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वसुंधरा राजे क्या अमित शाह के दौरे से पहले बीजेपी नेतृत्व पर दबाव बना रही हैं?
03-Dec-2021 3:33 PM
वसुंधरा राजे क्या अमित शाह के दौरे से पहले बीजेपी नेतृत्व पर दबाव बना रही हैं?

DIPRRAJASTHAN/BBC

-मोहर सिंह मीणा

राजस्थान की पूर्व मुख्यमंत्री एवं भारतीय जनता पार्टी की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष वसुंधरा राजे सिंधिया लंबे समय बाद राज्य में सक्रिय दिख रही हैं.

पिछले महीने वसुंधरा राजे ने 23 से 25 नवंबर तक छह ज़िलों में एक यात्रा निकाली. जिसे 'देवदर्शन यात्रा' का नाम दिया और इसे निजी यात्रा बताया.

हालांकि, इस यात्रा को पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व के लिए एक संदेश यात्रा की तरह देखा जा रहा है.

पूर्व में जब उन्होंने राज्य की दो बार सत्ता संभाली थी, तब उन्होंने मेवाड़ से ही शुरुआत की और इस बार भी मेवाड़ में चित्तौड़गढ़ से 'देवदर्शन यात्रा' की शुरुआत की है.

वसुंधरा राजे और उनकी इस सक्रियता को लेकर राज्य बीजेपी के पदाधिकारी कुछ भी कहने से बच रहे हैं और इसे सिर्फ़ धार्मिक यात्रा करार दे रहे हैं.

लेकिन, बताया जा रहा है कि वसुंधरा की सक्रियता से राज्य से लेकर दिल्ली बीजेपी तक में सुगबुगाहट शुरू हो गई है.

अचानक से पांच दिसंबर को केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह का जयपुर में कार्यक्रम और कार्यसमिति की बैठक में शामिल होने को भी इससे जोड़ कर ही देखा जा रहा है.

वसुंधरा राजे की छह ज़िलों की यात्रा में भाजपा पदाधिकारियों ने भले ही दूरी बनाई हो लेकिन, इस यात्रा में बड़ी संख्या में वसुंधरा समर्थक और विधायक शामिल हुए.

उपचुनाव में बीजेपी से बाग़ी होकर चुनाव लड़ने वाले प्रत्याशी भी वसुंधरा के साथ नज़र आए.

राज्य में हुए आठ विधानसभा उपचुनाव से वसुंधरा राजे ने दूरी बनाए रखी और इन उपचुनाव में बीजेपी को सात सीटों पर हार मिली. जबकि धरियावद में पार्टी तीसरे और वल्लभनगर में चौथे स्थान पर रही.

राज्य में जहां भी वसुंधरा राजे हावी हैं, वहां बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनिया का विरोध भी दिखा है. ऐसे में वसुंधरा राजे अपनी सक्रियता से संदेश देना चाहती हैं कि उनके बिना राज्य में बीजेपी का सरकार बनाना आसान नहीं होगा.

वरिष्ठ पत्रकार अवधेश अकोदिया कहते हैं, "निकाय चुनाव और उपचुनाव को वसुंधरा राजे मौक़े की तरह देख रही हैं. वह पार्टी नेतृत्व को जताना चाहती हैं कि यहां बिना चेहरे के जाना ख़तरे से खाली नहीं है."

वह कहते हैं, "आने वाले समय में वसुंधरा राजे और सक्रिय होंगी और चाहेंगी कि इस तरह के हालात बनें कि जिन पर नेतृत्व भरोसा कर रहा है वो काबिल नहीं हैं."

वसुंधरा की यात्रा को लेकर बीजेपी प्रवक्ता एवं विधायक राम लाल शर्मा ने कहा, "राजनीति से धर्म को निकाल देंगे तो कुछ बचेगा भी नहीं. यह उनकी धार्मिक यात्रा थी, उन्होंने पहले भी कहा कि यह मेरी धार्मिक यात्रा है."

इतना ही नहीं वसुंधरा राजे अपने समर्थकों की दो टीमें भी तैयार कर चुकी हैं, जो लंबे समय से राज्य के सभी 33 ज़िलों और 200 विधानसभा सीटों पर कार्य कर रही है.

एक है 'टीम वसुंधरा' और दूसरी है 'वसुंधरा समर्थक मंच'. यह दोनों टीमें सभी क्षेत्रों में वसुंधरा राजे के प्रचार और उनके लिए अभी से चुनाव कार्यों में जुट गई है.

इन टीमों में महिला मोर्चा, युवा मोर्चा, किसान मोर्चा, ओबीसी मोर्चा समेत सभी स्तर पर मोर्चा बनाए जा चुके हैं.

टीम वसुंधरा के प्रदेशाध्यक्ष गौरव जिंगड़ कहते हैं, "सभी 33 ज़िलों और सभी 200 विधानसभा क्षेत्रों में वसुंधरा राजे समर्थक कार्यकर्ताओं के साथ कार्यक्रम की शुरुआत करेंगे. लोगों को तैयार कर रहे हैं, हम वसुंधरा राजे को अपना आदर्श मानते हैं."

जबकि, वसुंधरा समर्थक मंच के प्रदेशाध्यक्ष विजय भारद्वाज बताते हैं, "वसुंधरा राजे पहली महिला मुख्यमंत्री हैं जिन्होंने भाजपा की पूर्ण रूप से सरकार बना कर राजस्थान में दी है. हम उनके कार्यकाल की योजनाएं, नीतियां और उपलब्धियां जनता के बीच ले जा रहे हैं."

भारद्वाज कहते हैं, "हर वर्ग यही चाहता है कि 2023 में वसुंधरा राजे ही राजस्थान की सत्ता संभालें."

इन टीमों के गठन और कार्यों से बीजेपी में मुख्यमंत्री की दौड़ में शामिल कई नेताओं को ख़ासी आपत्ति भी है कि भाजपा संगठन के साथ ही कैसे वसुंधरा राजे समर्थन में अलग से संगठन काम कर रहे हैं.

क्या अलग रास्ता ले सकती हैं?
राजस्थान में बीजेपी के मुख्यमंत्री का चेहरा भैरों सिंह शेखवात के बाद वसुंधरा राजे ही रही हैं.

राजस्थान की राजनीति पर नज़र रखने वालों की माने तो केंद्र में नरेंद्र मोदी और अमित शाह के आने के बाद स्थितियां बदलती हुई नज़र आई हैं.

अब चर्चा तेज़ है कि वसुंधरा राजे नई पार्टी बना कर आगामी विधानसभा चुनाव में उतर सकती हैं. वरिष्ठ पत्रकार अवधेश अकोदिया कहते हैं, "नहीं, वह पार्टी तो नहीं बनाएंगी और न ही वह पार्टी छोड़ कर जाएंगी."

अकोदिया आगे कहते हैं, "वह पार्टी को विश्वास दिलाएंगी कि बिना चेहरे के चुनाव नहीं जीत सकते हैं. यदि पार्टी फिर भी तैयार नहीं हुई तो वह चाहेंगी कि उनके समर्थकों को ज़्यादा से ज़्यादा टिकट मिले."

राजस्थान भाजपा के एक पदाधिकारी ने नाम नहीं छापने की शर्त पर कहा, "वसुंधरा राजे ख़ुद पार्टी नहीं बनाएंगी, वह भाजपा में ही रहेंगी. हां, वह अपने समर्थकों से पार्टी ज़रूर बनवा कर सेंट्रल लीडरशिप पर दबाव डाल सकती हैं."

वसुंधरा राजे क्या नई पार्टी बनाने पर विचार कर रही हैं. क्या वह सीएम का चेहरा नहीं बनाए जाने पर बग़ावत कर सकती हैं?

इस सवाल पर वसुंधरा राजे की पूर्व सरकारों में मंत्री रहे और उनके समर्थक यूनुस ख़ान कहते हैं, "जिनकी मां ने पार्टी को खड़ा करने में मदद की. जिन्होंने राजस्थान में पार्टी को खड़ा किया. वह इस मुकाम और इस जगह आकर ऐसा क्यों सोचेंगी."

वह कहते हैं, "मैडम के साथ हमने पार्टी के लिए पहले भी काम किया था और आगे भी करेंगे. नेतृत्व जिसको भी चेहरा बनाएगा उसको हमारा समर्थन रहेगा."

वसुंधरा दबाव की राजनीति कर रही हैं?
"हमारी मुख्यमंत्री कैसी हों! वसुंधरा राजे जैसी हो." यह नारे अजमेर में वसुंधरा राजे की धार्मिक यात्रा के मंच पर लग रहे थे. इसी दिन अजमेर में ही एक विज्ञापन छपा था, "पूनिया को भगाना है, भाजपा को बचाना है."

चर्चाएं हैं कि यह नारे और विज्ञापन जान-बूझकर लगवाए और छपवाए गये थे.

वरिष्ठ पत्रकार अवधेश अकोदिया कहते हैं, "वसुंधरा राजे अपने को पॉलिटिकली एक्टिव भी दिखाना चाहती हैं और कोई पॉलिटिकल प्रोग्राम भी नहीं करना चाहती हैं. इसलिए अन्य तरीका उन्होंने ढूंढ लिया है."

अकोदिया यह भी मानते हैं कि वसुंधरा राजे पर ख़ुद के ही खेमे का भी दबाव है. यदि बस चुपचाप रहेंगी तो उनके समर्थक अपना कोई अन्य ठिकाना ढूंढ लेंगे.

अमित शाह की बैठक होगी महत्वपूर्ण
राजस्थान बीजेपी के लिए पांच दिसंबर को अमित शाह का दौरा बेहद मायने रखता है. समझा जाता है कि वह 2018 के बाद मुख्य रूप से पार्टी नेताओं का मन टटोलने के लिए आ रहे हैं.

उनको जैसलमेर बीएसएफ के कार्यक्रम में जाना था. लेकिन, इसके साथ ही उन्होंने राज्य में भाजपा कार्यसमिति की बैठक में शामिल होने कार्यक्रम बनाया है.

वह, जयपुर में रोड शो के बाद प्रतिनिधि सम्मेलन में शामिल होंगे. इसमें, प्रधान, प्रमुख, विधायक, पूर्व विधायक, सांसद, पूर्व सांसद, विधायक प्रत्याशी, पार्टी पदाधिकारी समेत दस जनप्रतिनिधि शामिल होंगे.

माना जा रहा है कि वह आपसी गुटबाजी और पार्टी लाइन से इतर कार्य करने वालों को कड़ा संदेश दे कर जाएंगे. विशेष रूप से उनका जयपुर आ कर बैठक में शमिल होना कहीं न कहीं वसुंधरा राजे की सक्रियता पर चर्चा को लेकर भी महत्वपूर्ण माना जा रहा है.

राजस्थान विधानसभा चुनाव 2023 में हैं. लेकिन, उससे पहले उत्तर प्रदेश में चुनाव होने हैं. उत्तर प्रदेश चुनाव के परिणाम राजस्थान में भाजपा और वसुंधरा राजे की रणनीति ज़रूर तय करेंगे.

माना जा रहा है कि यदि उत्तर प्रदेश चुनाव में भाजपा को बहुमत से जीत मिलती है तो राजस्थान में बिना चेहरे के भाजपा चुनावी मैदान में उतर सकती है. या जिसे भी पार्टी चाहेगी चेहरा बना सकती है.

वहीं यदि उत्तर प्रदेश में भाजपा को हार का सामना करना पड़ा तो निश्चित रूप से राजस्थान में वसुंधरा राजे ज़्यादा मज़बूत हो जाएंगी. (bbc.com)

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