संपादकीय
चुनाव के मुहाने पर खड़े हुए उत्तर प्रदेश के एक बड़े शहर कानपुर में इत्र के एक बड़े व्यापारी पर पड़े आयकर छापे को लेकर कुछ लोग उसे इससे जोड़ रहे हैं कि पिछले दिनों समाजवादी पार्टी ने जो समाजवादी इत्र बाजार में उतारा था, उस इत्र को बनाने वाले कारोबारी पर यह छापा पड़ा है। हो सकता है कि यह बात सच भी हो लेकिन सवाल यह भी है कि इस कारोबारी के ठिकानों से अब तक ढाई सौ करोड़ रुपए से अधिक के नगद नोट मिल चुके हैं, 15 किलो सोना और 50 किलो चांदी बरामद हो चुकी, और नोटों की गिनती अभी जारी है। भारत के इतिहास में इतनी बड़ी नगद रकम किसी और कारोबारी से मिलने की याद पहली नजर में तो नहीं आ रही है, और अगर ऐसा हुआ भी होगा तो भी यह अपने आपमें एक बहुत बड़ी रकम है। ढाई सौ करोड़ रुपए के नोट कम नहीं होते हैं खासकर उस वक्त जबकि हिंदुस्तान में नोटबंदी को इस मकसद से लागू करना बताया गया था कि इससे कालेधन में कमी आएगी। अब वर्षों से जिस प्रदेश में भाजपा के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का राज्य चल रहा है वहां पर अगर दो नंबर का इतना बड़ा कारोबार चल रहा था, तो जाहिर है कि राज्य के बहुत से लोगों की जानकारी में भी यह रहा होगा और राज्य पुलिस के खुफिया विभाग के पास भी इस जानकारी को जुटाने का कोई ना कोई जरिया रहा होगा। ऐसे में इतनी बड़ी रकम की बरामदगी हक्का-बक्का करती है कि क्या आज भी हिंदुस्तान में कारोबार के लिए नगद काले धन की इतनी बड़ी आवाजाही चल रही है? और यह भी कि एक अकेले व्यापारी के पास अगर काले धन का ऐसा भंडार निकलता है तो उस पर कार्यवाही तो होनी चाहिए फिर चाहे वह चुनिंदा समाजवादी समर्थक क्यों न हो या किसी और पार्टी का समर्थक क्यों ना हो। अब यह तो जो सत्तारूढ़ पार्टी रहेगी उसके साथ यह बात लागू होगी कि वह अपनी नापसंद के दस नंबरी लोगों को पहले निशाना बनाए, अधिक से अधिक यह उम्मीद की जा सकती कि तमाम लोगों पर ऐसी कार्रवाई हो, लेकिन इस बात से तो इनकार नहीं किया जा सकता कि जिस पर कार्रवाई हुई है वह कोई मासूम कारोबारी नहीं था।
आज एक तरफ तो हिंदुस्तानी बैंक दो-चार लाख की नकदी निकालने पर भी छोटे-छोटे कारोबारियों के लिए दिक्कत खड़ी करते हैं, उस पर कई तरह से कोई भुगतान करना होता है, या अपना पैन कार्ड देना पड़ता है, और छोटे व्यापारियों के लिए नगद में कोई भी काम करना अब आसान नहीं रह गया है। लेकिन एक इत्र व्यापारी अगर सैकड़ों करोड़ रुपए की नगदी लेकर बैठा है तो यह इस बात का सबूत है कि बाजार में धड़ल्ले से न सिर्फ काला धन चल रहा है बल्कि वह नकली नोटों की शक्ल में भी चल रहा है। नोटों की इतनी बड़ी बरामदगी नोटबंदी की नाकामयाबी का एक बड़ा सबूत भी है। अब भारत की अर्थव्यवस्था में काले धन को कैसे घटाया जा सकता है, यह आसान नहीं रह गया है। बहुत तरह के दावे बहुत से राजनीतिक दल करते हैं और केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने देश के बाहर से कालेधन को लाने के बारे में और नोटबंदी से काले धन को घटाने के बारे में कई बातें कही थीं। पिछले 7 बरस में देश में कितना काला धन लौट पाया इसकी कोई जानकारी लोगों को नहीं है। इसके साथ-साथ नोटबंदी से अगर कोई फायदा हुआ हो तो उसकी भी कोई जानकारी लोगों के पास नहीं है, और न ही मोदी सरकार ने या भाजपा ने नोटबंदी के कुछ महीनों के बाद से लेकर आज तक उसकी किसी कामयाबी को किसी चुनावी सभा में गिनाया है। जाहिर है कि वह पूरी मशक्कत पानी में गई, और ऐसा लगता है कि लोगों के पास थोड़े बहुत नकली नोट या खराब नोट जो थे, उन्हें भी बैंकों में किसी तरह खपा दिया गया।
आज हिंदुस्तान में जीएसटी की वजह से या नोटबंदी के तुरंत बाद से, लॉकडाउन और बाजार की मंदी की वजह से छोटे-छोटे कारोबारी एक किस्म से सडक़ों पर आ गए हैं। बहुत से छोटे-छोटे काम धंधे बंद हो गए हैं और यह बात राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था में इसलिए खुलकर नहीं दिखती है कि देश के कुछ सबसे बड़े उद्योग घरानों का कारोबार आसमान पर पहुंच रहा है उनकी संपत्ति छलांग लगाकर बढ़ रही है. जब राष्ट्रीय उत्पादकता की बात आती है तो इस तरह संपन्न तबकों की बढ़ी हुई उत्पादकता और कमाई देश की बेरोजगार हो चली जनता या धंधा खो चुके कारोबारियों के नुकसान के साथ मिलकर एक औसत तस्वीर बताती है। ऐसी औसत तस्वीर में देश के सबसे खुशहाल तबके और देश के सबसे बदहाल तबके का जिक्र अलग-अलग नहीं हो पाता है। हिंदुस्तान में इतने बड़े पैमाने पर काला धन केंद्र सरकार की सारी टैक्स और जांच प्रणाली दोनों के लिए बड़ी चुनौती है। कानपुर का यह इत्र कारोबारी चाहे समाजवादी इत्र बनाने वाला हो या न हो, या फिर यह पैसा समाजवादी पार्टी के चुनावी खर्च के लिए रखा गया हो या कारोबार का काला धन हो, जो भी हो, इतने बड़े काले धन पर कार्रवाई तो होनी ही चाहिए। ऐसे बड़े काले कारोबारियों के साथ किसी की हमदर्दी नहीं होनी चाहिए। और फिर चुनिंदा कारोबारियों को सजा देना, और चुनिंदा कारोबारियों को बढ़ावा देना, इसमें नया कुछ भी नहीं है। भारत में इंदिरा गांधी के समय से ही धीरूभाई अंबानी जैसे कुछ चुनिंदा कारोबारी सत्ता का बढ़ावा पाते थे और ऐसी चर्चा रहती थी कि वे सरकार की नीतियां तय करते थे। इसलिए हर सरकार के चहेते कारोबारी रहते हैं, और विपक्ष के करीबी कई कारोबारी सत्ता के निशाने पर भी रहते हैं। जो भी हो, टैक्स चोरों और काले धंधेबाजों पर कार्रवाई होनी ही चाहिए और अगर बाकी लोगों के पास ऐसे बाकी धंधेबाजों के बारे में कोई जानकारी है तो उसे भी उजागर किया जाना चाहिए। काले धंधे पर कार्रवाई अकेले सरकार की जिम्मेदारी नहीं है, बल्कि जिस-जिसको इसके बारे में जानकारी है उन्हें इसकी शिकायत सरकार की एजेंसियों या न्यायपालिका से करना चाहिए।
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