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यूरोप: कच्चे माल की आपूर्ति में कमी से अक्षय ऊर्जा के विस्तार पर संकट
04-Dec-2021 2:24 PM
यूरोप: कच्चे माल की आपूर्ति में कमी से अक्षय ऊर्जा के विस्तार पर संकट

तेल और गैस के आयात पर यूरोपीय संघ की निर्भरता के बारे में सार्वजनिक बहसें बढ़ रही हैं. वहीं, दूसरी ओर कच्चे माल की कमी की वजह से अक्षय ऊर्जा का विस्तार धीमा हो गया है. इसकी एक वजह चीन भी है.

  डॉयचे वैले पर सैर्जियो मातालुची की रिपोर्ट-

डीकार्बनाइजेशन एक जटिल प्रक्रिया है. इसका तात्पर्य इस बात पर फिर से विचार करना है कि हमारी अर्थव्यवस्थाएं किस तरह से सुचारू रूप से काम कर सकती हैं. वर्तमान में, जलवायु-तटस्थ ऊर्जा प्रणालियों को अक्षय ऊर्जा वाले प्लांट और इसके भंडारण के लिए जरूरी कच्चे माल की आवश्यकता है. जैसे-जैसे जलवायु लक्ष्यों को प्राप्त करने की महत्वाकांक्षा बढ़ती जा रही है, कच्चे माल की कीमतें बढ़ रही हैं. इससे अक्षय ऊर्जा में निवेश करना थोड़ा अधिक महंगा हो गया है और भू-राजनीतिक तनावों का सामना करना पड़ रहा है.

निवेश, सप्लाई चेन और लॉजिस्टिक के साथ महामारी से जुड़ी समस्याओं ने स्थिति को और गंभीर बना दिया है. यूरोपीय फोटोवोल्टिक सिस्टम डेवलपर्स ने हाल ही में बताया कि ज्यादातर सौर पैनल चीन में उत्पादित होते हैं. ये पैनल पहले की तुलना में अधिक महंगे हो गए हैं. साथ ही, आसानी से मिल भी नहीं पा रहे हैं.  जानकारों का मानना है कि आने वाले कुछ वर्षों तक, इस तरह की समस्याओं का सामना करना होगा.

कीमतों में अस्थिरता
आईआरईएनए इनोवेशन ऐंड टेक्नोलॉजी सेंटर के निदेशक डॉल्फ गिलेन ने डीडब्ल्यू को बताया, "हाल के महीनों में कई वस्तुओं की कीमतों में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है. हालांकि, तेल और प्राकृतिक गैस की कीमतों में भी काफी वृद्धि हुई है." आईआरईएनए अंतरराष्ट्रीय अक्षय ऊर्जा एजेंसी है. ऊर्जा के क्षेत्र से जुड़े विशेषज्ञ कहते हैं कि ई-मोबिलिटी की वजह से कच्चे माल की मांग बढ़ गई है, क्योंकि कई नए बैटरी कारखाने बनाए जा रहे हैं. हालांकि, अभी भी इस बात को लेकर अनिश्चितता बनी हुई है कि आने वाले समय में बैटरी बनाने के लिए किस चीज का इस्तेमाल किया जाएगा.

गिलेन कहते हैं, "आने वाले समय में किस तरह की बैटरी दिखेगी, यह भी एक बड़ा सवाल है. कुछ साल पहले, हर कोई कोबाल्ट के बारे में बातें कर रहा था, लेकिन अब ऐसा लग रहा है कि कोबाल्ट पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध नहीं है. कैथोड के इस्तेमाल को लेकर भी अभी उहापोह की स्थिति है." बड़ी खनन परियोजनाओं को अमल में आने में कम से कम दो साल लगते हैं. साथ ही, लंबी अवधि की योजना को लेकर सुरक्षा की जरूरत होती है, खासकर कीमतों में उतार-चढ़ाव को लेकर. 2017 में लीथियम की कीमतें काफी कम हो गई थीं, लेकिन पिछले कुछ महीनों में इसकी कीमत दोगुनी से ज्यादा बढ़कर रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच चुकी है. गिलेन के मुताबिक, हमें ऐसे उतार-चढ़ाव की आदत डाल लेनी चाहिए.

लीथियम और निकेल पर विचार
गिलेन कहते हैं, "अगर लीथियम का इस्तेमाल करना है, तो हमें इस दशक में इसके खनन में पांच गुना वृद्धि करनी होगी. हालांकि, कई अन्य विकल्पों पर भी विचार किया जा रहा है." लीथियम का इस्तेमाल विशेष रूप से बैटरी बनाने में किया जाता है. विशेषज्ञ कहते हैं, "इसका खनन कोई बड़ा मुद्दा नहीं है. असली मुद्दा इसका प्रसंस्करण है. बैटरी बनाने के लिए, लीथियम के प्रसंस्करण में चीन का प्रमुख स्थान है. चीनी कंपनियां कई सारी नई लीथियम संयंत्र खरीद रही हैं."

वहीं, यूरोपीय संघ में नए खनन और प्रसंस्करण संयंत्रों की मदद से लीथियम संबंधी जरूरतों को पूरा किया जा सकता है. चेक रिपब्लिक, पुर्तगाल, स्पेन और जर्मनी के साथ-साथ यूनाइटेड किंगडम और सर्बिया सहित अन्य यूरोपीय देशों के पास लीथियम की आपूर्ति करने का अवसर है. हालांकि, नई खनन परियोजनाओं के लिए स्थानीय स्तर पर स्वीकृति समस्या बनी हुई है.

बैटरी के उत्पादन के लिए निकेल की भी काफी जरूरत होती है. गिलेन कहते हैं, "इंडोनेशिया, फिलिपींस को पीछे छोड़ते हुए निकेल का प्रमुख उत्पादक बन सकता है. वहीं, चीन बड़ी मात्रा में निकेल का प्रसंस्करण कर रहा है. हालांकि, इंडोनेशिया अपनी पुरानी नीतियों को बदल रहा है और अपने देश में ही निकेल के प्रसंस्करण की तैयारी कर रहा है. ऐसे में चीन और इंडोनेशिया निकेल बाजार पर हावी हो सकते हैं." कुल मिलाकर अगले 10 साल में निकेल की मांग दोगुनी होने की उम्मीद है. यूरोपीय संघ के पास अपनी जरूरत को पूरा करने के लिए पर्याप्त निकेल है जो फिनलैंड और न्यू कैलेडोनिया में मौजूद है.

दुर्लभ खनिज
ऊर्जा के बदलाव की इस प्रक्रिया के तहत तीसरी जरूरी जो चीज है वह है रेयर अर्थ. यूरोपियन बैंक फॉर रिकंस्ट्रक्शन ऐंड डेवलपमेंट की मुख्य अर्थशास्त्री बेयाटा जावोर्चिक का कहना है कि चीन इस मामले में यूरोप और अमेरिका से आगे है. जावोर्चिक ने डीडब्ल्यू को बताया, "2010 तक चीन ने 90 प्रतिशत रेयर अर्थ का खनन पर अपना नियंत्रण स्थापित कर लिया था. इसने रेयर अर्थ के निर्यात पर प्रतिबंध लगाकर पूरी दुनिया को चौंका दिया था. हालांकि, अमेरिका और यूरोपीय संघ ने चीन के इस फैसले को चुनौती दी और जीत हासिल की. हालांकि, इस बात की आशंका अभी भी बनी हुई है कि निर्यात पर फिर से प्रतिबंध लागू हो सकता है."

चीन ऐसा अकेला देश नहीं है जिसने निर्यात पर प्रतिबंध लगाया है. जावोर्चिक कहते हैं, "विश्व व्यापार संगठन के मुताबिक निर्यात पर प्रतिबंध लगाना अवैध है, लेकिन कई देशों ने ऐसा किया है." अमेरिका और चीन के बीच पेचीदा संबंधों के अलावा, कार्बन उत्सर्जन से बचने के यूरोपीय संघ के प्रयास के कई और नतीजे सामने आ सकते हैं. कार्बन का उत्सर्जन करने वाली कंपनियां उन देशों में स्थानांतरित हो सकती हैं जहां सख्त नियम-कानून नहीं हैं.

यूरोपीय संघ के विकल्प
यूरोपीय संघ के संस्थान बैटरी उत्पादन के लिए, स्थानीय आपूर्ति श्रृंखला के बाजार-संचालित निर्माण को बढ़ावा देने के कई कार्यक्रमों पर भी काम कर रहे हैं. इस महीने की शुरुआत में, कनाडा की नियो परफॉर्मेंस मैटेरियल्स ने एस्टोनिया के रेयर अर्थ में निवेश की योजनाओं की घोषणा की. यह कंपनी 2024 तक स्थायी चुंबक का भी निर्माण कर सकती है. हाल के निवेश के बावजूद, यूरोपीय संघ अब भी रेयर अर्थ, बैटरी, और पीवी मॉड्यूल के आयात पर निर्भर है. हालांकि, यह ब्लॉक पवन चक्की के क्षेत्र में मजबूत है.

एसोसिएशन विंड यूरोप में रिसर्च और इनोवेशन मैनेजर अलेक्जेंडर वैंडेनबर्ग ने कहा, "यूरोप में स्थापित लगभग 99% पवन टरबाइन का निर्माण इसी महाद्वीप पर होता है. चूंकि यूरोपीय कंपनियां इस क्षेत्र का नेतृत्व कर रही हैं, इसलिए हम अंतरराष्ट्रीय तकनीकी मानकों को निर्धारित कर सकते हैं. अगले कुछ वर्षों में पवन टरबाइनों में भारी बदलाव नहीं आएगा."

यूरोप में पवन ऊर्जा की वजह से खनन क्षेत्र के लिए कुछ निश्चितता पैदा होती है. हालांकि, दूसरी ओर यूरोपीय संघ में पवन उद्योग के लिए, रेयर अर्थ का आयात काफी जरूरी है. ऐसे में कीमतों में भारी वृद्धि इस क्षेत्र के विस्तार को धीमा कर सकती है. अगले पांच वर्षों में, घरेलू उत्पादन के बावजूद यूरोपीय पवन क्षेत्र को नुकसान होने की संभावना है. विंड यूरोप के कम्युनिकेशन मैनेजर क्रिस्टॉफ सिप्फ ने कहा, "कच्चे माल की मौजूदा उच्च कीमतें यूरोप में पवन ऊर्जा के क्षेत्र में काम करने वाली कंपनियों के लिए मुश्किल हालात पैदा कर रही है."
(dw.com)

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