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बिपिन रावतः गोली खाने वाला, बेबाक बोलने वाला, राजनीतिक जरनल
09-Dec-2021 2:29 PM
बिपिन रावतः गोली खाने वाला, बेबाक बोलने वाला, राजनीतिक जरनल

भारत के पहले चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ जनरल बिपिन रावत की बुधवार को एक हादसे में मौत हो गई. उन्हें उनकी बहादुरी और बेबाकी के अलावा उनके विवादित बयानों के लिए भी याद रखा जाएगा.

   (dw.com)

भारत के पहले चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ जनरल बिपिन रावत खुलकर बोलने वाले और सैनिकों के हिमायती जनरल माने जाते थे. हालांकि बहुत से लोग उन्हें ध्रुवीकरण करने वाले सेना प्रमुख के रूप में भी देखते हैं लेकिन वह ऐसे जनरल थे जिनकी हिम्मत और जज्बे को पूरी दुनिया की सेनाओं में सम्मान मिला.

बुधवार को एक हेलीकॉप्टर हादसे में जनरल बिपिन रावत और उनकी पत्नी मधुलिका समेत 13 लोगों की मौत हो गई. तमिलनाडु में सुलुर से वेलिंगटन जाते वक्त कुन्नूर के पास उनका हेलीकॉप्टर हादसे का शिकार हो गया था.

63 वर्षीय जनरल रावत सेना में अपनी सेवाएं देते हुए सीमा पर गोलीबारी में एक बार घायल भी हुए थे और पहले भी एक हेलीकॉप्टर हादसे में बाल-बाल बचे थे.

गोली खाने वाला जनरल
रावत एक सैन्य परिवार से आते थे. उनकी कई पीढ़ियां सेना में सेवा दे चुकी हैं. उन्होंने 1978 में सेकेंड लेफ्टिनेंट के तौर पर सेना में शुरुआत की थी. कश्मीर में एक सीमा चौकी पर तैनाती के वक्त पाकिस्तानी फौज से मुठभेड़ में वह घायल हो गए थे.

इंडिया टुडे पत्रिका को एक इंटरव्यू में उन्होंने बताया था, "पाकिस्तान से हम पर भारी गोलीबारी होने लगी. एक गोली मेरे टखने में लगी और एक कील मेरे दाहिने हाथ को छूकर निकल गई.” इसके लिए उन्हें इंडिया वूंड मेडल मिला था.

जनरल रावत ने संयुक्त राष्ट्र के शांति सैनिक के तौर पर डीआर कॉन्गो में भी सेना का नेतृत्व किया. जब उन्होंने 2008 में यूएन की नॉर्थ कीवू ब्रिगेड की कमान संभाली तो वह लेफ्टिनेंट जनरल थे. वहां उन्होंने शांति अभियान का चेहरा ही बदल दिया.

एक संवाददाता को उन्होंने बताया था, "यूएन चार्टर के सातवें अध्याय में हमें कुछ मामलों में बल प्रयोग की इजाजत है. इसके बावजूद हम अपने हथियारों से लड़ ही नहीं रहे थे.” वहां पहुंचने के महीनेभर के भीतर उन्होंने ताकत का इस्तेमाल बढ़ाया जिससे स्थानीय लोगों में भरोसा जगा कि यूएन शांति सैनिक उनकी सुरक्षा कर सकते हैं.

चार दशक लंबे अपने करियर के दौरान जरनल रावत ने भारतीय कश्मीर के अलावा चीन से लगती सीमा पर भी सेवाएं दीं. 2015 में उन्होंने म्यांमार में अलगाववादियों के खिलाफ अभियान का नेतृत्व किया था. यह विदेशी जमीन पर भारत का सार्वजनिक रूप से स्वीकृत पहला हमला था. उसी साल नागालैंड में वह हादसे में बाल-बाल बचे थे जब उनका हेलीकॉप्टर उड़ान भरने के दस सेकेंड बाद जमीन पर आ गिरा था. तब उन्हें मामूली चोटें आई थीं.

अपने सैनिकों के लिए हमेशा खड़े रहने के उनके रवैये के चलते वह भारतीय सैनिकों के बीच खासे लोकप्रिय थे. जनरल बिपिन रावत 2017 से 2019 तक भारतीय थल सेना के प्रमुख रहे थे. इसके बाद उन्हें देश का पहला चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ बनाया गया, जिस पद के लिए काफी समय से चर्चा चल रही थी.

राजनीतिक जनरल
कई पड़ोसी देशों जैसे पाकिस्तान, बांग्लादेश और म्यांमार के उलट भारत में सेना अब तक राजनीति से दूर रही है. लेकिन जनरल बिपिन रावत ने सीधे-सीधे सत्तारूढ़ पार्टी की राजनीतिक लाइन पर बयान दिए. इस वजह से उन्हें एक हिंदू राष्ट्रवादी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के करीबी के तौर पर भी देखा जाता था. वह विदेश नीति और भूराजनीतिक मुद्दों के अलावा घरेलू राजनीति पर भी बोलते थे.

जनरल बिपिन रावत के कई बयानों पर विवाद हुआ था. सेना प्रमुख रहते हुए उन्होंने कहा था कि देश के नागरिकों को सेनाओं से डरना चाहिए. 2017 में उन्होंने सैनिकों से कहा था, "दुश्मनों को आपसे डरना चाहिए और साथ-साथ आपके अपने लोगों को भी आपसे डरना चाहिए. हम एक दोस्ताना फौज हैं लेकिन जब हमें कानून-व्यवस्था स्थापित करने के लिए बुलाया जाता है तो लोगों को हमसे डरना चाहिए.”

दो साल बाद मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और विपक्षी नेताओं ने जनरल रावत पर अपनी शपथ का उल्लंघन करने का आरोप लगाया जब उन्होंने नए नागरिकता कानून का विरोध कर रहे लोगों की आलोचना की.

जनरल रावत ने कई बार नेपाल में चीन की गतिविधियों पर भी बयान दिए थे. चीन की सेना ने हाल ही में उनके एक बयान पर आपत्ति जताई थी जिसमें उन्होंने कहा था कि चीन भारत के लिए सबसे बड़ा खतरा है.

विवादित जनरल
कई लोग कहते थे कि रिटायरमेंट के बाद जनरल रावत चुनाव लड़ सकते हैं. समलैंगिकों की भारतीय सेना में भर्ती के मुद्दे पर सेना प्रमुख रहते हुए उन्होंने कहा था, "अपने रूढ़िवादी समाज से भारत की फौज की सोच काफी मिलती है. सेना रूढ़िवादी है. हम ना आधुनिक हुए हैं ना हमारा पश्चिमीकरण हुआ है.”

2017 में रावत ने कश्मीरी आंदोलनकारियों पर टिप्पणी करते हुए कहा था कि वे हमारी फौज पर सिर्फ पत्थर क्यों फेंकते हैं. उन्होंने कहा था कि अगर वे हथियारों का इस्तेमाल करते तो "ज्यादा खुशी होती” क्योंकि तब उन्हें हम जैसा चाहे जवाब दे सकते थे.

सेना प्रमुख के तौर पर उन्होंने उस मेजर तरुण गोगोई को मेडल भी दिया था जिसने एक कश्मीरी नागरिक को जीप पर बांध कर ढाल के तौर पर इस्तेमाल किया था. उन्होंने कहा था, "यह एक छद्म युद्ध है. और छद्म युद्ध गंदा होता है. इसे गंदे तरीके से ही लड़ा जाता है.”

वीके/एमजे (एएफपी, रॉयटर्स)

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