संपादकीय

दैनिक ‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : जनता की जागरूकता देश के ढांचे की बुनियादी मजबूती है
09-Nov-2021 4:51 PM
दैनिक ‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : जनता की जागरूकता देश के ढांचे की बुनियादी मजबूती है

ऑस्ट्रेलिया में अभी कोरोना का टीका लगवाने के बाद टीके वाले लोगों के बीच हुई एक लॉटरी में एक युवती को एक मिलियन अमेरिकी डॉलर मिल गए। भारत के रुपए के मुताबिक करीब 7.50 करोड़ रुपए। वहां पर लोगों के बीच टीका लगवाने को लेकर अधिक उत्साह नहीं था इसलिए सरकार ने एक लॉटरी शुरू की, और टीकाकरण करवाने वाले लोगों के बीच किसी का नाम निकालकर उसे लॉटरी मिलनी थी, और इस युवती को टीके लगवाने के बाद लॉटरी भी मिल गई। दूसरी तरफ अमेरिका एक ऐसा देश है जहां पर लोग तमाम किस्म के ईनाम, पुरस्कार, और नगद रकम के बावजूद, टीके लगवाने से बड़ी संख्या में कतरा रहे हैं। अमेरिकी लोगों में अपनी आजादी को लेकर एक ऐसी जिद है जो उन्हें उकसाती है कि टीका लगवाना, या न लगवाना, उनका कानूनी हक है। वहां अभी अमेरिकी सरकार ने यह आदेश जारी किया है कि 100 से अधिक कर्मचारियों वाली हर कंपनी को अनिवार्य रूप से अपने कर्मचारियों को दो-दो टीके लगवाने पड़ेंगे, लेकिन इसके खिलाफ लोग अदालत चले गए हैं। लोग मास्क लगाने के खिलाफ हैं, उसे लेकर भी अदालत चले गए, सडक़ों पर उन्होंने मास्क जलाते हुए प्रदर्शन किया। अमेरिकी सरकार चाहकर भी हवाई सफर पर टीकाकरण का प्रतिबंध लागू नहीं कर पा रही है।

दूसरी तरफ हिंदुस्तान को देखें तो यहां सोशल मीडिया पर दो-चार लोगों को छोडक़र टीकाकरण का किसी ने विरोध नहीं किया। लोगों ने लंबी-लंबी कतारें लगाकर टीके लगवाए और राज्य सरकारें लगातार केंद्र सरकार पर दबाव बना रही हैं कि उन्हें अधिक टीके दिए जाएं ताकि वे अपनी तमाम आबादी को लगा सकें। हिंदुस्तान में टीकों को लेकर जागरूकता का एक बड़ा लंबा इतिहास रहा है। इस देश में तकरीबन तमाम आबादी ने अपने बच्चों को पोलियो के टीके लगवाए और कुछ वक़्त के लिए उत्तर भारत के कुछ एक गिने-चुने गांवों के मुस्लिम परिवारों को छोडक़र किसी ने इसका बहिष्कार नहीं किया, और नतीजा यह निकला कि भारत पोलियो मुक्त देश बन गया। कोरोना की मार भी हिंदुस्तान में घनी बस्तियों, और कमजोर अस्पतालों के बावजूद कम रही, उसकी वजह भी कई लोग यह मानते हैं कि तरह-तरह के जो टीके हिंदुस्तान में बचपन से लगते हैं उसकी वजह से बच्चों में कई तरह की प्रतिरोधक क्षमता रहती है, और इसलिए हिंदुस्तान में कमजोर इंतजाम के बावजूद मौतें कम रही। यह कहना वैज्ञानिक तथ्यों पर आधारित नहीं होगा कि दूसरी बीमारियों के लिए लगाए गए टीकों की वजह से आज लोगों को कोरोना का असर नहीं हो रहा है, लेकिन यह तथ्य अपनी जगह सही है कि जब कभी ऐसी कोई चुनौती आती है तो हिंदुस्तान की तकरीबन तमाम आबादी एक वैज्ञानिक सोच के साथ अपने बच्चों को, या खुद को टीके लगवाने के लिए खड़ी हो जाती है।

अब इस बात को भी समझने की जरूरत है कि जिस देश में अंधविश्वास घर-घर तक फैला हुआ था, या है,  जहां पर चेचक के टीके के मुकाबले लोग माता की पूजा पर अधिक भरोसा करते थे, जहां पर आज भी सांप काटने से लेकर दूसरे कई किस्मों की बीमारियों तक लोग झाड़-फूंक करवाते हैं, वहां भी लोग टीका लगवाने के लिए सामने आए। इस मामले में हिंदुस्तान, अमेरिका या ऑस्ट्रेलिया जैसे विकसित देशों के मुकाबले बहुत आगे रहा जहां पर किसी ईनाम या नकद रकम की जरूरत नहीं पड़ी और लोगों को दबाव डालकर भी टीके नहीं लगाने पड़े। भारत सरकार जितने टीकों की सप्लाई कर पाई, उतने टीके आनन-फानन लग जा रहे हैं, और कोई टीके लोगों का इंतजार करते हुए फ्रिज में बंद नहीं रहते। मतलब, अब जिस दिन भी बच्चों को टीके लगने शुरू होंगे, उस दिन भी लोग सामने आएंगे, और अधिकतर लोग ऐसे दिन का इंतजार भी कर रहे हैं। इस बात को समझने की जरूरत है कि भारत के कम पढ़े-लिखे लोगों में, अंधविश्वास से भरे हुए देश में, टीकाकरण को लेकर यह जो जागरूकता है, यह कोई छोटी बात नहीं है। इस देश में अगर टीकाकरण के लिए लोगों को नगद रकम या लॉटरी में ईनाम देना पड़ता तो वह कितना महंगा पड़ता है उसकी कितनी लागत आती है। तो भारत में लोगों के बीच टीकाकरण को लेकर यह जो जागरूकता है यह इस देश में आजादी के बाद से लगातार मेहनत करके जो वैज्ञानिक सोच विकसित की गई थी, उसी का नतीजा है कि टीकाकरण पर लोगों का भरोसा है।

लोगों का भरोसा आज भी तंत्र-मंत्र, जादू, झाड़-फूंक पर से पूरी तरह खत्म नहीं हुआ है, लेकिन जो लोग इन बातों पर भरोसा रखते हैं वे लोग भी टीका तो लगा ही लेते हैं। इस बात का सबसे बड़ा सबूत यह है कि पोलियो इस देश से पूरी तरह खत्म हो गया। अगर कहीं भी कोई बच्चा पोलियो वैक्सीन से से बच गया रहता तो पोलियो पूरी तरह खत्म नहीं हुआ रहता। इसलिए आजादी के बाद से लगातार देश के लोगों में जो वैज्ञानिक सोच जिस हद तक भी विकसित हो पाई उसी का नतीजा था कि कोरोना के टीकों का कोई विरोध नहीं हुआ। जब विकसित देशों में लोग टीके लगवा नहीं रहे हैं और आज ऐसे लोग बड़े खतरे में पड़ रहे हैं वहां की सरकारें यह नहीं समझ पा रही हैं कि कैसे लोगों को समझाया जाए, कैसे उनकी कानूनी चुनौतियों से जूझा जाए, ऐसे में हिंदुस्तान में अगर टीकों का कोई भी विरोध नहीं हो रहा है, तो इसकी तारीफ की हक़दार देश में फैल रही तमाम किस्म की धर्मांधता के बावजूद लोगों में बची हुई वैज्ञानिक चेतना है. टीकों पर उनका भरोसा है इसीलिए हिंदुस्तान आज बच पा रहा है। देश में कोरोना के मैनेजमेंट में जितने तरह की नाकामयाबी हुई है, उसके लिए देश की सरकार जिम्मेदार रही है, लेकिन जितने तरह की कामयाबी हुई है, उसके लिए देश की आम जनता हक़दार है।

जब किसी देश में किसी किस्म के इंफ्रास्ट्रक्चर की बात होती है तब वहां गिना जाता है कि वहां पर सडक़ें कितनी हैं, बिजली कितनी फैली हुई है, इलाज की सहूलियतें कितनी हैं, पढ़ाई-लिखाई के संस्थान कितने हैं. जनता की सोच, उसकी जागरूकता को भी ऐसे इंफ्रास्ट्रक्चर में जोड़ कर गिनना चाहिए। जनता की सोच किसी मुसीबत के मौके पर किस तरह सरकार के बोझ को हल्का कर सकती है, यह हिंदुस्तान में कोरोना के इस दौर में साबित हुआ है। अमरीका की तरह ही, हिंदुस्तान के कानून के मुताबिक कोरोना का टीका लगाना किसी के लिए भी जरूरी नहीं है। यहां भी कुछ बददिमाग लोग अगर चाहते, तो अड़ सकते थे कि वे टीका नहीं लगाएंगे। लेकिन ऐसा हो नहीं पाया क्योंकि देश में जो आम चेतना है, वह टीकाकरण के पक्ष में पीढिय़ों से चली आ रही है। पीढिय़ों की यह जागरूकता हाल के वर्षों में खत्म नहीं की जा सकी है। इस बात को लेकर देश की सरकारों को और राजनीतिक ताकतों को यह सबक लेना चाहिए कि जनता में जागरूकता देश के ढांचे का एक मजबूत हिस्सा रहती है, और उसे न कम आंकना चाहिए और न उसे तबाह करने की कोशिश करनी चाहिए।

(क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)

 

अन्य पोस्ट

Comments

chhattisgarh news

cg news

english newspaper in raipur

hindi newspaper in raipur
hindi news