विचार / लेख
-ध्रुव गुप्त
क्या आपको पता है कि भारतीय स्वतंत्रता-संग्राम में शहादत सिर्फ उन वीरों की नहीं हुई थी जिन्होंने हथियारों के दम पर यह लड़ाई लड़ी थीं, कलम से आजादी की लड़ाई लडऩे वाला एक शख्स भी शहीद हुआ था ? मौलाना मोहम्मद बाक़ीर देश के पहले और शायद आखिरी पत्रकार थे, जिन्होंने 1857 में स्वाधीनता के पहले संग्राम में अपने प्राण की आहुति दी थी। मौलाना साहब अपने समय के बेहद निर्भीक पत्रकार रहे थे। वे उस दौर के लोकप्रिय ‘उर्दू अखबार दिल्ली’ के संपादक थे। दिल्ली और आसपास अंग्रेजी साम्राज्यवाद के खिलाफ जनमत तैयार करने में इस अखबार की बड़ी भूमिका रही थी। मौलाना साहब अपने अखबार में अंग्रेजों की विस्तारवादी नीति के विरुद्ध और उनके खिलाफ लड़ रहे सेनानियों के पक्ष में लगातार लिखते रहे। अंग्रेजों ने उन्हें बड़ा खतरा मानकर गिरफ्तार किया और सजा-ए-मौत दे दी। उन्हें तोप के मुंह पर बांधकर उड़ा दिया गया जिससे उनके वृद्ध शरीर के परखचे उड़ गए। यह दुर्भाग्य है कि आजादी की लड़ाई के इस शहीद पत्रकार को न कभी देश के इतिहास ने याद किया और न देश की पत्रकारिता ने।
इतिहास के इस विस्मृत नायक को नमन, उनकी शहादत की एक दुर्लभ तस्वीर के साथ!