कत खड़ी करती है लेकिन इसके टक्कर में साल में कई-कई दिन, शायद दर्जनों दिन हिंदू मंदिरों से और हिंदू धार्मिक आयोजनों से रात-रात भर जगराते के लाउडस्पीकर बजते हैं, अखंड रामधुन एक-एक हफ्ते चलती है, और तरह-तरह के घरेलू हवन और यज्ञ में भी लाउडस्पीकर लगा दिया जाता है। अब इसका हिसाब कैसे लगाया जाए कि दिन में 5 बार अजान में कितने वक्त लाउडस्पीकर चलता है, और अखंड रामधुन में उससे कम घंटे चलता है या उससे अधिक घंटे चलता है?

 धर्म से परे भी अगर हम ध्वनि प्रदूषण की बात करें, तो जितने धार्मिक जुलूस निकलते हैं, उन्हीं के टक्कर के लाउडस्पीकर शादी की बारात में भी चलते हैं, किसी तरह के विजय जुलूस में भी चलते हैं, और मोटे तौर पर लाउडस्पीकर का कारोबार करने वाले लोग कानून को हाथ में लेकर चलते हैं, और अपने को मिलने वाले पैसों को जायज ठहराने के लिए अधिक से अधिक ऊंची आवाज में इसे बजाते हैं। यह पूरा सिलसिला बहुत खतरनाक है, सार्वजनिक जीवन में अराजकता पूरी तरह खत्म होनी चाहिए चाहे, वह सडक़ों पर नमाज हो, चाहे वह सडक़ की चौड़ाई को घेरते हुए गणेश और दुर्गा बैठाने का मामला हो, चाहे वह प्रतिमा स्थापना और विसर्जन के जुलूस हों, चाहे वे किसी रिहायशी इलाके में किसी मंदिर या गुरुद्वारे में बजने वाले लाउडस्पीकर हों। यह पूरा सिलसिला खत्म होना चाहिए। राजनीतिक दल धार्मिक तत्वों को खुश करने के लिए कभी इन पर कोई कार्यवाही नहीं करेंगे और कट्टरता बढ़ते-बढ़ते ऐसी बढ़ती है कि अभी धर्मांध निहंगों ने एक गरीब दलित को काट-काट कर उसके बदन के हिस्से टांग दिए और हत्यारे का सार्वजनिक अभिनंदन करते हुए उसे पुलिस के सामने पेश किया गया। यह सिलसिला देश में हाल के वर्षों में एक सबसे ही खतरनाक, वीभत्स, और हिंसक मामला था जिससे कुछ लोग हिले हैं, और कुछ लोगों को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता क्योंकि धर्म के नाम पर तमाम हिंसा उन्हें जायज लगती है।

हिंदुस्तान में केवल अदालतों को यह काम करना पड़ेगा कि वह धर्म के सार्वजनिक पहलू को काबू में करें, और किसी का जीना हराम न होने दें। आज हालत यह है कि सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के ढेर सारे फैसलों और आदेशों के बावजूद धर्म बेकाबू है, और धर्मांध लोग अंधाधुंध हिंसा करते हैं जो उन्हें खुद को हिंसा नहीं दिखती। एक धर्म के लोगों को मिसाल के तौर पर दूसरे धर्म की अराजकता और हिंसा हासिल रहती है और देखा-देखी सिलसिला बढ़ते चले जा रहा है। इस सिलसिले को खत्म करना चाहिए। धर्म एक निजी आस्था का सामान रहना चाहिए जिसके लिए लोग अपनी निजी जगह पर आराधना करें, न कि सार्वजनिक जगह पर अवैध कब्जा करके, अवैध निर्माण करके, नियम-कानून को तोड़ते हुए आराधना करें, लाउडस्पीकर बजाएं। यह पूरा सिलसिला खत्म होना चाहिए। धर्म आज हिंदुस्तान की एक सबसे बड़ी दिक्कत हो गई है, एक सबसे बड़ा खतरा बन गया है, जिससे उबरने की जरूरत है।
(क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)

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