संपादकीय
दुनिया के सौ प्रमुख अर्थशास्त्रियों ने मिलकर विश्व असमानता रिपोर्ट जारी की है, इस रिपोर्ट की प्रस्तावना भारतीय मूल के नोबेल पुरस्कार विजेता अभिजीत बनर्जी ने लिखी है। रिपोर्ट को देखें तो समझ आता है कि दुनिया में गरीब और अमीर के बीच फासला कितना बड़ा है, और कितना बढ़ते चल रहा है। लेकिन इससे बड़ी बात हिंदुस्तान के लिए यह है कि हिंदुस्तान गरीब और अमीर के बीच बहुत बड़ी असमानता वाला देश है। यहां पर अमीर लोग बहुत अधिक अमीर हैं, और गरीब लोग बहुत गरीब, और पिछले एक-दो बरस में गरीबों की हालत खराब हुई है. भारत में आर्थिक आधार पर नीचे की 50 फीसदी आबादी की कमाई गिर गई है, और संपन्न तबके की कमाई बढ़ गई है। रिपोर्ट की जानकारी को देखें तो यह दिखाई पड़ता है कि भारत में सबसे ऊपर के 10 फ़ीसदी लोग 57 फीसदी कमाई पर काबिज हैं, और इनमें भी एक फीसदी ऐसे हैं जो राष्ट्रीय आय के 22 फीसदी पर काबिज हैं। दूसरी तरफ देश की 50 फीसदी गरीब आबादी पिछले एक बरस में 13 फीसदी कमाई खो बैठी है। रिपोर्ट में इस बात को खुलकर कहा है कि भारत गरीबी और अमीरी के बीच फासले की एक जलती हुई मिसाल है।
भारत में आर्थिक असमानता के ये आंकड़े बहुत भयानक हैं, लेकिन इनको समझते हुए यह भी देखना होगा कि जब-जब इस देश में कुपोषण से गरीबों की बदहाली की रिपोर्ट आती है तो पता लगता है कि उसी के एक या दो दिन बाद भारतीय शेयर बाजार आसमान पर पहुंच जाता है। जब पता लगता है कि देश में बेरोजगारी बढ़ गई है, लोगों के पास खाने-पीने को नहीं है, लोगों को महंगाई बर्दाश्त नहीं हो पा रही है, और उस वक्त शेयर मार्केट एक नया रिकॉर्ड बनाने लगता है, पुराने रिकॉर्ड तोडऩे लगता है. जाहिर है कि देश की सबसे बड़ी कंपनियां, या देश का सबसे संपन्न तबका, इनका कोई भी लेना-देना जमीनी हकीकत से नहीं है, आम जनता से तो बिल्कुल भी नहीं है। जब लोगों के पास खाने को नहीं है उस वक्त हिंदुस्तानियों को शेयर बाजार में पूंजी निवेश से फुर्सत नहीं है। आज जो रिपोर्ट दुनिया भर में छपी है उस रिपोर्ट की हकीकत हिंदुस्तानी शेयर बाजार पहले ही साबित करते आया है। आम जनता की तकलीफ, उसकी बदहाली, उसकी भूख, और उसकी बेरोजगारी इन सबके बीच हिंदुस्तान में एक-एक बड़ी कंपनी एक-एक दिन में दसियों हजार करोड़ रुपए की पूंजी बढ़ा लेती है। यह पूरा सिलसिला हिंदुस्तान को दो हिस्सों में बांटता है। और अभी जब एक किसी कॉमेडियन ने किसी दूसरे देश में जाकर हिंदुस्तान के दो हिस्सों के बारे में कविता पढ़ी, तो उसे गद्दार और देशद्रोही करार देते हुए उसके खिलाफ पुलिस में रिपोर्ट दर्ज करवाने की कोशिश की गई कि उसने देश को बदनाम किया है। अब अभिजीत बनर्जी के खिलाफ भी कोई जाकर पुलिस में रिपोर्ट लिखा सकते हैं कि हिंदुस्तान में गरीबी और अमीरी के इस फैसले को इस तरह से दिखाना हिंदुस्तान के साथ गद्दारी है। यह एक अलग बात है कि अभिजीत बनर्जी का हिंदुस्तान से कोई खास लेना-देना रहा नहीं है वे अमेरिका में रहते हैं, वहीं के विश्वविद्यालय में पढ़ाते हैं, और वहीं पर उनके काम के लिए उन्हें और उनकी पत्नी को, एक और सहयोगी के साथ नोबेल अर्थशास्त्र पुरस्कार मिला है। लेकिन फिर भी वे भारतवंशी हैं इसलिए उन्हें गद्दार करार देने का हक तो इस देश के लोगों का बनता है, फिर चाहे वे एक आईना दिखाने की कोशिश कर रहे हो। हिंदुस्तान की हकीकत बताती है कि बहुत गरीब लोगों के पास तो आईना खरीदने के लिए पैसे भी नहीं रहते, और न ही उनकी अपनी हालत आईने में देखने लायक रहती इसलिए अगर कोई आईना दिखा रहे हैं तो जाहिर तौर पर वह संपन्न तबके को दिखा रहे हैं, और ऊंची कमाई वालों को नीचा दिखाना देश के साथ एक किस्म की गद्दारी तो करार दी ही जा सकती है।
लेकिन हिंदुस्तान की यह हकीकत सडक़-चौराहों से लेकर फुटपाथ, और मजदूर बस्तियों से लेकर देश की संसद और विधानसभाओं तक सभी जगह दिखती है। आज हालत यह है कि देश की आधी गरीब आबादी की जरूरतों पर जिन सदनों में चर्चा होनी चाहिए, वहां करोड़पति भीड़ हो चुकी है। इतने संपन्न लोगों की मजलिस भला क्या खाकर देश के सबसे गरीब लोगों की जरूरतों पर बात कर सकती है? इसलिए यह पूरा सिलसिला जनतंत्र के नाम पर धनतंत्र का एक ऐसा शिकंजा है जो गरीबों को जकडक़र रखता है ताकि वे अमीरों पर कोई हमला न कर बैठें, कहीं उनके हितों में हिस्सा न बताने लगें, कहीं वहां अपना हक न मानने लगें। असमानता की रिपोर्ट दिल दहलाती है, और बताती है कि हिंदुस्तान के लोकतंत्र में लोक की जगह नहीं रह गई है, अब तंत्र ही तंत्र रह गया है जो कि सबसे महंगे जूतों की पॉलिश करने में लगा हुआ है। (क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)