विचार / लेख
- रमेश अनुपम
आदिवासियों का असंतोष बढ़ता ही जा रहा था पर शासन-प्रशासन को जैसे कोई फर्क नहीं पड़ रहा था। महाराजा प्रवीर चंद्र भंजदेव की संपत्ति कोर्ट ऑफ वार्ड्स से रिलीज ही नहीं की जा रही थी। मध्यप्रदेश सरकार जैसे उन्हें सबक सिखाने पर उतारू थी।
मई में स्थिति पुन: विस्फोटक होने लगी। तीन सौ आदिवासी राजमहल में एकत्र हो गए। इसके पश्चात पूरे नगर में जुलूस निकाली गई। जुलूस कोर्ट ऑफ वार्ड्स के भवन के भीतर घुस गई। आदिवासियों ने कोर्ट ऑफ वार्ड्स भवन के दरवाजे और खिड़कियों को तोड़ दिया। यही नहीं कोर्ट ऑफ वार्ड्स तथा सिंहदेवड़ी में महाराजा प्रवीर चंद्र भंजदेव का झंडा भी फहरा दिया। वहां तैनात संतरी चंदन सिंह पर पत्थर फेंका गया।
दूसरे दिन भी दूर-दराज से आदिवासियों की भीड़ राजमहल में एकत्र होने लगी। 8 मई को लगभग 500 आदिवासी राजमहल में एकत्र हो गए जिसमें 100 महिलाएं भी शामिल थीं।
उस समय आदिवासियों का नेतृत्व करने वाले आदिवासी नेताओं में मंगल मांझी, सोमारु गाड़ा, माटा माडिय़ा प्रमुख नेताओं में से थे।
जगदलपुर जल रहा था। आदिवासियों के दिलों में तूफान उठ रहे थे, साल और सागौन के पेड़ दहक रहे थे। इंद्रावती कुछ-कुछ बेकाबू होकर मचल रही थी। पर इन सबसे शासन-प्रशासन असंवेदनशील ही बना रहा।
इसके दस दिनों बाद ही बस्तर में मुरिया और माडिय़ा जाति के आदिवासी लाल मिर्च और आम की डाल गांव-गांव में घुमाने लगे थे। आदिवासियों के विद्रोह का यह अपना प्राचीन और प्रचलित तरीका है। सन् 1857 की क्रांति में भी इसका प्रयोग किया गया था।
बस्तर भीतर ही भीतर सुलग रहा था पर शासन-प्रशासन ने इसे गंभीरता से लेने की जगह इसका ठीक उल्टा ही किया। लोहंडीगुड़ा गोली कांड से भी कुछ सीखने की कोई जरूरत नहीं समझी गई।
मध्यप्रदेश सरकार के कुछ नहीं करने पर विवश होकर महाराजा प्रवीर चंद्र भंजदेव ने जुलाई में देश के राष्ट्रपति डॉ. राधाकृष्णन को एक मार्मिक स्मरण पत्र भेजा , जिसमें उन्होंने लिखा- ‘मेरे राज्य के विलीनीकरण के एक दो वर्ष उपरांत ही मेरी व्यक्तिगत संपत्ति राज्य सरकार द्वारा जब्त कर ली गई और मुझे पागल घोषित कर दिया गया।
मेरी संपत्ति को कोर्ट ऑफ वार्ड्स के अंतर्गत रखने के कारणों के उल्लेख में केवल इतना ही कहा गया कि मैं अपनी रियासत पुन: वापिस पाने की लालसा से ही अपनी संपत्ति लोगों के बीच बांट रहा हूं साथ ही समस्त प्रजा के बीच भय और आतंक की सृष्टि कर मुझसे मिलने से रोक लगा दिया गया। मेरी भी बाहर के लोगों से मिलने पर पाबंदी लगाई गई। एक खूनी अपराधी की भांति मुझ पर सीआईडी और पुलिस की कड़ी निगरानी रखी जाती है और मेरे नाम के आड़ में निर्दोष आदिवासियों को कैद कर जेल में डाला जाता है।
मैं राजमहल में नितांत अकेला रहता हूं। मेरे हमदर्द व्यक्तियों पर पुलिस अफसरों और कांग्रेस के लोगों द्वारा अत्याचार किया जाता है और मेरे बारे में यह प्रचारित किया जाता है कि मैं बस्तर में विद्रोह करना चाहता हूं।
स्मरण पत्र के अंत में प्रवीर चंद्र भंजदेव ने राष्ट्रपति डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन से यह सवाल पूछते हुए कहा कि ‘क्या ये सब अत्याचार उस समझौते के विरुद्ध नहीं है- जो विलीनीकरण के समय भारत सरकार और नरेशों के बीच हुआ था। यदि सरकार यह स्वीकार करती है कि मेरे प्रति अन्याय व अत्याचार किया गया है तो मेरा मान-सम्मान जैसा पहले था मुझे पुन: वापस दिलाया जाए।’
प्रवीर चंद्र भंजदेव द्वारा राष्ट्रपति को लिखे गए इस पत्र का असर हुआ।
24 जुलाई को मध्यप्रदेश के आदिमजाति कल्याण मंत्री राजा नरेशचंद्र सिंह ने सर्किट हाउस के सामने एकत्र सैकड़ों आदिवासियों की भीड़ के सामने यह घोषणा की कि महाराजा प्रवीर चंद्र भंजदेव की संपत्ति जल्द ही कोर्ट ऑफ वार्ड्स से मुक्त कर दी जाएगी।
(बाकी अगले हफ्ते)