संपादकीय
कांग्रेस पार्टी के साथ शायद एक बुनियादी दिक्कत है कि जब कभी चुनाव सामने रहते हैं, उसके कोई ना कोई नेता ऐसे बयान देते हैं कि जिनसे पार्टी का भरपूर नुकसान हो सके। और मानो आज यह काफी नहीं था, तो कांग्रेस के केंद्रीय मंत्री रहे सलमान खुर्शीद ने अभी आई अपनी एक किताब में हिंदुत्व की तुलना आईएसआईएस और बोको हराम जैसे इस्लामिक आतंकी संगठनों से की है। इससे जिस किस्म का भी धार्मिक ध्रुवीकरण उत्तर प्रदेश के वोटरों के बीच होना है, वह तो होगा ही, लेकिन उससे पहले भी उनकी किताब में लिखी गई यह बात बड़ी अटपटी है, बड़ी नाजायज भी है। फिर यह आलोचना लिखने के लिए हमारी जरूरत नहीं रही क्योंकि उनकी किताब को लेकर जैसे ही यह खबर सामने आई, कांग्रेस के एक दूसरे बड़े मुस्लिम नेता, गुलाम नबी आजाद ने ट्विटर पर लिखा कि सलमान खुर्शीद ने अपनी किताब में भले ही हिंदुत्व को हिंदू धर्म की मिली-जुली संस्कृति से अलग एक राजनीतिक विचारधारा मानकर इससे असहमति जताई, लेकिन हिंदुत्व की तुलना आईएसआईएस और जिहादी इस्लाम से करना तथ्यात्मक रूप से गलत और अतिशयोक्ति है।
यह किताब अयोध्या पर आए फैसले पर लिखी गई है और जिस बात को लेकर बवाल खड़ा हो रहा है उस वाक्य में सलमान खुर्शीद ने लिखा है ‘भारत के साधु-संत सदियों से जिस सनातन धर्म और मूल हिंदुत्व की बात करते आए हैं, आज उसे कट्टर हिंदुत्व के जरिए दरकिनार किया जा रहा है। आज हिंदुत्व का एक ऐसा राजनीतिक संस्करण खड़ा किया जा रहा है जो इस्लामी जेहादी संगठनों आईएसआईएस, और बोको हराम जैसा है।’ जाहिर है कि इस बात पर बवाल तो होना ही था. सलमान खुर्शीद क्योंकि उत्तर प्रदेश के ही रहने वाले हैं इसलिए उन्हें यह पता होगा कि अगले कुछ महीनों में ही वहां पर चुनाव होने जा रहे हैं, और उत्तर प्रदेश के वोटरों के धार्मिक ध्रुवीकरण की तमाम कोशिशें चल रही हैं. इसलिए ऐसे मौके पर अपनी इस किताब का विमोचन करवाते हुए ऐसा तो है नहीं कि उन्हें उस किताब के बारे में पता नहीं होगा कि उसमें हिंदुत्व के बारे में उन्होंने क्या लिखा है। यह सिलसिला कांग्रेस को हर बार गड्ढे में ले जाकर डालता है। किताब मोटे तौर पर मंदिर के पक्ष में आए फैसले को अच्छा बता कर मंदिर का ही साथ देने वाली है। लेकिन यह लाइन जाहिर तौर पर हिंदुत्व और हिंदू धर्म दोनों से जुड़े हुए लोगों को विचलित करने वाली है।
पूरी किताब में जगह-जगह सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले को सही ठहराया गया है कि उसने बाबरी मस्जिद गिराने के बाद खाली हुई उस जगह पर मंदिर बनाने का फैसला दिया है। जबकि किताब के विमोचन के मौके पर मौजूद पिछले केंद्रीय मंत्री पी. चिदंबरम ने माइक से यह कहा था। ‘बहुत समय बीत जाने की वजह से दोनों पक्षों ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले को स्वीकार कर लिया। सुप्रीम कोर्ट का फैसला दोनों पक्षों ने स्वीकार कर लिया इस वजह से यह अच्छा फैसला हो गया, न कि फैसला अच्छा होने की वजह से दोनों पक्षों ने इसे स्वीकार किया।’ किसी बात को बिना किसी को जख्मी किए हुए भी कहा जा सकता है और चिदंबरम ने फैसले की आलोचना करते हुए भी आपा नहीं खोया और सलमान खुर्शीद ने फैसले की तारीफ में पूरी किताब लिखते हुए भी एक गलत लाइन लिखकर अपनी पार्टी को भारी नुकसान पहुंचा दिया है. फिर मानो यह बात काफी नहीं थी तो कांग्रेस के एक और मुस्लिम नेता और पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता राशिद अल्वी ने अभी एक समारोह में कहा कि जय श्री राम का नारा लगाने वाले सभी लोग मुनि नहीं हो सकते, इन दिनों जय श्री राम बोलने वाले कुछ लोग संत नहीं हैं, बल्कि राक्षस हैं।
इन दोनों मुस्लिम कांग्रेस नेताओं ने अपनी लंबी जिंदगी राजनीति में गुजारी है और हिंदुस्तान के वोटरों की भावनाओं से भी वे पूरी तरह वाकिफ हैं और चुनावी राजनीति में किसी बयान को तोड़-मरोड़ कर उसका कैसा बेजा इस्तेमाल किया जा सकता है इस प्रचलित चतुराई से भी दोनों का तजुर्बा रहा है। इसके बावजूद इस तरह की नाजायज बातों को करने का क्या मकसद हो सकता है? बिना किसी संदर्भ के आज किसी मुस्लिम कांग्रेस नेता को किसी हिंदू धार्मिक मुद्दे पर फिजूल की बात करना क्यों चाहिए? खासकर तब जबकि उसकी कोई जरूरत नहीं है? यह बात ठीक उसी तरह की है जिस तरह कि किसी मुस्लिम मुद्दे पर किसी हिंदू नेता को फिजूल की कोई बात क्यों करनी चाहिए खासकर तब जब उनकी पार्टी में उस मुद्दे पर बोलने के लिए मुस्लिम नेता मौजूद हैं। हमारी यह बात लोगों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के खिलाफ नहीं है, लेकिन हमारी यह बात किसी राजनीतिक दल को सावधानी सुझाने वाली है कि आज के घोर सांप्रदायिक हो चले सार्वजनिक जीवन में हर पार्टी के प्रवक्ता और नेताओं को किस तरह सावधान रहना चाहिए। आज जब कांग्रेस पार्टी के ही दिग्विजय सिंह संघ परिवार या हमलावर हिंदुत्व के खिलाफ लगातार बोलते हैं, तो उनकी बात को एक सांप्रदायिक मोड़ नहीं दिया जा सकता क्योंकि वह अपने-आपको एक धर्मालु हिंदू कहते और साबित करते आए हैं। आज यह सावधानी तमाम लोगों को बरतने की जरूरत है जो कि चुनावी राजनीति में हैं। और जो लोग हमारी तरह अखबारनवीसी में हैं वे फिर तमाम धर्मों के बारे में तमाम किस्म की बातें लिखें, और लोगों की नाराजगी झेलने के लिए तैयार भी रहें, लेकिन चूंकि हमें कोई वोट मांगने नहीं जाना है, और हम किसी संगठन के प्रति जवाबदेह नहीं हैं, इसलिए हम अपनी विचारधारा के प्रति प्रतिबद्धता के साथ अपनी मर्जी के मालिक हैं। लेकिन जब राजनीतिक दलों को अपनी दाढ़ी-टोपी, तिलक-आरती, और जनेऊ का सार्वजनिक प्रदर्शन करना पड़ता है तो ऐसे माहौल में उसके लोगों को सावधान भी रहना चाहिए।
आज तो हालत यह है कि किसी पार्टी से जुड़े हुए कोई वकील भी अदालत में किन मामलों को लड़ रहे हैं, इसका भी असर उनकी पार्टी की चुनावी संभावनाओं पर दिखता है। इसलिए सलमान खुर्शीद की बात न सिर्फ बुनियादी रूप से नाजायज बात है, बल्कि वह पार्टी को भारी नुकसान पहुंचाने वाली बात भी है। हिंदुस्तान अब उतने बर्दाश्त वाला देश नहीं रह गया है कि वह लोगों की लिखी हुई बातों का राजनीतिक इस्तेमाल न करे। और फिर सलमान खुर्शीद की अपनी नीयत शायद यही रही होगी कि वे उत्तर प्रदेश चुनाव के पहले मंदिर बनाने के अदालती फैसले की तारीफ में यह किताब लिखकर शायद उत्तर प्रदेश के बहुसंख्यक हिंदू वोटरों पर असर डाल सके, और किताब की एक लाइन ने इसका ठीक उल्टा असर डाल दिया है। कांग्रेस के बहुत से नेता इसके हर चुनाव के पहले इस तरह की हरकतें करते हैं, और कांग्रेस की विरोधी पार्टियों को घर बैठे उसका फायदा मिलता है।
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