विचार / लेख
-रवीश कुमार
इस योजना से मिलने वाले रोजगार को लेकर अख़बारों में तीन आँकड़े हैं। तीनों अमर उजाला में छपे हैं। जानकारों के नाम पर दिए जाने वाले रोजगार के आंकड़ों की कोई विश्वसनीयता नहीं होती क्योंकि उनका न चेहरा होता है और न नाम छपता है। अमर उजाला ने 2019 में छापा था कि इस प्रोजेक्ट से सात लाख लोगों को रोजगार मिलेगा। फिर हाल में छापा कि साढ़े पाँच लाख लोगों को रोजगार मिलेगा। ढाई लाख रोजगार केवल खबर छपने के दौरान कम हो गए। अब जो सरकारी विज्ञापन आया है उसमें रोजगार की संख्या एक लाख बताई जा रही है। किस तरह के रोजगार होंगे इसकी कोई जानकारी नहीं हैं। कम पैसे में रखे जाने वाले सुरक्षा गार्ड होंगे या पोर्टर होंगे। इस तरह का कोई वर्गीकरण नहीं होता है। केवल एक लाख रोजगार बताया जाता है।
पिछले साल अक्टूबर में नितिन गडकरी ने असम में मल्टी मॉडल लॉजिस्टिक पार्क का शिलान्यास किया था। यह योजना सात सौ करोड़ की बताई गई है। मंत्री ने ऑन रिकार्ड कहा है कि इससे बीस लाख लोगों को रोजगार मिलेगा।
अब आप दिमाग लगाए, बस एक पल के लिए उसके बाद राजनीति में धर्म और तीर्थयात्रा की बात करने चले जाइयेगा।
नोएडा में बन रहा एयरपोर्ट कभी पाँच हज़ार तो कभी दस हजार करोड़ का बताया जाता है। हो सकता है इससे ज्यादा हो। लेकिन रोजगार एक लाख ही पैदा होंगे। दस हजार करोड़ के प्रोजेक्ट से एक लाख रोजगार और सात सौ करोड़ के प्रोजेक्ट से बीस लाख रोजगार?
समझे? बिल्कुल मत समझिए।
धर्म की बात कीजिए। तीर्थयात्रा का टिकट कटाईये और मस्त रहिए।
बस किसी से न कहें कि आप बेवकूफ भी हैं। बताने की कोई जरूरत नहीं है।