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छत्तीसगढ़ एक खोज: चौवालीसवीं कड़ी : प्रवीर चंद्र भंजदेव : एक अभिशप्त नायक या आदिवासियों के देवपुरुष
27-Nov-2021 12:58 PM
छत्तीसगढ़ एक खोज: चौवालीसवीं कड़ी :  प्रवीर चंद्र भंजदेव : एक अभिशप्त नायक या आदिवासियों के देवपुरुष

-रमेश अनुपम

दिल्ली से वापस बस्तर लौटते समय धनपूंजी नामक गांव में 11 फरवरी सन 1961 को प्रवीर चंद्र भंजदेव की तत्कालीन कांग्रेस सरकार द्वारा की गई गिरफ्तारी महज संयोग मात्र नहीं थी अपितु कांग्रेस सरकार का यह पहले से ही तयशुदा एजेंडा था।

मध्यप्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री कैलाशनाथ काटजू ने जैसे पहले ही यह ठान लिया था कि प्रवीर चंद्र भंजदेव को उनकी रियासत में घुसने से पहले ही गिरफ्तार कर मजा चखाना है।

इसके कारणों और घटनाओं को जानने के लिए थोड़ा इतिहास के पृष्ठों में जाना होगा।

सन् 1947 में देश आजाद हो गया था पर प्रशासनिक अधिकारियों का जनता के प्रति रवैया बिल्कुल ही नहीं बदला था। प्रवीर चंद्र भंजदेव के प्रति भी बस्तर के प्रशासनिक अधिकारियों का रवैया सम्मानजनक और सहानुभूतिपूर्ण नहीं था। कांग्रेस पार्टी का रवैया भी कमोबेश कुछ ऐसा ही था।

प्रवीर चंद्र भंजदेव को समझने की कोशिश न कांग्रेस सरकार ने की और न ही बस्तर के प्रशासनिक अधिकारियों ने। दोनों ने अपने अपने अहंकार और दंभ के चलते प्रवीर चंद्र भंजदेव को समझने में भूल की।

इसका परिणाम यह हुआ कि प्रवीर चंद्र भंजदेव को पागल करार कर दिया गया। यही नहीं बल्कि 20 जून सन् 1953 को प्रवीर चंद्र भंजदेव की सारी संपत्ति कोर्ट ऑफ वार्ड्स के अधीन कर ली गई। अर्थात अब महाराजा की अपनी संपत्ति पर ही किसी तरह का कोई अधिकार नहीं रह गया था।

सन् 1957 में देश में दूसरा आम चुनाव होना था। देश की आजादी के बाद प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू के नेतृत्व में पहला आम चुनाव सन् 1952 में संपन्न हो चुका था। कांग्रेस पूरे देश में भारी बहुमत से विजयी हुई थी।

पर बस्तर में बस्तर लोक सभा सीट पर कांग्रेस को करारी हार का सामना करना पड़ा था। बस्तर लोक सभा सीट से महाराजा प्रवीर चंद्र भंजदेव समर्थित तथा स्वतंत्र पार्टी के उम्मीदवार मुचाकी कोसा की 1 लाख 77 हजार से भी ज्यादा वोटों से जीत हुई थी। कांग्रेस उम्मीदवार सुरती क्रिस्टीया को मात्र 36 हजार वोट ही मिल पाए थे।

इसलिए बस्तर में सन् 1957 का आम चुनाव कांग्रेस के लिए काफी कुछ प्रतिष्ठापूर्ण चुनाव था।

कांग्रेस को तब तक यह पता चल चुका था कि महाराजा प्रवीर चंद्र भंजदेव की मदद के बिना बस्तर में सन् 1957 का दूसरा आम चुनाव जीत पाना संभव नहीं है।

इसका एक प्रमुख कारण यह भी था कि प्रशासनिक अमला और कांग्रेस पार्टी की लाख कोशिशों के बावजूद बस्तर में महाराजा प्रवीर चंद्र भंजदेव की लोकप्रियता कम होने के बजाय बढ़ती ही जा रही थी। बस्तर के आदिवासियों के लिए वे किसी देवपुरुष से कम नहीं थे। बस्तर के महाराजा के लिए भी बस्तर के भोले-भाले आदिवासी उनके अपने बच्चों की तरह थे, जिनके लिए वे सदैव चिंतित रहा करते थे।

सो महाराजा प्रवीर चंद्र भंजदेव की अपार लोकप्रियता को देखते हुए कांग्रेस के लिए यह जरूरी हो गया कि वह महाराजा के शरण में जाए। अत: कांग्रेस ने तय किया कि जिस महाराजा को पागल घोषित कर उसकी संपत्ति को कोर्ट ऑफ वार्ड्स के अधीन कर लिया था, उससे समझौता कर लिया जाए।

जो महाराजा कल तक कांग्रेस के लिए आंख की किरकिरी साबित हो रहे थे वही अब चुनाव जीतने के लिए उनकी आंखों का तारा बन चुके थे।

राजनीति जो न कराए सो कम है। चुनाव जीतना उन दिनों भी किसी राजनैतिक पैंतरा से कम नहीं था। छल, बल सब कुछ राजनीति में उन दिनों भी जायज माना जाता था।

कांग्रेस की ओर से महाराजा को संदेश भेजा गया कि वे आम चुनाव में कांग्रेस की मदद करें तो उनकी संपत्ति उन्हें वापस कर दी जाएगी।

यही नहीं उन्हें यह संदेशा भी भेजा गया कि कांग्रेस अब पहले जैसी कोई गलती नहीं करेगी और महाराजा प्रवीर चंद्र भंजदेव के प्रति पूर्ण सम्मान सहित उनके हितों का भी ध्यान रखेगी।

सन् 1957 के आम चुनाव में महाराजा प्रवीर चंद्र भंजदेव को जगदलपुर से तथा उनके अनुयायियों को अन्य जगहों से कांग्रेस के चुनाव चिन्ह दो बैलों की जोड़ी से चुनाव लड़वाया गया।

महाराजा प्रवीर चंद्र भंजदेव की बस्तर में अपार लोकप्रियता के चलते महाराजा सहित उनके सारे अनुयायी भारी बहुमत से चुनाव में विजयी हुए। यह बस्तर में कांग्रेस की सबसे बड़ी विजय सिद्ध हुई।

इस सबके बावजूद महाराजा प्रवीर चंद्र भंजदेव के साथ कांग्रेस ने न्याय नहीं किया वरन उन्हें धोखा ही दिया गया।

उनकी संपत्ति उन्हें वापस करने के बजाय कोर्ट ऑफ वार्ड्स के अधीन ही रखी गई। कांग्रेस ने आम चुनाव के पूर्व महाराजा से किए गए एक भी वायदे को पूरा नहीं किया। बल्कि उन्हें फिर से नीचा दिखाने की कोशिश की जाने लगी।

कारण स्पष्ट था महाराजा प्रवीर चंद्र भंजदेव आदिवासियों के शोषण के खिलाफ थे। वे बस्तर के जंगलों, पहाड़ों और खनिजों के दोहन के पूर्णत: खिलाफ थे। वे बस्तर के आदिवासियों के हर तरह की लूट के खिलाफ थे।

महाराजा प्रवीर चंद्र भंजदेव ने इस सबसे आहत होकर विधानसभा की सदस्यता तथा कांग्रेस पार्टी दोनों से ही इस्तीफा देना बेहतर समझा। उन्होंने समझ लिया था कि विधानसभा चुनाव जीतने के लिए कांग्रेस ने केवल और केवल उनका उपयोग ही किया है।

इधर बस्तर का प्रशासन भी जिन लोगों के हाथों में था वे भी न तो महाराजा प्रवीर चंद्र भंजदेव की भावनाओं और विचारों को ठीक-ठीक समझ पाने की कोई कोशिश रहे थे और न ही बस्तर के आदिवासियों की मूलभूत समस्याओं तथा पीड़ा की ही ईमानदारी के साथ थाह लेने का कोई सार्थक प्रयास।

उस समय की स्थिति को लेकर न कांग्रेस सरकार गंभीर थी और न ही बस्तर प्रशासन ही। दोनों ही इस मामले में निरंकुश और असंवेदनशील सिद्ध हुए।

इसलिए स्थितियां लगातार बिगड़ती चली गईं। इन बिगड़ती हुई स्थितियों को संभालने की चिंता न कांग्रेस सरकार को थी और न ही बस्तर प्रशासन के शीर्ष अधिकारियों को ही।
(बाकी अगले हफ्ते)

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