विचार / लेख
-आर.के. विज
25 अगस्त, 1988 को मसूरी प्रशासन अकादमी से प्रारंभ भारतीय पुलिस सेवा की यात्रा आज 31 दिसंबर, 2021 को समाप्त हो जायेगी। अनुभवों से लदी हुई इस लंबी यात्रा ने मेरे जीवन, निजी एवं प्रोफेशनल, दोनों को एक जीवंत अर्थ दिया है। निजी जीवन में मेरी क्षमताओं का विकास एवं लोगों (खासतौर पर पीडि़तों) की सहायता करने का जज्बा, पुलिस सेवा की ही देन है। प्रोफेशनली-इलेक्ट्रॉनिक सहित तकनीकी क्षेत्र, कानून, नक्सल समस्या, आपातकालीन सेवाएं, पुलिस अधोसंरचना की बेहतरी आदि ऐसे विषय है जिन पर बखूबी काम करने का मौका मुझे मिला। मैं ईश्वर को धन्यवाद देना चाहता हूं कि मुझे वर्दी में लोगों की सेवा करने का अवसर दिया।
तैंतीस वर्ष से लंबी इस सेवा के दौरान मैंने पुलिस और समाज में कई बदलाव देखे। इस दौरान न केवल आम जनता की अपेक्षाएं पुलिस के प्रति बढ़ीं बल्कि पुलिस को अधिक जिम्मेदार बनाने में भी जनता का काफी हाथ रहा। जब-जब पुलिस ने अपनी शक्तियों की सीमा लांघी, तब-तब न्यायालयों, विभिन्न आयोगों एवं जनता ने पुलिस पर अंकुश लगाये। हथकड़ी लगाने एवं गिरफ्तारी के मापदण्ड बदले गये, सूचना का अधिकार ने पुलिस को अधिक जवाबदेह बना दिया।
एफआईआर की प्रति प्राप्त करने के लिये अब थाने के चक्कर काटने नहीं पड़ते, पुलिस की वेबसाइट पर अब एक क्लिक करना ही पर्याप्त है। थाने के लॉकअप की सारी गतिविधियां अब कैमरे में कैद हो जाती है। पहले जैसी मनमानी पुलिस अब नहीं कर पाती। डंडे वाली पुलिस अब कम्प्यूटर चलाने लगी है, पूछताछ के पुराने हथकंडे छोडक़र अनुसंधान में डीएनए जांच एवं ब्रेन मैपिंग कराने लगी हैं। प्रजातंत्र के विकास का असर प्रजातांत्रिक संस्थाओं में दिखने लगा है ।
इसी दौरान कई नए कानूनों जैसे एससी-एसटी एक्ट, जे.जे.एक्ट, आई.टी.एक्ट, पॉक्सो एक्ट आदि ने जन्म लिया। संवैधानिक मर्यादाओं को पूरा करने के लिये ये कानून जरूरी भी थे। महिलाओं, बच्चों एवं कमजोर वर्ग के प्रति पुलिस की संवदेनशीलता बढ़ी है, हालांकि इस क्षेत्र में अभी और मेहनत करने की जरूरत है। निजी डेटा सुरक्षा कानून के प्रवर्तन की जिम्मेवारी भी पुलिस को आने वाले समय में अन्य प्राधिकारियों से साझी करनी होगी।
छत्तीसगढ़ में माओवाद से निपटने के लिये सरकारों ने कई कदम उठाये हैं। इसमें कोई संदेह नहीं कि माओवाद से प्रभावित क्षेत्र लगातार सिकुड़ रहा है। बस्तर क्षेत्र में शांति बहाल करने के लिये छत्तीसगढ़ में हुए बलिदानों को कभी भूला नहीं जा सकता। पर अभी सुरक्षाबलों को और आगे बढऩा है एवं पूरे क्षेत्र को हिंसा एवं विनाश से मुक्त करना है। पुलिस को साइबर क्राईम से निपटने के लिये अपनी कमर कसनी होगी। राज्य शासन को इस क्षेत्र में पुलिस के संसाधन और बढ़ाने होंगे। मध्यप्रदेश सहित अधिकांश राज्यों में पुलिस आयुक्त प्रणाली लागू हो चुकी हैं। छत्तीसगढ़ को भी इसमें पहल करनी होगी। छत्तीसगढ़ में पुलिस बल में समुचित वृद्धि हुई है, परंतु पुलिस द्वारा रिपोर्ट न लिखने एवं दुर्व्यवहार की शिकायतों में अपेक्षित कमी नहीं हुई है। विगत वर्षों में लोगों में काफी जागरूकता आयी है, वे अपने अधिकारों को समझने लगे हैं। ऐसी स्थिति में यह और जरूरी हो जाता है कि पुलिस पूर्णत: कानून के मुताबिक काम करे। साथ ही, सडक़ सुरक्षा एक ऐसा विषय है जहां आमजन को अधिक जिम्मेदार होने की जरूरत है। सडक़ों पर वाहनों की आमद-रफ्त काफी बढ़ी है इसलिए यातायात नियमों का उल्लंघन करने से बाज आना होगा, जनहानि को नियंत्रित करना होगा।
पुलिस की छवि सुधारना एक संयुक्त जिम्मेवारी है। गांधी जी कहते थे कि यदि पुलिस कुछ गलत करे, तो आम जनता उन्हें अनुशासित करें, उन्हें उनकी गलती का एहसास कराये। गांधी जी किसी को भी सजा देने के खिलाफ थे। पुलिस ने कोविड -19 के दौरान कई बेहतरीन मानवीय कार्य किये हैं। मैं चाहता हूं कि प्रत्येक पुलिसकर्मी अपने वेतन का कुछ हिस्सा गरीब लोगों की सहायता करने में व्यय करे। मानव सेवा करने से आत्मिक संतोष मिलेगा एवं आत्मबल बढ़ेगा। ईशोपनिषद के पहले मंत्र में कहा गया है कि च्जगत में जो कुछ है, सब ईश्वर का है। जितना कर्म के लिये आवश्यक है, उतना ही तू भोग कर। किसी दूसरे के धन की लालसा मत कर।
मेरा हमेशा यह प्रयास रहा है कि मैं अपनी मर्यादाओं में रहकर शासकीय कर्तव्यों का निर्वहन करूं। मुझे अपने युवा अधिकारियों से भी यही अपेक्षा है कि वे पुलिस सेवा के माध्यम से लोगों की सेवा करें और अपनी संवैधानिक जिम्मेदारी का निर्वहन पूरी निष्ठा एवं ईमानदारी से करें।
छत्तीसगढ़ कर्म-भूमि को मेरा कोटि-कोटि नमन।
(लेखक छत्तीसगढ़ के एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी है।)