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H.A.HONGNAO KONYAK
नगालैंड के मोन ज़िले के तिरु इलाक़े में शनिवार रात सुरक्षाबलों की कार्रवाई में आम लोगों की मौत होने से नगा शांति वार्ता को झटका लग सकता है.
अंग्रेज़ी अख़बार इंडियन एक्सप्रेस ने सूत्रों के हवाले से लिखा है कि सरकार से बात कर रहे समूह को लोगों के गुस्से के दबाव में बातचीत रोकनी पड़ सकती है.
एक वरिष्ठ सुरक्षा अधिकारी ने अख़बार को बताया, "ये नागालैंड पुलिस का अभियान नहीं था जिसमें लोगों द्वारा चुनी गई सरकार को ज़िम्मेदार ठहराया जा सके और जिसमें स्थानीय पुलिसकर्मी शामिल होते हैं. ये भारतीय सेना का अभियान था जो बुरी तरह ग़लत हो गया.''
"ये भारत बनाम नगा की लंबे समय से चली आ रही धारणा को बदल देगा. इससे अस्थायी तौर पर ही सही लेकिन विद्रोही समूहों को मज़बूती मिलेगी. इस मामले में केंद्र सरकार को कुशलता के साथ ज़िम्मेदार लोगों के ख़िलाफ़ तुरंत और प्रकट तौर पर कार्रवाई करनी होगी."
केंद्र सरकार लंबे समय से नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ़ नगालैंड (एनएससीएन) के अलग-अलग धड़ों को राज़ी करने में जुटी हुई थी. पिछले कुछ वर्षों में सरकार वार्ता का विरोध करने वाले कुछ समूहों को बातचीत की मेज़ पर लाने में कामयाब रही है.
इसमें कांगो कॉन्याक और निकी सुमी के समूह शामिल हैं जो पहले एनएससीएन के वार्ता विरोधी धड़े एनएससीएन-के का हिस्सा था.
निकी सुमी एनएससीएन-के के सैन्य कमांडर थे जिसका नगालैंड-म्यांमार सीमा से लगे ज़िलों में खासा प्रभाव है.
सूत्रों के मुताबिक इस घटना से भारत समर्थक समूहों पर भी लोगों की भावनाओं के अनुरूप चलने का दबाव होगा. अब तक केवल एनएससीएन-आईएम ही नगा शांति वार्ता में बाधा बनती आई है. दूसरे नगा समूह चाहते हैं कि वार्ता को जल्द से जल्द अंतिम रूप दिया जाए. लेकिन, अब ये घटना एनएससीएन-आईएम को वार्ता में भारत पर दबाव बनाने और अन्य समर्थक समूहों को अपनी आवाज़ उठाने के लिए दबाव बनाने में मदद करेगी.
हालांकि, केंद्र सरकार में एक सूत्र ने कहा, "अगर सरकार कुशलता के साथ इस मामले को संभालती है तो इसका बहुत अधिक प्रभाव नहीं होगा. तनाव वाले इलाक़ों में ऐसी हिंसा बहुत बड़ा झटका नहीं है भले ही वो कई सालों से ना हुई हो. कुछ आवाज़ें उठाई जाएंगी लेकिन अधिकतर समूह जानते हैं कि वो क्या चाहते हैं और बातचीत उसी पर होगी." (bbc.com)