संपादकीय

दैनिक ‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : धर्म के ठेकेदारों, अपने लोगों को जिन्दा रहने की छूट दे दो
03-Nov-2021 6:59 PM
दैनिक ‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय :  धर्म के ठेकेदारों, अपने लोगों को जिन्दा रहने की छूट दे दो

सुप्रीम कोर्ट और नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के आदेशों के बाद देश के अलग-अलग राज्यों में दिवाली पर पटाखे फोडऩे को लेकर तरह-तरह के आदेश जारी हुए हैं, और इन्हें लेकर कई धार्मिक संगठनों में, और कुछ राजनीतिक पार्टियों में कुछ बेचैनी भी है। कुछ लोग इसे एक हिंदू त्यौहार पर हमला मान रहे हैं, और उनका कहना है कि न क्रिसमस पर ऐसी रोक लगती है, और न नए साल पर, जो कि ईसाई त्योहार हैं। इसके अलावा और धर्मों के भी कुछ ऐसे त्यौहार हो सकते हैं, जब पटाखे फोड़े जाते हैं, लेकिन उन पर भी कोई रोक नहीं लगती है। तो इन लोगों का यह मानना है कि हिंदू त्योहारों पर ही रोक क्यों लगनी चाहिए? यह सिलसिला पिछले कई बरस से चल रहा है, जबसे दिवाली पर पटाखों से होने वाले प्रदूषण का खतरा लोगों को समझ में आ रहा है, और खासकर उत्तर भारत में जहां पर कि ठंड के इस मौसम में प्रदूषण वैसे भी आसमान पर रहता है, दिल्ली में दम घुटने लगता है, दिल्ली में हवा इतनी खतरनाक हो जाती है कि कई बीमार लोगों को दूसरे शहर जाने की सोचना पड़ता है, ऐसी हालत में पटाखों पर रोक की बात अदालत तक पहुंची और बहुत सी वैज्ञानिक संस्थाओं की रिपोर्ट को देखते हुए अदालत ने अलग-अलग किस्मों से रोक लगाई है।

एक तरफ पर्यावरण का मुद्दा है और दूसरी तरफ लोगों के रोजगार की बात भी है। पटाखा बनाने वाले उद्योगों में लाखों मजदूरों को काम मिलता है, और तमिलनाडु के शिवकाशी में जहां सबसे अधिक फटाका कारखाना और कुटीर उद्योग हैं, वहां के मुख्यमंत्री ने राजस्थान के मुख्यमंत्री से अभी अपील की कि वे पटाखों पर रोक ना लगाएं। और राजस्थान के मुख्यमंत्री ने प्रतिबंध में ढील भी दी है। लेकिन पटाखों के मुद्दों पर रोजगार और धर्म से परे भी सोचने की जरूरत है। किसी एक दिन के कुछ घंटों में देश में सबसे अधिक पटाखे साल में केवल दिवाली की रात को फोड़े जाते हैं। नतीजा यह होता है कि शहरों की घनी बस्तियों में जहां पर हिंदू आबादी अधिक है, वहां पर इतने अधिक पटाखे फूटते हैं कि उस इलाके में रहने वाले फेफड़े के मरीजों का जीना मुश्किल हो जाता है, और कई किस्म की सांस की बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है। जो लोग अपने-आपको हिंदू धर्म का रक्षक कहते हैं और हिंदू धर्म के त्यौहारों के ऐसे रिवाजों पर लगने वाले प्रतिबंध का विरोध करते हैं, उन्हें यह भी समझना चाहिए कि यह रोक हिंदू धर्म पर नहीं है, यह रोक हिंदू धर्म को मानने वाले और दिवाली मनाने वाले लोगों की सेहत की होने वाली बर्बादी पर रोक है। दूसरे धर्मों के त्यौहार पर अगर पटाखे फूटते भी हैं, तो उन लोगों की आबादी इतनी कम रहती है, वे इतने बिखरे हुए रहते हैं, और पटाखे इतने कम फूटते हैं, कि ऐसी रातों में कहीं कोई अधिक प्रदूषण नहीं हो पाता। अगर फटाका उद्योगों के आंकड़ों को देखें तो दिवाली के बाद हिंदुस्तान में पटाखों की सबसे बड़ी खबर महाराष्ट्र में गणेश उत्सव के दौरान होती है जिसमें पटाखों का इस्तेमाल इतना बिखरा हुआ होता है, और किसी एक रात या किसी एक शाम इनका इस्तेमाल नहीं होता, इसलिए प्रदूषण का घनत्व उतना अधिक नहीं होता। लोगों को अपने धर्म से अधिक अपने फेफड़ों की फिक्र करनी चाहिए। दिवाली के पटाखों से सबसे अधिक नुकसान हिंदू आबादी में बसे हुए हिंदू लोगों के फेफड़ों को होती है क्योंकि दूसरे धर्म के लोगों की बस्तियों में पटाखे उतने अधिक फोड़े नहीं जाते हैं।

अब लंका जीतकर अयोध्या लौटे हुए राम की वापसी की खुशी में मनाया जाने वाला दिवाली का त्यौहार इतने पुराने समय से चले आ रहा है कि जब दुनिया में बारूद का आविष्कार भी नहीं हुआ था। चीन में बारूद करीब 11 वीं सदी के आसपास बनाया गया और हिंदुस्तान में बारूद पहली बार चौदहवीं सदी के आसपास आया और लोगों का मानना है कि 14वीं और 15वीं सदी के बीच में किसी समय हिंदुस्तान में पटाखे बनने शुरू हुए। तो जाहिर है कि राम जब अयोध्या लौटे उस दिन न तो बारूद था, और न पटाखे थे और न कोई आतिशबाजी हुई थी। ऐसे में राम की वापसी की याद में मनाया जाने वाला दिवाली का यह त्यौहार पटाखों को लेकर जिद पर अड़े रहे ऐसा कोई ऐतिहासिक आधार नहीं बनता है, ऐसा कोई पौराणिक आधार भी नहीं बनता है। दूसरी बात यह कि अयोध्या में उस रात आबादी कितनी रही होगी? वह इतनी अधिक नहीं रही होगी कि उनके दिए जलाने से भी कोई प्रदूषण होता हो,  इसलिए राम का नाम लेकर हिंदू आबादी वाले इलाकों में प्रदूषण का नुकसान फैलाना कोई समझदारी नहीं है यह सीधे-सीधे हिंदू धर्म के लोगों को अधिक नुकसान पहुंचाने की एक जिद है। कोई भी धर्म क्या जहरीले प्रदूषण को फैलाकर अपने मानने वाले लोगों को नुकसान पहुंचाने की नसीहत देता है ? जिस दिन धर्म बना होगा, जिस दिन धर्म के त्योहार बने होंगे, त्यौहार मनाने की परंपराएं बनी बनी होंगी, उन दिनों में किसी बारूद का कोई अस्तित्व नहीं था। इसलिए आज लोगों को आज की दिक्कतों को देखते हुए, आज के प्रदूषण के खतरों को देखते हुए एक समझदारी दिखाने की जरूरत है। यह मौका एक धर्म के दूसरे धर्मों से बराबरी करने का नहीं है, मगर बराबरी करनी है तो भी यह बात साफ है कि दीवाली की एक रात के कुछ घंटों में प्रदूषण का घनत्व जितना बढ़ता है, वह जानलेवा रहता है और उससे होने वाले नुकसान की कोई भरपाई न धर्म कर सकता, न ईश्वर कर सकता। धर्म के ठेकेदार लोगों को इस कदर जिद नहीं करना चाहिए, और पटाखों को बंद करना चाहिए।

 हिंदुस्तान में एक दूसरी बेवकूफी चल रही है कि पटाखों की एक किस्म को ग्रीन पटाखा कहा जा रहा है। ग्रीन शब्दों से ऐसा लगता है कि इससे कोई हरियाली पैदा हो जाएगी या कि यह पर्यावरण की बेहतरी करने वाला पटाखा है। इस बात को समझने की जरूरत है कि नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल द्वारा तय किए गए पैमानों के मुताबिक ग्रीन पटाखे वे हैं जिनमें परंपरागत पटाखों के मुकाबले प्रदूषण 30 फ़ीसदी कम होता है। ग्रीन पटाखों में प्रदूषण शून्य नहीं होता है, यह पुराने पटाखों के मुकाबले 70 फ़ीसदी रहता है। इसलिए यह सोच अपने-आपमें एक झांसा देती है कि कोई ग्रीन पटाखा हो सकता है। किसी को अदालत जाकर इस ग्रीन शब्द को हटाने की मांग करनी चाहिए जिसकी जगह कम प्रदूषण फैलाने वाले पटाखे जैसा कोई शब्द इस्तेमाल करना चाहिए।

अब इस कारोबार से जुड़ी हुई एक और बात पर चर्चा कर ली जाए कि पटाखे न बनने से शिवकाशी जैसे एक-दो केंद्रों पर जो लाखों लोग रोजगार पाते हैं, उनका क्या होगा? तो सवाल यह है कि जब करोड़ों लोगों की सेहत को इससे नुकसान पहुंच रहा है, तो क्या उस कीमत पर भी इस कारोबार को रहने देना चाहिए, या इस कारोबार का कोई विकल्प वहां के लोगों को रोजगार और कारोबार की शक्ल में मुहैया कराया जाना चाहिए? हिंदुस्तान में ऐसे बहुत से दौर आए हैं। एक समय था जब देशभर में दसियों लाख एसटीडी पीसीओ खुले थे, और एक-एक पीसीओ में दो-दो तीन-तीन लोगों को रोजगार मिलता था। धीरे-धीरे मोबाइल फोन बढ़ते चले गए और आज शायद एसटीडी पीसीओ देश में कहीं भी बचे नहीं है। तो दसियों लाख लोगों का वह रोजगार एसटीडी पीसीओ से तो खत्म हो गया लेकिन लोग मोबाइल के सिम कार्ड बेचने लगे, मोबाइल फोन बेचने लगे, मोबाइल सुधारने लगे, या फिर मोबाइल से जुड़ी हुई छोटी-छोटी दूसरी चीजें बेचने लगे। आज भी शहरों में, हर चौराहे पर, हर सडक़ के किनारे लोग मोबाइल के स्क्रीन गार्ड बेचते मिलते हैं उसके हेडफोन बेचते हुए मिलते हैं। तो रोजगार एसटीडी पीसीओ से निकलकर मोबाइल फोन के सामान बेचने पर आ गया। यह सिलसिला पूरी दुनिया में हमेशा चलते रहता है और चलते रहेगा। एक जगह से रोजगार घट जायेंगे, और दूसरी जगह बढऩे लगेंगे। इसलिए तमिलनाडु के इस एक जिले में अगर बहुत अधिक पटाखा उद्योग हैं तो यह समझने की जरूरत है कि वह इलाका बिना बारिश वाला इलाका माना जाता है, और वहां नमी इतनी कम रहती है, शुष्कता इतनी अधिक रहती है कि वहां पर पटाखे बनाना, और उसके भी पहले से माचिस बनाना एक परंपरागत कारोबार रहा है। लेकिन यह भी याद रखने की जरूरत है कि इसी शिवकाशी में देश के सबसे अधिक कैलेंडर भी छपते थे और यहां पर छपाई का कारोबार भी खूब होता था। तो यह तो राज्य सरकार की फिक्र करने की बात है कि अगर किसी इलाके से पटाखों का कारोबार घटता है तो लोगों को वहां किस तरह का कारोबार मुहैया कराया जाए, और किस तरह के रोजगार वहां पर जुटाए जाएँ। लेकिन यह सिलसिला अंतहीन नहीं चलने देना चाहिए।

आखिर में एक बात रह जाती है कि हर बरस दिवाली के कुछ हफ्ते पहले इस किस्म की रोक खबरों में आती है, लोग अदालत तक दौड़ लगाते हैं, राज्य सरकारें तरह-तरह के प्रतिबंध लगाती हैं, उसके बाद फिर लोग प्रतिबंध को ढीला करने की कोशिश करते हैं। रोक का यह पूरा सिलसिला दिवाली के तुरंत बाद से अगले बरस के लिए तय हो जाना चाहिए क्योंकि यही वक्त है जब शिवकाशी जैसे बड़े पटाखा उत्पादक केंद्र में अगले बरस के लिए तैयारी शुरू हो जाती है। इसलिए अगर फटाका उत्पादकों को, फटाका मजदूरों को, और फटाका कारोबारियों को लंबा घाटा नहीं होने देना है, तो सरकारों को अगली दिवाली के लिए अभी से अपनी नीति घोषित कर देनी चाहिए। त्यौहार के पहले आखिरी हफ्तों में लाए गए प्रतिबंध बहुत ही खराब रहते हैं, और लोग उनके बावजूद बाजार से पटाखे खरीदने की हालत में रहते हैं, और व्यापारी पटाखे बेचने को मजबूर रहते हैं। इसके बाद तो फिर जब बड़ी हिंदू आबादी वाले संपन्न इलाकों में पटाखे फोडऩे के मुकाबले चलते हैं, तो किसी पुलिस थाने की औकात नहीं रह जाती कि वह वहां जाकर सुप्रीम कोर्ट के किसी हुक्म की याद दिला सके। फिर भी हमारा यह मानना है कि सुप्रीम कोर्ट ने इस बार जिस तरह अफसरों की कुर्सियों के नाम लेकर कहा है कि कौन-कौन जिम्मेदार रहेंगे अगर उनके इलाकों में छूट के घंटों के अलावा पटाखे फोड़े जाएंगे, तो लोगों को भी चाहिए कि अपने-अपने इलाकों में अगर अदालती रोक को तोडक़र लोग पटाखे फोड़ते हैं तो उसके वीडियो बनाकर सोशल मीडिया पर पोस्ट करें और पुलिस को भेजें ताकि उसके बाद पुलिस कार्रवाई करने पर मजबूर रहे। यह बात सिर्फ हिंदू धर्म को लेकर नहीं कही जा रही है, और सिर्फ हिंदू धर्म पर रोक लगाने पर को लेकर नहीं कही जा रही है, यह बात हिंदुओं को बचाने के लिए कहीं जा रही है, आज का लिखा हुआ पूरा का पूरा हिंदुओं को बचाने के लिए है उनकी सेहत को बचाने के लिए है।
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