संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : अन्धविश्वास के कारोबारी चारों तरफ छुट्टे घूम रहे हैं, नकेल डालने की जरूरत
01-Dec-2021 4:52 PM
‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय :  अन्धविश्वास के कारोबारी चारों तरफ छुट्टे घूम रहे हैं, नकेल डालने की जरूरत

दुनिया में नास्तिकों और तर्कवादियों की जरूरत हमेशा ही बनी रहती है। अभी हिंदुस्तान का एक सबसे लोकप्रिय टीवी कार्यक्रम ‘कौन बनेगा करोड़पति’ चल रहा है और अमिताभ बच्चन के पेश किये इस कार्यक्रम को करोड़ों लोग देखते हैं। उसमें आने वाले किसी एपिसोड का एक प्रोमो दिखाया गया जिसमें अमिताभ बच्चन के सामने खड़ी एक लडक़ी की आंखों पर पट्टी बंधी होती है, और वह लडक़ी दावा करती है कि वह किताब को सूंघकर ही उसे पूरा पढ़ सकती है। इसे देखते ही फेडरेशन ऑफ इंडियन रेशनललिस्ट एसोसिएशन ने तुरंत ही एक खुला खत लिखकर इस कार्यक्रम से इसका विरोध किया और कहा कि आमतौर पर मिड ब्रेन एक्टिवेशन का नाम लेकर बच्चों के मां-बाप को बेवकूफ बनाने का काम कारोबारी करते हैं, इसलिए ऐसे अंधविश्वास या धोखाधड़ी को इस कार्यक्रम में बढ़ावा देना गलत होगा। इस विरोध पर ‘कौन बनेगा करोड़पति’ के चैनल ने एक बयान भी जारी किया कि उसने इस खास एपिसोड के कुछ सीन हटा दिए हैं, और भविष्य में इस तरह की चीजों का ख्याल भी रखेगा।

कल ही सोशल मीडिया पर एक दूसरी कंपनी का एक इश्तिहार लोगों ने पोस्ट किया था जिसमें छोटे-छोटे बच्चों के लिए पब्लिक स्पीकिंग का कोर्स चलाने वाली कंपनी का दावा था, और माइक लिए हुए बच्चे की तस्वीर थी कि सार्वजनिक जीवन में भाषण देने या मंच और माइक संचालन करने जैसी बातों की ट्रेनिंग छोटे बच्चों को कैसे दी जा सकती है। जिस मिड ब्रेन एक्टिवेशन के बारे में रेशनलिस्ट फेडरेशन ने विरोध दर्ज कराया है, वह एक और बड़े अंधविश्वास की तरह लोगों के बीच में फैलाया जाता है कि इससे बच्चों की पढऩे की रफ्तार बढ़ जाती है उनके याद रखने की क्षमता बढ़ जाती है। ऐसे कारोबारी मोटी फीस के एवज में बच्चों को आँखों पर पट्टी बांधकर पढ़वाने का दवा भी करते हैं। लेकिन पहले जब कभी तर्कवादियों ने ऐसे कारोबारियों को इसके सार्वजनिक प्रदर्शन की चुनौती दी, ये कारोबारी भाग लिए।

इसी वजह से हम इन दो बातों को लेकर, मिलाकर एक साथ देख रहे हैं कि बच्चों को क्या याद रखने का एक कंप्यूटर बना दिया जाए, या कि पढऩे का एक स्कैनर बना दिया जाए, या कि बचपन से ही उन्हें मंच संचालन सिखा दिया जाए? क्या-क्या किया जाए ? छोटे-छोटे बच्चों को आखिर इस उम्र में ही किन बातों के लिए तैयार किया जाए? मां-बाप तो आईआईटी, आईआईएम जैसे दाखिलों के कई-कई बरस पहले से बच्चों की कोचिंग शुरु करवा देते हैं, और उनकी पढ़ाई तो किनारे धरी रह जाती है। मां-बाप उन्हें पूरी तरह से कोचिंग सेंटर की मशीन में झोंक देते हैं। जो स्कूली पढ़ाई बच्चों के लिए जरूरी होना चाहिए उसे खींच-तानकर पास होने लायक कर दिया जाता है, और बच्चों को सिर्फ अगले दाखिले के इम्तिहान के लिए तैयार किया जाता है। पढ़ाई के अलावा भी कई किस्म की दूसरी बातों के इश्तहार फिल्मी सितारे कर रहे हैं और मां-बाप अपने बच्चों को कुछ खास और कुछ अधिक देने के चक्कर में उन्हें तरह-तरह के कोर्स में झोंक दे रहे हैं। हिंदुस्तानी संपन्न मां-बाप इस बात को नहीं समझ पाते कि दुनिया में सबसे आगे बढऩे वाले बच्चे बस्ते के या तरह-तरह के कोर्स के बोझ के साथ आगे नहीं बढ़ते, वे उनकी कल्पना को खुला आसमान मिलने की वजह से आगे बढ़ते हैं, उन्हें मौलिक सोच का मौका मिलता है तो वे आगे बढ़ते हैं।

आज जिस तरह इस देश में बच्चों के लिए इश्तहारों के रास्ते पढ़ाई के तरह-तरह के औजार बेचे जा रहे हैं, जिस तरह उनकी पढऩे की ताकत और स्मरण शक्ति को बढ़ाने के लिए मिड ब्रेन एक्टिवेशन जैसी एक कल्पना को अंधविश्वास की तरह बढ़ाया और बेचा जा रहा है, उस बारे में हिंदुस्तानी मां-बाप को सावधान करने की जरूरत है। हिंदुस्तान के रेशनलिस्ट लोगों के संघ ने जिस तरह से अमिताभ बच्चन के कार्यक्रम में अंधविश्वास बढ़ाने का विरोध किया, वैसी पहल जगह-जगह उठानी पड़ेगी तब जाकर मां-बाप की आंखें खुलेंगी। आज कोई हिंदुस्तानी मां-बाप अपने बच्चों को उनकी अपनी कल्पना के मुताबिक आगे बढऩे देना नहीं चाहते, मां-बाप खुद तय करते हैं कि उन्हें अपने बच्चों को डॉक्टर बनाना है या इंजीनियर, या एमबीए करने भेजना है। ऐसे मां-बाप अपनी हसरत को अपने बच्चों की हकीकत पर थोप देते हैं। यह सिलसिला थमना चाहिए और लोगों को अपने आसपास के ऐसे अति उत्साही और अति महत्वाकांक्षी मां-बाप को समझ देने की कोशिश करनी चाहिए।
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