संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : बिना अधिक हल्ले के केंद्र सरकार लाने जा रही है एक और डिजिटल औजार, जो हो सकता है हथियार..
15-Dec-2021 3:51 PM
 ‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : बिना अधिक हल्ले के केंद्र सरकार लाने जा रही है एक और डिजिटल औजार, जो हो सकता है हथियार..

अभी हिंदुस्तान में आधार कार्ड को लेकर लोगों की जिंदगी की निजता भंग होने की फिक्र टली नहीं है कि एक और फिक्र का सामान तैयार होने लगा है। केंद्र सरकार यह योजना बना रही है कि भारतीय डाक-तार विभाग देश के हर घर, दुकान, मकान का एक डिजिटल नंबर तैयार करेगा जो कि उस घर का पोस्टल एड्रेस रहेगा। यह बात सुनने में बहुत अच्छी लगती है कि लोगों को लंबा-चौड़ा पता लिखने के बजाय सिर्फ एक डिजिटल नंबर डाल देना काफी होगा लेकिन बात इतनी आसान भी नहीं रहेगी। हर मकान, दुकान, दफ्तर का एक नंबर रहेगा और उस नंबर से वहां पहुंचने वाली चिट्टियां, वहां पहुंचने वाले सामान पहुंच जाएंगे। आज जिस तरह से लोग खाने-पीने का सामान बुलाते हैं, ऑनलाइन आर्डर करके खरीदे गए सामानों को कूरियर कंपनियां पहुंचाती हैं, और जिस तरह से किसी पते को गूगल मैप पर लोगों को भेजकर उन्हें वहां आने का रास्ता बताया जाता है, या टैक्सी बुलवाई जाती है, उन सबको देखें तो लगता है कि एक डिजिटल नंबर से जिंदगी बड़ी आसान हो जाएगी। लेकिन दूसरी तरफ यह भी है कि ऐसे एक डिजिटल नंबर से सरकारी एजेंसियां आज नहीं तो कल, पल भर में यह पता लगा लेंगी कि किस पते पर किस कूरियर एजेंसी से कब क्या सामान पहुंचा, कब कहां से चिट्ठी आई, कब खाने का क्या-क्या सामान बुलवाया गया और फिर तो निजी कारोबारियों के कंप्यूटरों से सरकारी एजेंसियां ये जानकारी निकाल ही लेंगी कि हिंदुस्तान के किस पते पर किस टैक्सी से लोग पहुंच रहे हैं, कितने देर बाद वहां से वापस निकल रहे हैं। इस तरह की तमाम संभावनाएं सरकार के लिए तो संभावनाएं रहेंगी, लेकिन निजता की बात उठाने वाले लोगों के लिए ये आशंकाएं रहेंगी। यह कम खतरे की बात नहीं रहेगी कि सरकारी एजेंसियों के कंप्यूटर किसी घर पर चिट्ठियों से लेकर टैक्सियों की आवाजाही तक सभी चीजों को एक साथ जोडक़र एक स्क्रीन पर देख सकेंगी और उससे अपने नतीजे निकाल सकेंगी। लोगों की जिंदगी पर निगरानी रखने का काम केंद्र सरकार के लिए और अधिक आसान हो जाएगा क्योंकि ऐसे पोस्टल एड्रेस के नंबर का जब-जब जहां-जहां इस्तेमाल होगा, उनको एक साथ देखा जा सकेगा, उनका विश्लेषण किया जा सकेगा और लोगों की जिंदगी की कोई निजता नहीं बचेगी।

आधार कार्ड की अनिवार्यता की वजह से आज हिंदुस्तान में लोगों की आवाजाही, लोगों की खरीदी बिक्री, उनके बैंकों और दूसरे सरकारी कामकाज की कोई निजता नहीं रह गई है। लोग एयरपोर्ट पर कितने बजे कहां पहुंच रहे हैं, कहां सफर कर रहे हैं, किस बैंक खाते से भुगतान कर रहे हैं, किस खाते से खरीदारी कर रहे हैं, मोबाइल फोन से होने वाले भुगतान में वे किस वक्त किस जगह पर किस सामान को खरीद रहे हैं, इसे पल भर में जाना जा सकता है। आज आम तो आम, अच्छे खासे जानकार लोगों को भी इस बात का एहसास नहीं हो रहा कि उनके डिजिटल पद चिन्ह किस तरह सुबह से रात तक चारों तरफ निशान छोड़ते चल रहे हैं, और आधार कार्ड, सिम कार्ड, एटीएम कार्ड, क्रेडिट कार्ड, और टेलीफोन पर आधारित भुगतान के दूसरे तरीके हर व्यक्ति के 24 घंटों में सैकड़ों निशान बना जाते हैं। जब सरकार देश के लोगों की नागरिकता तय करने पर जुटी हुई हो, तो फिर ऐसी जानकारी उसके हाथ में एक बहुत बड़ा औजार या हथियार बनना भी तय है।

अभी केंद्र सरकार की डिजिटल एड्रेस की तैयारी एक प्रस्ताव के स्तर पर है, लेकिन यह जाहिर है कि जिस तरह संसद में केंद्र सरकार पर सत्तारूढ़ गठबंधन का विशाल बहुमत है, वह अपनी किसी भी बात को वहां से पास करवा सकती है। अब सवाल यही उठेगा कि निजता के मुद्दे उठाने वाले सामाजिक संगठन किस तरह अदालत में जाकर कई सवालों के जवाब केंद्र सरकार से मांगने की कोशिश करते हैं। दुनिया के अधिक देशों में ऐसे किसी डिजिटल एड्रेस का तजुर्बा भी नहीं है। ऐसे में इससे ऑनलाइन कारोबार करने वाले लोगों को तो फायदा हो सकता है कि उन्हें पता ढूंढने के बजाय मोबाइल फोन पर नक्शा सीधे किसी घर पर ले जाकर खड़ा कर दें, लेकिन ऐसे कारोबारियों से परे किसका फायदा इससे होगा यह अभी साफ नहीं है। और फिर बहस के लिए यह मान भी लें कि जिनके घर-दफ्तर का पता डिजिटल हो जाएगा उन्हें खुद भी कोई सहूलियत होगी, तो भी यह सवाल तो रहता ही है कि ऐसे डिजिटल पते के हर इस्तेमाल की जानकारी सरकार के कंप्यूटरों पर दर्ज होगी या कारोबारियों के। और फिर सरकार जब चाहे तब उन पतों की पूरी जिंदगी को खंगाल सकती है, उस पर अपने कंप्यूटरों से ही पूरी निगरानी रख सकती है। किसी भी सरकार के हाथ इतनी ताकत से उसके बेजा इस्तेमाल की गारंटी हो जाती है। आज भी भारत की सरकार पेगासस जैसे खुफिया फौजी घुसपैठिए सॉफ्टवेयर के इस्तेमाल को लेकर सुप्रीम कोर्ट में कोई हलफनामा देने से मना कर चुकी है और मजबूरी में सुप्रीम कोर्ट को एक जांच कमेटी बनानी पड़ी है कि सरकार ने इसका इस्तेमाल किया है या नहीं। ऐसे में डिजिटल एड्रेस को अगर केंद्र सरकार अनिवार्य कर पाती है, तो उसके लिए लोगों पर नजर रखना, लोगों की जासूसी करना एक बहुत आसान काम हो जाएगा। देखना है कि ऐसे किसी औजार को बनाकर उसे हथियार की तरह इस्तेमाल करने से केंद्र सरकार को सुप्रीम कोर्ट रोक पाता है या नहीं।
(क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)

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