विचार / लेख
-कविता कृष्णन
जिनके लेखन, कविता, पत्रकारिता, राजनीतिक आदर्श आदि का हम आदर करते हैं, उनके खिलाफ यौन उत्पीडऩ, यौन हिंसा आदि के आरोपों पर हमारा रिस्पॉन्स कैसा होना चाहिए? मेरा मानना है कि यह संभव और उचित है कि किसी के काम का आदर करते हुए उनको हम यौन उत्पीडऩ आदि के लिए जवाबदेह रखने में सफल हो सकते हैं।
पाब्लो नेरुदा ने अपने आत्मकथा में श्री लंका में उनके कमरे से मल ढोने वाली महिला के साथ बलात्कार का खुद विवरण किया। फि़ल्मकार ङ्खशशस्र4 ्रद्यद्यद्गठ्ठ ने अपनी ही 7 वर्षीय बेटी पर यौन हिंसा किया और क्रशद्वड्डठ्ठ क्कशद्यड्डठ्ठह्यद्मद्ब ने 13 वर्षीय बच्ची का बलात्कार किया। कवि नागार्जुन पर पिछले वर्ष आरोप लगा कि उन्होंने एक छोटी बच्ची पर यौन हिंसा किया। क्या हम यौन हिंसा पर चुप मार लें या उसे झूठा बता दें महज इसलिए कि यह हमारे चहेते व्यक्ति के प्रति हमारे प्रेम और आदर के लिए असुविधाजनक है? ऐसा करके हम कह रहे हैं कि यौन हिंसा झेलने वालों का जीवन, हमारे चहेते व्यक्ति की शोहरत से कम मूल्य रखता है।
ताजा उदाहरण पत्रकार विनोद दुआ का है। हिंदी पत्रकारिता जिस समय गोदी मीडिया संकट से गुजर रहा है उसी समय दुआ ने निस्संदेह उसकी लाज रखी। पर प्तरूद्गञ्जशश के आरोपों के मामले में दुआ पत्रकारिता और पर्सनल दोनों मामलों में जो मानक हैं उन पर खरे नहीं उतरे। उनके लिए लिखे जाने वाले दर्जनों ओबिचूएरी में इस मामले पर चुप्पी, महिलाओं के अस्तित्व और इंसानियत को खारिज करता है।
दुआ पर आरोप लगाने वाली महिला क्या चाहती थी? शायद सिर्फ इतना कि वे कई वर्षों पहले के उनके किए के लिए वे माफी माँगें, स्वीकार करें कि उन्होंने किसी युवा महिला के साथ अन्याय किया।
पर ऐसा करने के बजाय दुआ ने महिला पर झूठ बोलने का आरोप लगाया। एंकर होने के प्लेटफार्म का दुरुपयोग किया और द वायर द्वारा बनाए गए जाँच कमेटी के सामने पेश ही नहीं हुए। उस महिला के बयान कहीं से भी कमजोर नहीं था- वे खुद सेक्युलर है और उनके पास दुआ पर गलत आरोप लगने के लिए कोई मकसद नहीं है।
ये ‘कैन्सल कल्चर’ नहीं है। विनोद दुआ के काम को खारिज करने को नहीं कहा जा रहा है। पर उनका व्यक्तिगत असेस्मेंट करते हुए इस यौन उत्पीडऩ वाले पक्ष को और उसके साथ उस महिला और सभी महिलाओं के मूल्य को सिरे से कैन्सल (खारिज) मत करिए।