संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : पैर न कटाने पर भी अमिताभ कामयाबी के आसमान पर...
11-Nov-2021 5:20 PM
‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय :  पैर न कटाने पर भी अमिताभ कामयाबी के आसमान पर...

आज माधुरी दीक्षित की एक किसी कामयाब फिल्म के 33 बरस पूरे हुए तो लोगों ने याद किया कि एक वक्त जब माधुरी दीक्षित के करियर की शुरुआत थी तो फिल्म इंडस्ट्री ने उन्हें रिजेक्ट कर दिया था और यह कहा जाने लगा था कि वह हीरोइन मटेरियल नहीं हैं, बहुत पतली हैं, इस तरह की कई निगेटिव बातें उनके बारे में कही जाती थी। और वहां से निकलकर वे कामयाबी और शोहरत की बुलंदियों पर पहुंचीं। आज हिंदुस्तान के सबसे कामयाब फिल्म कलाकार अमिताभ बच्चन के बारे में तो यह बात बहुत अच्छी तरह दर्ज है कि जब वे फिल्मों में जगह ढूंढ रहे थे तो कई निर्देशक या प्रोड्यूसर उन्हें ख़ारिज कर चुके थे. एक ने तो उन्हें सलाह दी थी कि वे इतने अधिक लंबे हैं कि नीचे से पैर 6 इंच कटा कर आएं तो शायद उन्हें काम मिल सकता है। उनका चेहरा उन दिनों बहुत ही आम दिखता था, और कोई काम उन्हें मिलता नहीं था। आज हालत यह है कि इस उम्र में भी वे रात तीन-चार बजे तक किसी-किसी साउंड स्टूडियो से घर लौटते रहते हैं, और सोशल मीडिया पर दिन की मेहनत के बारे में लिखते हैं, और यह भी लिखते हैं कि सुबह सात बजे फिर काम पर निकल जाना है। ऐसे और भी बहुत से कलाकार होंगे, और सिर्फ फिल्मों की ही बात क्यों करें, बहुत से ऐसे लेखक होंगे जिनके लिखे हुए को लंबे समय तक खारिज किया गया होगा। व्यक्तिगत संबंधों में भी बहुत से लोग खारिज होते होंगे, और हो सकता है कि जिंदगी में वह आगे जाकर बहुत कामयाब होते हों। अभी राजस्थान से निकले एक छात्र की कहानी सामने आई जिसमें गांव से निकला हुआ वह बहुत गरीब परिवार का लडक़ा, आसपास के लोगों से दान मांगकर किसी तरह स्कूल की पढ़ाई पूरी कर पाया, और जब वह ट्रिपल आईटी में दाखिला पाकर वहां पहुंचा तो उसने तब तक अपनी जिंदगी का पहला कंप्यूटर भी नहीं देखा था। लेकिन साल गुजरते ना गुजरते वह हिंदुस्तान में कंप्यूटर छात्र-छात्राओं के लिए होने वाले हर कोडिंग मुकाबले को जीत रहा था। आज वह फेसबुक कंपनी के इंस्टाग्राम में न्यूज़ टीम का मुखिया है।

इन बातों को मिलाकर लिखने का मकसद यह है कि अगर किसी को लोग खारिज करते हैं, अगर लोग किसी की खिल्ली उड़ाते हैं, तो उन्हें दिल छोटा नहीं करना चाहिए। बहुत से लोगों ने इस बात को सोशल मीडिया पर लिखा और आगे बढ़ाया है कि आपके ऊपर जो पत्थर फेंके जाते हैं, उन पत्थरों से सीढ़ी बनाकर आप कामयाबी की ऊंचाई तक पहुंच भी सकते हैं। हमने खुद ही अभी कुछ दिन पहले यह लिखा है कि बहुत से लोग अपनी कामयाबी की पूरी कहानी एक रिजेक्शन स्लिप के पीछे के खाली हिस्से में लिख देते हैं। इस मुद्दे पर लिखने की जरूरत आज इसलिए भी लग रही है कि अभी छत्तीसगढ़ के बस्तर में सीआरपीएफ के एक कैंप में एक जवान ने अपने डेढ़ दर्जन साथियों पर गोलियां चला दीं जिसमें 4 मौतें हो गई हैं। उसका कहना है कि ये लोग उसकी बीवी को लेकर उससे गंदा मजाक करते थे, और उसकी मर्दानगी की खिल्ली उड़ाते थे। ऐसी बातों से थककर जो झगड़ा हुआ था, उसमें उसे ऐसा पता लगा कि बाकी लोग उसे मार डालने वाले हैं, लेकिन वे ऐसा करें, उसके पहले उसने औरों को मार डाला। इस बात में कुछ सच्चाई हो भी सकती है, और नहीं भी हो सकती है। इसलिए हम इस घटना की सच्चाई पर नहीं लिख रहे हैं, हम सिर्फ इस बात पर लिख रहे हैं कि लोगों को बहुत से नकारात्मक हमले झेलने पड़ते हैं, और उनके बीच से उबरकर जो लोग आगे बढ़ते हैं, वे कामयाब होते हैं। आज हिंदुस्तान में एक अभिनेत्री स्वरा भास्कर अपनी राजनीतिक विचारधारा के चलते हुए जिस तरह अपनी हर सोशल मीडिया पोस्ट पर सैकड़ों लोगों के गंदे, घिनौने, अश्लील, और हिंसक हमले झेलती है, वह देखकर दिल दहल जाता है। लेकिन ऐसा कोई भी हमला उसके हौसले को कम नहीं कर पाता और वह अपनी राजनीतिक विचारधारा के मुताबिक सामाजिक इंसाफ के लिए लगातार लड़ती रहती है। ऐसा काम कुछ अखबारनवीस भी करते हैं, ऐसा काम कई दूसरे लेखक भी करते हैं, जो कि ईमानदारी पर डटे रहते हैं।

अभी दो दिन बाद हिंदी के एक महानतम समझे जाने वाले कवि मुक्तिबोध की सालगिरह है, और लोग तरह-तरह के आयोजन में जुटे हुए हैं, इसलिए यह याद रखने की जरूरत है कि मुक्तिबोध के जीते-जी उनकी कविता की कोई किताब नहीं छपी थी। और आज हिंदुस्तान में हिंदी के कोई भी ऐसे गंभीर लेखक नहीं हैं, जो कि मुक्तिबोध को पढ़े बिना लेखक बने हों, या कि लिख रहे हों। तो मुक्तिबोध जैसे महान कवि को अपने जीते-जी अपनी कविताओं की कोई किताब देखने नहीं मिली। और आज हिंदुस्तान की कोई भी ऐसी सम्माननीय लाइब्रेरी नहीं है जो उनकी किताबों के बिना पूरी हो सकती हो। इसलिए लोगों को न खारिज होने से डरना चाहिए, न ही हमलावर लोगों से डर कर घर बैठना चाहिए। आगे बढऩे का रास्ता लोगों के फेंके पत्थरों से सीढिय़ां बनाकर ऊपर चढ़ते जाने से निकलता है, न कि उन पत्थरों को अपना नसीब मानकर उन्हें अपनी कब्र बना लेने से। यह चर्चा जरूरी इसलिए है कि हिंदुस्तान में पिछले कुछ वर्षों में जिस रफ्तार से आत्महत्याएं बढ़ी हैं, उनके पीछे इन निराश लोगों के साथ समाज का किया हुआ बर्ताव भी बहुत हद तक जिम्मेदार है। अब तमाम लोगों के बर्ताव को तो एकदम से सुधारा नहीं जा सकता, लेकिन हम निराश होने वाले लोगों का हौसला बढ़ाने के लिए उनके सामने यह हकीकत रख रहे हैं कि बहुत ही विपरीत और नकारात्मक स्थितियों में भी बहुत से लोग आगे बढ़ते हैं, और न केवल कामयाबी तक पहुंचते हैं, बल्कि और बहुत से लोगों को भी आगे बढ़ाते हैं। इसलिए हमले झेल रहे लोगों को न केवल खुद आगे बढऩा चाहिए, बल्कि उन्हें यह भी मानकर चलना चाहिए कि उन्हें मजबूत होकर ऐसे दूसरे लोगों की मदद भी करनी है जो समाज के इसी तरह के हमले झेल रहे हैं।
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