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पार्किंसंस पर रिसर्च करने वाले प्रोफेसर डीएस रावत बने राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी के फेलो
02-Dec-2021 2:43 PM
पार्किंसंस पर रिसर्च करने वाले प्रोफेसर डीएस रावत बने राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी के फेलो

नई दिल्ली, 2 दिसम्बर | दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर डीएस रावत को राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी के फेलो के रूप में चुना गया है। प्रोफेसर रावत बीते 100 वर्षों के इतिहास में यह सम्मान प्राप्त करने वाले रसायन विज्ञान विभाग, दिल्ली विश्वविद्यालय के तीसरे प्रोफेसर हैं। उनके पीएचडी पर्यवेक्षक डॉ डीएस भाकुनी को वर्ष 1977 में इस अकादमी का फेलो चुना गया था। राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी भारत की सबसे पुरानी साइंस एकेडमी है। प्रोफेसर रावत की प्रयोगशाला में विकसित अणुओं में से एक ने पार्किंसंस रोग के इलाज के लिए नैदानिक परीक्षणों में प्रवेश किया है।

गौरतलब है कि दुनिया भर में 10 मिलियन से अधिक लोगों को पार्किंसंस रोग है। पार्किंसंस रोग (पीडी) एक न्यूरो-डीजेनेरेटिव विकार है और इसके इलाज के लिए कोई दवा उपलब्ध नहीं है। हालांकि दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर डीएस रावत ने एक खास प्रोटीन की पहचान की है जिससे इस बीमारी का उपचार संभव है। इस अनुसंधान में मैकलीन अस्पताल, बोस्टन भी दिल्ली विश्वविद्यालय का सहयोगी है।

पीडी के सामान्य लक्षण कंपकंपी, अकड़न, धीमी गति और चलने में कठिनाई है, जो संज्ञानात्मक और व्यवहार संबंधी समस्याओं जैसे अवसाद, चिंता और उदासीनता का कारण बनता है।

इस रोग का प्राथमिक कारण मस्तिष्क के मध्य भाग में स्थित सब्सटेंशिया निग्रा में न्यूरॉन कोशिकाओं की मृत्यु है। यह डोपामाइन की कमी का कारण बनता है। कुछ प्रोटीन ऐसे हैं जो डोपामाइन न्यूरॉन्स के अस्तित्व के लिए आवश्यक हैं।

प्रो रावत ने बताया कि वह दवा खोज और नैनो-कैटेलिसिस के क्षेत्र में काम कर रहे हैं। उन्होंने 26 पीएचडी छात्रों का पर्यवेक्षण किया है और 44 के एच-इंडेक्स के साथ 157 शोध पत्र और नौ पेटेंट प्रकाशित किए हैं।

उन्होंने बायोएक्टिव समुद्री प्राकृतिक उत्पादों पर एक पुस्तक भी लिखी है। यह पुस्तक नोबेल पुरस्कार विजेता प्रोफेसर (सर) डीएचआर बार्टन, एफआरएस और द्वारा अग्रेषित की गई थी। पुस्तक की समीक्षा शीर्ष अंतरराष्ट्रीय रसायन विज्ञान पत्रिकाओं में से एक, जर्नल ऑफ अमेरिकन केमिकल सोसाइटी में प्रकाशित हुई थी।

प्रोफेसर रावत दिल्ली विश्वविद्यालय में डीन परीक्षा के रूप में कार्यरत रहे हैं। उनके नेतृत्व में दिल्ली विश्वविद्यालय की परीक्षा प्रणाली में कई सुधार शुरू किए गए, जैसे एक ही दिन में रिकॉर्ड 1.78 लाख डिजिटल डिग्री जारी करना, 28 दिनों में सभी यूजी पाठ्यक्रमों के परिणाम घोषित करना। उन्होंने एक साल की छोटी अवधि में पूरी परीक्षा प्रणाली को डिजिटल कर दिया है। (आईएएनएस)

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