सामान्य ज्ञान
22 दिसंबर 1953 को न्यायाधीश न्यायमूर्ति फजल अली की अध्यक्षता में पहले राज्य पुनर्गठन आयोग का गठन हुआ। इस आयोग ने 30 सितंबर 1955 को अपनी रिपोर्ट सौंपी। इस आयोग के तीन सदस्य - न्यायाधीश न्यायमूर्ति फजल अली, हृदयनाथ कुंजरू और केएम पाणिक्कर थे। वर्ष 1955 में इस आयोग की रिपोर्ट आने के बाद ही 1956 में नए राज्यों का निर्माण हुआ और 14 राज्य और 6 केन्द्र शासित राज्य बने। तेलंगाना राज्य के गठन के पूर्व तक भारत में कुल 28 राज्य और 7 केंद्र शासित राज्य हैं। भारत के 28वें राज्य के रूप में 15 नवंबर 2000 को झारखंड राज्य का गठन हुआ।
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 3 में नए राज्य के गठन की शक्तियां संसद को दी गई हैं। इसके गठन की प्रक्रिया के निम्नलिखित चरण होते हैं- संबंधित राज्य के विधानसभा में अलग राज्य बनाए जाने संबंधी प्रस्ताव पारित किया जाता है। प्रस्ताव पर केंद्रीय मंत्रिमंडल की सहमति ली जाती है। अहम मसलों पर विचार के लिए मंत्रिसमूह का गठन किया जाता है। मंत्रिसमूह की सिफारिश पर केंद्र विधेयक का एक मसौदा तैयार करता है जिस पर मंत्रिमंडल की दोबारा स्वीकृति ली जाती है। सिफारिशों को राष्ट्रपति के पास भेजा जाता है। राष्ट्रपति इसे संबंधित विधानसभा में उसके सदस्यों की राय जानने के लिए भेजते हैं। राय जानने के लिए राष्ट्रपति द्वारा एक निश्चित समयावधि तय की जाती है। बिल के मसौदे को वापस केंद्र के पास आने पर राज्य के विधायकों की राय को शामिल करते हुए गृह मंत्रालय एक नया मंत्रिमंडल नोट तैयार करता है।
राज्य पुनर्गठन विधेयक को केंद्रीय मंत्रिमंडल की स्वीकृति के लिए अंतिम रूप से भेजा जाता है। उसके बाद इसे संसद में पेश किया जाता है। जहां इसे दोनों सदनों से साधारण बहुमत से पारित किया जाना होता है। राष्ट्रपति की स्वीकृति के बाद नया राज्य गठित हो जाता है।
राज्यों के गठन का संवैधानिक प्रावधान
अनुच्छेद 3. नए राज्यों का निर्माण और वर्तमान राज्यों के क्षेत्रों, सीमाओं या नामों में परिवर्तन--संसद, विधि द्वारा--
(क) किसी राज्य में से उसका राज्यक्षेत्र अलग करके अथवा दो या अधिक राज्यों को या राज्यों के भागों को मिलाकर अथवा किसी राज्यक्षेत्र को किसी राज्य के भाग के साथ मिलाकर नए राज्य का निर्माण कर सकेगी;
(ख) किसी राज्य का क्षेत्र बढ़ा सकेगी;
(ग) किसी राज्य का क्षेत्र घटा सकेगी;
(घ) किसी राज्य की सीमाओं में परिवर्तन कर सकेगी;
(ङ) किसी राज्य के नाम में परिवर्तन कर सकेगी:
(परंतु इस प्रयोजन के लिए कोई विधेयक राष्ट्रपति की सिफारिश के बिना और जहां विधेयक में अंतर्विष्ट प्रस्थापना का प्रभाव राज्यों में से किसी के क्षेत्र, सीमाओं या नाम पर पड़ता है वहां जब तक उस राज्य के विधान-मंडल द्वारा उस पर अपने विचार, ऐसी अवधि के भीतर जो निर्देश में विनिर्दिष्ट की जाए या ऐसी ?अतिरिक्त अवधि के भीतर जो राष्ट्रपति द्वारा अनुज्ञात की जाए, प्रकट किए जाने के लिए वह विधेयक राष्ट्रपति द्वारा उसे निर्देशित नहीं कर दिया गया है और इस प्रकार विनिर्दिष्ट या अनुज्ञात अवधि समाप्त नहीं हो गई है, संसद के किसी सदन में पुर:स्थापित नहीं किया जाएगा)।