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छत्तीसगढ़ एक खोज : बयालीसवीं कड़ी : प्रवीरचंद्र भंजदेव : एक अभिशप्त नायक या आदिवासियों के देवपुरुष
13-Nov-2021 2:03 PM
छत्तीसगढ़ एक खोज : बयालीसवीं कड़ी : प्रवीरचंद्र भंजदेव : एक अभिशप्त नायक या आदिवासियों के देवपुरुष

-रमेश अनुपम

प्रवीर चंद्र भंजदेव उन लोगों में से थे जो जीते जी मिथक बन चुके थे। पर सच्चाई यह है कि वे न मिथक थे और न ही कोई कल्पना, अपितु वे एक यथार्थ से कहीं अधिक यथार्थ थे। यथार्थ से भी कहीं अधिक आदिवासियों के स्वप्न और आकांक्षा के जीवंत प्रतीक थे।

राजा, महाराजा, शहजादा तो इस देश में बहुत हुए, ऐसे भी हुए जिन्हें स्वयं इतिहास ने ही भुला दिया और ऐसे भी जिन्हें इतिहास ने तो याद रखा पर जनता ने ही भुला दिया। प्रवीर चंद्र भंजदेव इन सबसे अलग, इन सबसे मौलिक और इन सबसे ऊपर थे।

प्रवीर चंद्र भंजदेव पर जो भी लिखा गया है या तो वह अतिरेक में लिखा गया है या फिर इस अंदाज में कि होगे राजा तुम, होगे आदिवासियों के मसीहा भी, हम भी कोई कम तीसमारखां नहीं हैं।

कांति कुमार जैन और उन्हीं की तरह ढेरों बस्तर विशेषज्ञ इसी श्रेणी में आते हैं जिन्होंने न तो प्रवीर चंद्र भंजदेव के साथ पूरी तरह न्याय किया है और न ही बस्तर के आदिवासियों के साथ।

इससे इंकार नहीं किया जा सकता है कि बस्तर और प्रवीर चंद्र भंजदेव को ठीक-ठीक समझ पाना बहुत कठिन है। उन्हें नए आलोक में समझने के लिए तर्क और प्रमाण जुटा पाना इससे भी दुष्कर कार्य है। जो लिखित इतिहास है वह इतिहास कम  और एक तरह से भड़ास या ज्ञान बघारने का माध्यम ज्यादा है। बस्तर के इतिहास को लेकर जो भी लिखा गया है उसकी पूर्ण व्याख्या, उसे गजेटियर और पुष्ट प्रमाणों के आधार पर एक नए आलोक में देखने की कहीं अधिक आवश्यकता है।

यह वही संभव कर सकता है जो बिना किसी पूर्वग्रह के बस्तर, बस्तर के आदिवासियों और प्रवीर चंद्र भंजदेव को समझने की चाह रखता हो।

यह सच है कि प्रवीर चंद्र भंजदेव बचपन से ही माता और पिता के प्यार तथा स्नेह से वंचित रहे। प्रवीर चंद्र भंजदेव जब सात वर्ष के अबोध बालक थे उसी समय उनकी मां राजमाता प्रफुल्ल कुमारी देवी का संदिग्ध परिस्थितियों में इंग्लैंड में निधन हो गया था।

सन् 1931 में राजमाता प्रफुल्ल कुमारी देवी को अंग्रेज सरकार ने इलाज के लिए इंग्लैंड भेज दिया था। उस समय प्रवीर चंद्र भंजदेव मात्र दो वर्ष के शिशु थे। उनका जन्म 25 जून सन् 1929 को शिलांग में हुआ था। शासकीय अभिलेखों में उनका जन्म 13 जून सन् 1929 माना गया है ।

मां के इलाज के लिए इंग्लैंड जाने के बाद दो वर्ष के अबोध शिशु पर क्या गुजरी होगी इसका महज अनुमान ही लगाया जा सकता है।

सन् 1931 से लेकर निधन (1936) तक राजमाता प्रफुल्ल कुमारी देवी इंग्लैंड में ही रही। पिता प्रफुल्ल चंद्र भंजदेव उड़ीसा के मयूरभंज रियासत के राजकुमार थे।

मां इंग्लैंड में पिता मयूरभंज में और प्रवीर चंद्र भंजदेव अकेले जगदलपुर के अपने राजमहल में। इसे काल की क्रूरता ही कहा जा सकता है कि सन् 1936 में मां का साया भी उनके सिर से उठ गया था।

राजमहल में चारों भाई बहन (कमला देवी, प्रवीर चंद्र, गीता देवी और विजय चंद्र ) नितांत अकेले रह गए थे। उनके पिता महाराजा प्रफुल्ल चंद्र भंजदेव जीवित थे, पर उनका बच्चों पर कोई अधिकार नहीं रह गया था। उनका बस्तर प्रवेश अंग्रेजी हुकूमत के द्वारा निषिद्ध था।

ऐसे में प्रवीर चंद्र भंजदेव और उनके तीन छोटे-छोटे भाई बहनों पर क्या बीती होगी ? इसका अनुमान लगाना कठिन है। उन बच्चों के कोमल मन को किस-किस तरह के आघात झेलने पड़े होंगे कल्पना करना मुश्किल है।

इन बच्चों की देख-रेख के लिए जो अंग्रेज रखे गए थे उन्हें ये भारतीय बच्चे भला कैसे पसंद आ सकते थे। उनके ह्रदय में इन अबोध बच्चों के लिए प्यार नहीं घृणा भरा हुआ था।

प्रवीर चंद्र भंजदेव सहित उनके तीन भाई बहनों की जिम्मेदारी अंग्रेज सरकार ने सेना के अंग्रेज अधिकारी जे.जी.गिब्सन तथा मिसेज गिब्सन को सौंपी थी, जो सन् 1936 से 1945 तक इन बच्चों की देख-रेख करते रहे। गिब्सन दंपत्ति का इन बच्चों के प्रति रवैया बहुत निराशाजनक था। गिब्सन दंपत्ति ने इन बच्चों के साथ एक तरह से अन्याय ही किया, उन मासूम बच्चों को प्यार नहीं तिरस्कार दिया।

उनके बचपन के सुंदर घरौंदे को रौंद डाला। उनकी कोमल भावनाओं को आहत किया। उनके अधरों में मुस्कान देने की जगह उनकी आंखों को आंसुओं से भर दिया।

अपने बच्चों की दुर्दशा देखकर महाराजा प्रफुल्ल चंद्र भंजदेव ने गिब्सन दंपत्ति के खिलाफ गवर्नर से शिकायत की और उन्होंने स्वयं बच्चों की देख-रेख करने की मांग की। पर अंग्रेज बहादुरों की मंशा कुछ अलग और महाराजा प्रफुल्ल चंद्र भंजदेव को सबक सिखाने की थी। वे तो चाहते ही थे बस्तर का राजपरिवार जो अंग्रेजों के प्रति वफादार नहीं है उसे चालाकी और धूर्तता के साथ नष्ट कर दिया जाए। महाराजा प्रफुल्ल चंद्र भंजदेव भी अत्यंत कुशाग्र  बुद्धि के असाधारण विद्वान व्यक्ति थे, सो अंग्रेज उन्हें फूटी आंखों से देखना भी पसंद नहीं करते थे।
 
गवर्नर से अपील करने का विपरीत असर पड़ा प्रफुल्ल चंद्र भंजदेव का बस्तर प्रवेश ही निषिद्ध कर दिया गया।

चारों अबोध बच्चे अंग्रेज रूपी राक्षसों के कैद में थे। मिस्टर गिब्सन और मिसेज गिब्सन जैसे क्रूर राक्षस के चंगुल से उन्हें कोई मुक्त नहीं करवा सकता था।

सन् 1946 से गिब्सन दंपत्ति की जगह एक दूसरी अंग्रेज दंपत्ति को इन बच्चों की देखभाल के लिए नियुक्त किया गया। गिब्सन दंपत्ति की जगह अब मैथ्यू दंपत्ति ने ले ली थी।

पी.सी. मैथ्यू और उनकी पत्नी गिब्सन दंपत्ति से भी ज्यादा क्रूर और षड्यंत्रकारी सिद्ध हुए। यह सब अंग्रेजों की सोची समझी चाल थी।

चारों बच्चे एक राक्षस की चंगुल से छूटकर दूसरे खतरनाक राक्षस की चंगुल में फंस चुके थे।

पुरानी कहानियों में ऐसे बच्चों को राक्षसों के चंगुल से आजाद कराने कोई न कोई तेजस्वी राजकुमार अवतरित हो जाया करते थे, जो राक्षसों को मारकर इन अबोध बच्चों को मुक्त करा लेते थे। पर

इस कहानी के भाग्य में ऐसा कुछ भी नहीं लिखा था।

इसी के चलते प्रवीर चंद्र भंजदेव की बड़ी बहन कमला कुमारी देवी मानसिक विकृति की शिकार हो गई और असमय काल के गाल में समा गई।
(बाकी अगले हफ्ते)

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