संपादकीय
ऑस्ट्रेलिया की सरकार अभी अपने एक फैसले को लेकर कई जगह आलोचना झेल रही है जिसमें वह तैयारी कर रही है कि जिन लोगों ने कोरोना वैक्सीन नहीं लगवाई है उनके बीमार होकर अस्पताल पहुंचने पर अपने इलाज का खर्च वे खुद उठाएं और सरकार पर इसका बोझ न आए। डॉक्टरों के कुछ संगठन इसे एक अनैतिक फैसला कह रहे हैं लेकिन दूसरी तरफ सरकार के अपने तर्क हैं। ऑस्ट्रेलियन सरकार ने सिंगापुर को देखकर यह फैसला लिया है जहां की सरकार बहुत लोकतांत्रिक नहीं मानी जाती है और उसने यह तय किया है कि जो लोग अपनी पसंद से बिना वैक्सीन रहना चाहते हैं, वे कोरोना वायरस के शिकार होने पर अपने इलाज का खर्च खुद उठाएं। ऑस्ट्रेलिया ने सिंगापुर के इसी फैसले पर चलना तय किया है और अभी वहां सरकार इसकी तैयारी कर रही है। सरकार के एक मंत्री जिन्हें इस अभियान के लिए जिम्मेदार बनाया गया है उन्होंने कहा कि देश की चिकित्सा व्यवस्था वैसे ही बहुत ज्यादा बोझ ढो रही है और इस पर ऐसे लोगों का बोझ और नहीं डालना चाहिए जो इंटरनेट पर बेवकूफी की बातों पर भरोसा करते हैं, और मेडिकल सलाह को अनदेखा करते हैं। इस मंत्री ने कहा कि ऐसे लोगों की अस्पताल में भर्ती से अस्पताल की सीमित क्षमता खत्म होती है जिसकी वजह से डायबिटीज या अस्थमा जैसी दूसरी बीमारियों के मरीजों के भी मरने की नौबत आ जाती है क्योंकि उन्हें इलाज के लिए बिस्तर नहीं मिलते। सरकार का यह फैसला विवाद छेड़ रहा है क्योंकि कई देशों में ऑस्ट्रेलियाई सरकार के इस फैसले को गलत माना जा रहा है। अधिकतर देशों में इसे लोगों की मर्जी पर छोड़ा गया है कि वे चाहें तो टीका लगवाएं ,चाहें तो टीका न लगवाएं, लेकिन इसका असर यह है कि अमेरिका जैसे अधिक पढ़े-लिखे देश में भी टीका न लगवाने वाले लोगों की भारी भीड़ है। इनमें ऐसे लोग भी हैं जिन्हें टीकों पर भरोसा नहीं है क्योंकि इनकी पर्याप्त क्लीनिकल ट्रायल नहीं हुई है, और इनमें ऐसे लोग भी हैं जो अपने शरीर में किसी बाहरी पदार्थ के डाले जाने के खिलाफ हैं। हिंदुस्तानी लोगों को याद होगा कि जब महात्मा गांधी अपनी पत्नी कस्तूरबा के साथ पूना के आगा खान पैलेस में ब्रिटिश सरकार के कैदी बनाकर रखे गए थे, उस वक्त कस्तूरबा की तबीयत बहुत खराब हुई और जो ब्रिटिश डॉक्टर उन्हें देखने आया, उसने पेनिसिलिन का इंजेक्शन लगाने की तैयारी की। इसे देखकर बापू ने पूछा कि वह क्या कर रहे हैं तो डॉक्टर ने कहा कि उनकी जान बचाने के लिए पेनिसिलिन का इंजेक्शन जरूरी है. इस पर गांधी ने कहा कि वे तो शरीर में किसी भी बाहरी चीज को दाखिल करने के खिलाफ हैं क्योंकि यह प्रकृति के खिलाफ है, लेकिन उन्होंने फैसला कस्तूरबा पर छोड़ा जो कि गांधी की इस बात को सुन चुकी थीं। आखिर में डॉक्टर को इंजेक्शन नहीं लगाने दिया गया और गांधी की गोद में सिर रखे-रखे कस्तूरबा गुजर गईं। कुछ वैसा ही बाहरी पदार्थों से परहेज पश्चिम के भी बहुत से देशों में है जो कि किसी भी तरह का इंजेक्शन लेना नहीं चाहते, कोई टीका लगवाना नहीं चाहते।
अब मुद्दा यह है कि जो लोग वैक्सीन पर भरोसा नहीं करते हैं, या जिन्हें अपने शरीर में बाहरी इंजेक्शन लगवाने से परहेज है, ऐसे लोग भी बीमार पडऩे पर इलाज के लिए उसी चिकित्सा विज्ञान के पास अस्पताल जाते हैं जिस चिकित्सा विज्ञान ने यह वैक्सीन भी विकसित की है। वे वहां अस्पताल में भर्ती होने के बाद वही इंजेक्शन लगवाते हैं जिन्हें लगवाने का वे विरोध कर रहे हैं। तो इस तरह वैक्सीन न लेने वाले लोग किसी भी देश की सरकार की सीमित चिकित्सा सुविधा पर एक बड़ा बोझ बन रहे हैं क्योंकि वे अधिक संख्या में बीमार पड़ रहे हैं, उन्हें अधिक संख्या में अस्पताल जाने की जरूरत पड़ रही है, और वहां पर भी कई किस्म की बीमारियों के उन तमाम मरीजों के हक के बिस्तर पर कब्जा कर रहे हैं जिन्हें किसी न किसी दूसरी बीमारी के इलाज के लिए अस्पताल में दाखिल होना था, जिन्होंने एक जिम्मेदार की तरह वैक्सीन लगवा रखी थी, लेकिन जिन्हें आज अस्पताल में बिस्तर नहीं मिल रहा है।
आज ऑस्ट्रेलिया की सरकार की सोच को कोई कितना ही अनैतिक कहें, सवाल यह भी है कि जब कोई बीमारी महामारी का दर्जा पाती है, वह देशों की सरहदों के भी आर-पार चारों तरफ पूरी मानव प्रजाति पर एक खतरा बनकर मंडरा रही है, तब भी क्या लोगों को चिकित्सा विज्ञान की सलाह के खिलाफ ऐसी आजादी दी जा सकती है कि वे वैक्सीन ना लगवाएं, लेकिन जरूरत पडऩे पर वे अस्पतालों में जाएं? अस्पतालों में उनको आने से मना नहीं किया जा सकता, क्योंकि ऐसा करना उनके मानवीय अधिकारों का उल्लंघन होगा, लेकिन दूसरी तरफ यह बात भी है कि ऐसे लोगों का इलाज मुफ्त में क्यों किया जाए?
अमेरिका के सबसे बड़े महामारी विशेषज्ञ इस बात को लेकर फिक्रमंद हैं कि वहां के करोड़ों लोग अब तक बिना वैक्सीन के चल रहे हैं और जिस तरह अभी लाखों लोग कोरोना वायरस का शिकार हर दिन हो रहे हैं, उसमें ऐसे लोग पता नहीं कितना बड़ा बोझ बनेंगे? वहां की सरकार ने यह तय किया है कि कोरोनावायरस की जांच-किट लोगों के घरों पर मुफ्त में भेजी जा रही है ताकि लोग का घर बैठे जांच कर सकें। लेकिन सवाल यह भी उठता है कि ऐसे लोग जो घर पर रहते हुए वैक्सीन से भी परहेज कर रहे हैं वे इस जांच किट का क्या इस्तेमाल करेंगे, और अगर वे अपने आपको कोरोना पॉजिटिव पाते हैं तो भी क्या करेंगे? ऐसे बहुत से सवाल हर देश में खड़े हो रहे हैं जहां पर टीकाकरण पर्याप्त नहीं हुआ है। खुद हिंदुस्तान के टीकाकरण का जो हाल है उस पर हमने दो-तीन दिन पहले इसी जगह पर लिखा है कि किस तरह देश की 40 फ़ीसदी आबादी का टीकाकरण शुरू भी नहीं हुआ है जो कि 18 बरस से कम उम्र की है। फिर बाकी 60 फ़ीसदी आबादी में आधे लोग ऐसे हैं जिनको एक ही टीका लगा है, और बहुत से लोग ऐसे हैं जिन्हें कोई टीका नहीं लगा है। यह दुनिया के लोकतांत्रिक देशों के लिए भी सोचने और समझने की बात है कि महामारी की नौबत में लोगों को निजी आजादी कितनी दी जाए? क्योंकि ऐसे लोग न केवल आत्मघाती साबित हो सकते हैं, बल्कि ये लोग बाकी पूरे देश के लिए भी एक खतरा हो सकते हैं। और जानकार लोगों का यह मानना है कि दुनिया का कोई भी देश अपने नागरिकों को वैक्सीन का तीसरा और चौथा बूस्टर डोज देकर भी अपने देश को पूरी तरह महफूज नहीं रख सकता जब तक कि पूरी दुनिया के तमाम देशों के लोगों को पर्याप्त वैक्सीन ना लग जाए। कोई भी सुरक्षित टापू नहीं रह सकता, जब तक कि आसपास के दूसरे देश या टापू सुरक्षित ना हों। अब ऐसे में किसी देश के लापरवाह नागरिक जो कि चिकित्सा विज्ञान की सलाह के खिलाफ जाकर टीके लगवाने से परहेज कर रहे हैं, वे न सिर्फ अपने देश के लिए बल्कि पूरी दुनिया के लिए खतरा हैं, और क्या किसी देश को ऐसा अधिकार भी हासिल है कि वह अपने नागरिकों को बाकी दुनिया के लिए खतरा बन जाने दे? इसलिए आज जब अलग-अलग देश-प्रदेश अपने लोगों पर कई तरह के प्रतिबंध लगा रहे हैं कि अगर उन्होंने पर्याप्त टीकाकरण नहीं करवाया है तो वे सार्वजनिक जगहों पर नहीं जा सकते, भीड़ भरी जगहों पर नहीं जा सकते, तो यह रोक-टोक बहुत लोकतांत्रिक चाहे ना हो यह एक वैज्ञानिक रोक-टोक है, और पूरी दुनिया पर छाए हुए महामारी के खतरे को देखते हुए यह लोकतांत्रिक अधिकारों को निलंबित करके महामारी की जरूरतों को पूरा करने का वक्त भी है।
तमाम देशों को बहुत ही कड़ाई से टीकाकरण की शर्तों को लागू करना चाहिए और अपने अलावा दूसरे गरीब देशों के टीकाकरण का इंतजाम भी करना चाहिए क्योंकि जब तक किसी भी एक देश में कोरोनावायरस बाकी रहेंगे तब तक वहां से इनका बाकी दुनिया में फैलने का खतरा तो बने ही रहेगा। दुनिया ने अभी ताजा-ताजा देखा है कि 2 बरस पहले किस तरह चीन के वुहान से शुरू होकर कोरोना वायरस पूरी दुनिया में फैला और पूरी दुनिया का जीना हराम कर दिया इसलिए आज कोई गरीब देश भी अगर बिना टीकों के है तो तीसरा और चौथा बूस्टर डोज़ लेने वाले जर्मन और ब्रिटिश नागरिक भी अपने घरों में बैठे हुए भी सुरक्षित नहीं है।
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