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इत्र कारोबारी : नहीं थमी काली कमाई
30-Dec-2021 1:11 PM
इत्र कारोबारी : नहीं थमी काली कमाई

-प्रमोद भार्गव
कानपुर के इत्र कारोबारी पियूष जैन के ठिकानों से अरबों की काली कमाई मिली है। सादगी पसंद इस व्यापारी के पास से 280 करोड़ रुपए नकद, 250 किलो चांदी, 23 किलो सोने की ईंटें। 6 करोड़ का 600 किलो चंदन और 400 करोड़ की अचल संपत्ति के दस्तावेज मिले हैं। विभिन्न बैंकों के 18 लॉकर, 500 चाबियां और 109 ताले भी मिले हैं। 40 कंपनियां हैं, जिनके मुख्यालय मुंबई में हैं। दो कंपनियां मिडिल ईस्ट में भी हैं। जाहिर है अभी स्याह तिलिस्म के कई ताले खुलने बांकी हैं। पियूष के की इत्र की महक देश से लेकर विदेश तक तो फैली ही हुई है, साथ ही वह तंबाकू व गुटखा बनाने का काम भी करता है। काले धन का कुबेर बनने और इतना बड़ा साम्राज्य खड़ा करने का यही उसका प्रमुख आधार है। अहमदाबाद में चार ट्रक तंबाकू और पान-मसाला पकड़े जाने के बाद ही उसके तिलिस्म का रहस्य उजागर हुआ है। इस पर्दाफाश को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने समाजवादी पार्टी पर कुछ इस लिहाज से कटाक्ष कसा है कि पियूष जैन के अखिलेश यादव सरंक्षक रहे हैं। अलबत्ता सवाल उठता है कि नोटबंदी, जीएसटी और काली कमाई सृजित ही न हो, इस पर नियंत्रण के अनेक कानून वजूद में लाए जाने के बावजूद इसका सृजन हो कैसे रहा है? मसलन कानूनों में झोल हैं और सरकारी अमला भ्रष्टाचार में लिप्त है। नतीजतन बक्शों में भरा कालाधन निकल रहा है।  

कालेधन की महिमा अपरंपार है। इसे देश में ही रोकने के लिए नरेंद्र मोदी सरकार ने कई नए कानून बनाए लेकिन नतीजा शून्य रहा। उल्लू पर सवार लक्ष्मी के विदेश में ठिकाने आखिरकार बने हुए हैं। पियूष जैन की कंपनियां मिडिल ईस्ट में भी हैं, जाहिर है उसका कालाधन सेल कंपनियों के माध्यम से जमा हो सकता है ? मुंबई में जिन 40 कंपनियों और एक आलीशान बंगला पियूष के होने का पता चला है, वह कंपनियां काला-सफेद करने के ही काम में लगी हों। यह देश की कानून और अर्थव्यवस्था के लिए चिंता का सबब है। स्विट्जरलैंड के केंद्रीय बैंक द्वारा जारी सालाना रिपोर्ट के आंकड़ों के मुताबिक भारतीयों का निजी एवं कंपनियों का धन स्विस बैंकों में साल 2020 में बढक़र करीब 20,700 करोड़ रुपए हो गया है। यह धन स्विस बैंकों की भारतीय शाखाओं और अन्य वित्तीय संस्थानों के जरिए पहुंचाया गया। स्विस नेशनल बैंक के अनुसार यह धन 2019 की तुलना में 3.12 गुना ज्यादा है। जब देश कोरोना की महामारी से जूझ रहा था, तब भारतीय अवैध धन के जमाखोर बेशर्मी से स्विस बैंकों में धन जमा करने में लगे थे। भारतीय ग्राहकों का सकल कोष 2019 में 6,625 करोड़ रुपए था, जो एक वर्ष में बढक़र 14,075 करोड़ रुपए हो गया। 13 वर्ष में यह सर्वाधिक बढ़ोत्तरी है। साफ है, नए कानूनों का कोई असर नहीं पड़ा।

राजग सरकार सत्ता में आई है तब से लगातार यह दावा करती रही है कि विदेशों में जमा काला धन देश में वापस लाने और देश के भीतर कालाधन पैदा न हो इस मकसद पूर्ति के लिए ठोस व कारगर कोशिशें की गई हैं। बावजूद न तो कालाधन वापस आया और न ही नया कालाधन बनने से रुक पाया। स्विस नेशनल बैंक की ताजा रिपोर्ट ने यह खुलासा कर दिया है। हालांकि राजग सरकार ने कालाधन पर अंकुश लगे, इस दृष्टि से ऐसे कानूनी उपाय जरूर किए हैं, जो कालेधन के उत्सर्जन पर अंकुश लगाने वाले हैं। लेकिन स्विस बैंक द्वारा जारी आंकड़ों और पियूष जैन के ठिकानों से मिले कालाधन ने साफ कर दिया है कि ये उपाय महज हाथी के दांत हैं। यही नहीं रतलाम-झाबुआ से भाजपा सांसद गुमान सिंह डामोर भी 600 करोड़ रुपए के घोटाले में फंसे हुए हैं। इस मामले में अलीराजपुर के न्यायायिक मजिस्ट्रेड अमित जैन के निर्देश पर एफआईआर दर्ज की गई है। ये कथित घोटाला उस समय का है, जब डामोर राजनीति में नहीं थे और पीएचई द्वारा संचालित फ्लोरोसिस नियंत्रण परियोजना में कार्यपालन यंत्री थे। सेवानिवृत्त होने के बाद वे भाजपा में शामिल हुए और सांसद भी बन गए।
 
हालांकि मोदी सरकार ने कालेधन पर अंकुश के लिए ‘कालाधन अघोषित विदेशी आय एवं जायदाद और आस्ति विधेयक-2015’ और  कालाधन उत्सर्जित ही न हो, इस हेतु ‘बेनामी लेनदेन (निषेधद्ध विधेयक अस्तित्व में ला दिए हैं। ये दोनों विधेयक इसलिए एक दूसरे के पूरक माने जा रहे थे, क्योंकि एक तो आय से अधिक काली कमाई देश में पैदा करने के स्रोत उपलब्ध हैं, दूसरे इस कमाई को सुरक्षित रखने की सुविधा विदेशी बैंकों में हासिल है। लिहाजा कालाधन फल फूल रहा है। दोनों कानून एक साथ वजूद में आने से यह उम्मीद जगी थी कि कालेधन पर कालांतर में लगाम लगेगी, लेकिन नतीजा ढांक के तीन पात रहा। सरकार ने कालाधन अघोषित विदेशी आय एवं जायदाद और कर आरोपण-2015 कानून बनाकर कालाधन रखने के प्रति उदारता दिखाई थी। इसमें विदेशों में जमा अघोषित संपत्ति को सार्वजानिक करने और उसे देश में वापस लाने के कानूनी प्रावधान हैं। दरअसल कालेधन के जो कुबेर राष्ट्र की संपत्ति राष्ट्र में लाकर बेदाग बचे रहना चाहते हैं, उनके लिए अघोषित संपत्ति देश में लाने के दो उपाय सुझाए गए हैं। वे संपत्ति की घोषणा करें और फिर 30 फीसदी कर व 30 फीसदी जुर्माना भर कर शेष राशि का वैध धन के रूप में इस्तेमाल करें। इस कानून में प्रावधान है कि विदेशी आय में कर चोरी प्रमाणित हाती है तो 3 से 10 साल की सजा के साथ जुर्माना भी लगाया जा सकता है। इसी प्रकृति का अपराध दोबारा करने पर तीन से 10 साल की कैद के साथ 25 लाख से लेकर एक करोड़ रुपए तक का अर्थ-दण्ड लगाया जा सकता है। जाहिर है,कालाधन घोषित करने की यह कोई सरकारी योजना नहीं थी। अलबत्ता अज्ञात विदेशी धन पर कर व जुर्माना लगाने की ऐसी सुविधा थी, जिसे चुका कर व्यक्ति सफेदपोश बना रह सकता है। ऐसा ही उपाय प्रधानमंत्री पीवी नरसिंह राव ने देशी कालेधन पर 30 प्रतिशत जुर्माना लगाकर सफेद करने की सुविधा दी थी। इस कारण सरकार को करोड़ों रुपए बतौर जुर्माना मिल गए थे अरबों रुपए सफेद धन के रूप में तब्दील होकर देश की अर्थव्यस्था मजबूत करने के काम आए थे। पियूष जैन के मामले में भी उनके आवास से मिली 177.45 करोड़ रुपए की नकदी को डीजीजीआई अहमदाबाद ने टर्नओवर की रकम माना हैं। अर्थात यह कथन जाहिर करता है कि यह मामला 31.50 करोड़ रुपए की कर चोरी का है। साफ है, कर और जुर्माना चुकाकर पियूष जैन बच सकता है। इस प्रक्रिया के पूरे होने पर आयकर विभाग भी काली कमाई के मामले में हाथ मलता रह जाएगा और पियूष का यह कालाधन सफेद धन में बदल जाएगा। कालाधन उत्सर्जित न हो, इस हेतु दूसरा कानून बेनामी लेनदेन पर लगाम लगाने के लिए लाया गया था। इस संशोधित विधेयक में बेनामी संपत्ति की जब्ती और जुर्माने से लेकर जेल की हवा खाने तक का प्रावधान है। साफ है,यह कानून देश में हो रहे कालेधन के सृजन और संग्रह पर अंकुश लगाने के लिए हैं, लेकिन ठीक से अमल नहीं हो पा रहा है।
 
अभी तक देश में यह साफ नहीं है, कि आखिरकार कालाधन बनता कैसे है ? अर्थशास्त्र में भी इसकी कोई स्पष्ट परिभाषा निर्धारित नहीं है। कुछ अर्थशास्त्री इसे समानांतर अर्थव्यवस्था के नाम से जानते हैं, तो कुछ इसे काली या अवैध कमाई का हिस्सा मानते है। वैसे कालाधन वह राशि होती है, जो लेखे-जोखे और आयकर से बाहर रख ली जाती है। सरकारी अधिकारी, कर्मचारी इसे भ्रष्टाचार के जरिए सृजित करते हैं। इस राशि को स्विस बैंकों में तो जमा किया ही जाता है, अलबत्ता देश में इसे मनोरंजन, भोग-विलास, सट्टेबाजी, चल-अचल संपत्ति की खरीद-फरोक्त, सोने-चांदी की खरीद, चुनावों में वित्त-पोषण और पेड न्यूज में भी खर्च किया जाता है। देशी-विदेशी पर्यटन, महंगी और विदेशी शिक्षा व इलाज में भी इस राशि का खूब इस्तेमाल हो रहा है। गोया, भ्रष्टाचार और अपराध इसी के सह-उत्पादों के रूप में सामने आ रहे हैं। गुलाबी अर्थव्यवस्था के पैरोकार इसे ही समानांतर अर्थव्यवस्था मानते हुए, इसे बने रहने की दलीलें देते रहते हैं, जबकि यह धनराशि कल्याणकारी योजनाओं को पलीता लगाने के साथ नागरिकों के बीच आर्थिक विसंगति बढ़ाने का काम कर रही है। अतएव कालेधन के उत्सर्जन पर प्रतिबंध तो लगना ही चाहिए ?    
 
(लेखक, वरिष्ठ साहित्यकार और पत्रकार हैं।)
 

 

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