संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : परिवार की नाक सिर्फ लडक़ी, और महिला से ही कटती है, यह देश क्या कभी सुधरेगा?
07-Dec-2021 5:23 PM
‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय :  परिवार की नाक सिर्फ लडक़ी, और महिला से ही कटती है, यह देश क्या कभी सुधरेगा?

घरेलू हिंसा के मामलों पर कितना लिखा जाए और कितना उन्हें अनदेखा किया जाए, यह फैसला आसान नहीं होता। घरेलू हिंसा की खबरों को भी कितना छापा जाए और कितना छोड़ दिया जाए यह बात भी परेशान करती है, और क्या हिंसा की ऐसी खबरों से और लोगों को हिंसा सूझती है या फिर ऐसी खबरों से लोग सावधान होते हैं, यह समझना भी कुछ मुश्किल रहता है। बहुत से लोग तो टीवी पर अपराध के कार्यक्रम इसलिए देखते हैं कि उन्हें लगता है कि इन्हें देखकर भी अपराध के शिकार होने से बच सकते हैं, कई दूसरे लोगों का मानना रहता है कि इससे लोगों को अपराध करना सूझ सकता है या जिन्होंने अपराध करना तय कर लिया है उन्हें यह सुझा सकता है कि अपराध कैसे किया जाए। जो भी हो, बीच-बीच में कुछ खबरें ऐसी आती है जिन्हें अनदेखा करना मुमकिन नहीं होता, न समाचार के रूप में, न विचार के रूप में. ऐसी ही एक खबर महाराष्ट्र की है जहां औरंगाबाद जिले में एक हिंदू लडक़ी ने एक हिंदू लडक़े से परिवार की मर्जी के खिलाफ शादी की, और कुछ महीनों बाद जब वह गर्भवती थी, उसकी मां उससे मिलने आई। उसे बेटी के गर्भवती होने का पता लगा और उसके बाद दोबारा वह अपने बेटे के साथ वहां आई, और उन दोनों ने मिलकर उसका कत्ल कर दिया, मां ने पैर पकड़े, बेटे ने बहन का सिर धड़ से अलग कर दिया और फिर उसके घर के बाहर आकर लोगों को उसका कटा हुआ सिर दिखाया, उसके साथ सेल्फी ली और फिर मोटरसाइकिल से थाने जाकर मां के साथ अपने को कानून के हवाले कर दिया। ऐसा लगता है कि मां और बेटे की तसल्ली इस कत्ल से ही पूरी हुई कि बेटी ने अपनी मर्जी से शादी की थी तो उन्होंने बेटी को ही खत्म कर दिया। गांव के लोगों का कहना है कि लडक़ा आर्थिक रूप से कमजोर था और लडक़ी की मां अपने बेटे सहित इस बात को अपना अपमान मान रही थी और परिवार की प्रतिष्ठा खराब होने की सोच ने उन्हें इस हत्या तक पहुंचा दिया। यह दूसरी ऑनर किलिंग के मुकाबले कुछ अधिक खतरनाक है जहां पर पिता और भाई मिलकर हत्या करते हैं, इसे एक मामले में तो मां और बेटे ने मिलकर ऐसा कत्ल किया, इतने खूंखार तरीके से किया, और उस पर फख्र भी किया। अपनी गर्भवती बेटी को इस तरह मारने वाली मां के मन में क्या रहा होगा और यह समाज की कैसी व्यवस्था है जो कि मां और भाई को इस हद तक हिंसक बना देती है, इस बारे में सोचने की जरूरत है।

हिंदुस्तान में हिंदू समाज के एक बड़े हिस्से में परिवार की प्रतिष्ठा को लडक़ी या महिला से जोडक़र देखा जाता है। अगर लडक़ी ने दूसरे धर्म या जाति में शादी की या कि किसी गरीब से शादी की, या कि अपनी मर्जी से शादी की, तो उसका परिवार उसके कत्ल पर उतारू हो जाता है। लेकिन शायद ही कहीं ऐसा सुनाई पड़ता होगा कि किसी लडक़े ने यही काम किया हो और उस लडक़े को उसके परिवार ने मारा हो। ऐसी हिंसा कहीं सुनाई नहीं पड़ती कि लडक़े के किसी काम को परिवार अपने खानदान की बेइज्जती मानता हो। लडक़ा भले बलात्कारी हो, उससे कोई फर्क नहीं पड़ता, उससे कोई अपमान नहीं होता, लेकिन लडक़ी के साथ अगर बलात्कार कोई और कर दे तो भी उससे लडक़ी का अपमान होता है, और उसे डूब मरने लायक मान लिया जाता है, और लडक़ी को भी इस बात का एहसास होता है कि उसका परिवार और समाज उसके बारे में क्या सोच रहा है और इसीलिए वह अपने बलात्कार के बाद बिना किसी जुर्म के खुद फंदे पर टंग जाती है। किसी बलात्कारी के परिवार का कोई भी फंदे पर टंगता हो ऐसा कहीं सुनाई नहीं पड़ता। बलात्कारी के माँ-बाप को भी औलाद के कुकर्म पर ऐसी शर्म नहीं आती कि वे आत्महत्या कर लें। हम कहीं भी यह बात नहीं सुझा रहे हैं कि बलात्कारी के मां-बाप को आत्महत्या करना चाहिए, लेकिन हम बलात्कारी के जुर्म को, परिवार और समाज को देखते हैं, और दूसरी तरफ बलात्कार की शिकार लडक़ी को मुजरिम की तरह देखने वाले परिवार और समाज को भी देखते हैं। जब कभी दो धर्मों के या दो जातियों के लोगों के बीच शादी होती है, तो ऑनर किलिंग के नाम पर केवल लडक़ी को मारा जाता है। या फिर लडक़ी के घर वाले लडक़े को भी मारते हैं। लडक़े का परिवार कभी लडक़ी को नहीं मारता कि लडक़े ने नीची जाति या दूसरे धर्म में शादी की, उससे परिवार का अपमान हो गया है। कुल मिलाकर किसी भी पहलू से देखें तो दिखता यही है कि परिवार या समाज के सम्मान का बोझ लडक़ी के सिर पर रखा जाता है, और लडक़ा या मर्द मानो कुछ भी कर ले, उनका सम्मान कभी बिगड़ नहीं सकता, न ही उनकी वजह से परिवार का सम्मान बिगड़ सकता।

मर्दवादी सोच से बना हुआ यह समाज किसी कोने से बदलते हुए नहीं दिखता है, और महाराष्ट्र की यह ताजा हिंसा अकेली नहीं है। हिंदुस्तान में शायद हर बरस सौ-पचास ऐसी ऑनर किलिंग कहीं जाने वाली हिंसा होती है जिसमें लडक़ी को मार दिया जाता है, या लडक़ी के मां-बाप लडक़े-लडक़ी दोनों को मार देते हैं। इस बात पर लिखने की जरूरत हमें इसलिए लग रही है कि यह हिंसा की एक पराकाष्ठा है, लेकिन अगर हम इस तनाव को देखें तो समाज में जब लडक़े लडक़ी को अपनी मर्जी से मोहब्बत करने, उठने-बैठने, साथ रहने या शादी करने से इस तरह रोका जाता है, तो इससे उनकी दिमागी हालत पर जो फर्क पड़ता होगा उसका अंदाज लगाना चाहिए। नौजवान पीढ़ी की महत्वाकांक्षाओं को निजी जिंदगी में भी खत्म किया जाता है और उनके सार्वजनिक जीवन में भी। वे अपनी मर्जी की पढ़ाई नहीं कर सकते, अपनी मर्जी का काम नहीं कर सकते, अपनी मर्जी से मोहब्बत और शादी नहीं कर सकते, और वे जवान होकर अधेड़ होने लगते हैं, तब तक उन्हें मानो पतलून भी अपने मां-बाप के पसंद किए हुए कपड़े से सिलानी पड़ती है। यह पूरा सिलसिला मानसिक रूप से बीमार एक समाज का सुबूत है जो कि अपनी अगली पीढ़ी को अपने पूर्वाग्रहों का कैदी बनाए रखना चाहता है। यह सिलसिला न सिर्फ अहिंसक है बल्कि यह सिलसिला समाज के आगे बढऩे की राह में बहुत बड़ा रोड़ा है। आज दुनिया में जो भी देश आगे बढ़ रहे हैं वहां पर नौजवानों को अपनी जिंदगी अपने तरीके से जीने की आजादी है। दुनिया में खुशहाली के पैमानों पर आज जो देश सबसे ऊपर हैं वहां पर लोगों को यह भी आजादी है कि वे बच्चे पैदा करने के लिए शादी करें या ना करें। ऐसे देश जहां पर कोई पूछते भी नहीं है कि बच्चों के मां-बाप शादीशुदा है या नहीं, उन्हीं देशों का नाम खुशहाल देशों के पैमाने पर सबसे ऊपर आता है। वे देश व संपन्नता और विकास में भी ऊपर रहते हैं। एक खुशहाल युवा पीढ़ी एक उत्पादक युवा पीढ़ी भी रहती है जो राष्ट्रीय संपन्नता में योगदान दे पाती है, और जो अगली पीढ़ी को भी एक खुशहाल भविष्य देकर जाती है।

हिंदुस्तान में शहंशाह अकबर की कहानी जिस तरह सलीम और अनारकली की हसरतों को कुचलने वाली रही है, वही कहानी कई पीढिय़ों बाद भी, सैकड़ों बरस बाद भी घर-घर में दोहराई जाती है जहां मोहब्बत के दुश्मन बनकर खड़े हुए मां-बाप अगली पीढ़ी पर लगातार हिंसा करते हैं, लेकिन चूंकि वह हिंसा मरने और मारने तक नहीं पहुंचती है, इसलिए उसकी अधिक चर्चा नहीं होती है। हिंदुस्तान में यह सिलसिला कैसे खत्म होगा पता नहीं, क्योंकि दूसरे धर्म या दूसरी जाति में शादी करने के खिलाफ परिवार के अलावा समाज भी खड़ा हो जाता है, राजनीतिक दल भी खड़े हो जाते हैं, और सांप्रदायिक संगठन तो लाठी लिए हुए खड़े ही रहते हैं। हिंदुस्तान का यह बीमार समाज अगली पीढिय़ों को लगातार बीमार किए जा रहा है। ऐसे ही मौकों पर शहरीकरण काम आता है जहां जाकर रहते हुए लोग अपनी मर्जी से कुछ कर सकते हैं। जहां कहीं गांव की बात आती है तो वहां पर अपनी मर्जी का कुछ भी नहीं हो पाता क्योंकि लोगों को यह लगता है कि अपनी बराबरी में, अपनी जाति में, और अपने धर्म में शादी अगर नहीं होगी तो परिवार की नाक कट जाएगी। यह सिलसिला पता नहीं कब खत्म होगा क्योंकि जब परिवार अपनी गर्भवती बेटी को मारकर फख्र हासिल करता है तो फिर वैसी सोच को समझाकर क्या बदला जा सकता है?
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