संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : पूंजीवाद का सबसे हिंसक चेहरा कोरोना ने उजागर कर दिया....
01-Jan-2022 5:42 PM
‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : पूंजीवाद का सबसे हिंसक चेहरा कोरोना ने उजागर कर दिया....

यूं तो दुनिया हमेशा से ही आर्थिक असमानता की शिकार रही है, लेकिन यह कितनी भयानक हो सकती है इसकी सबसे ताजा मिसाल, और शायद एक सबसे भयानक मिसाल कोरोना वायरस के खिलाफ वैक्सीन है। दुनिया का एक सबसे बेरहम देश इजराइल अपनी आर्थिक संपन्नता के चलते हुए अपने नागरिकों को इस वैक्सीन का चौथा डोज लगा रहा है। अमेरिका सहित यूरोप के बहुत से देश तीसरा डोज लगा रहे हैं, लेकिन अफ्रीका के बहुत से ऐसे गरीब देश हैं जहां पर लोगों को पहला डोज लगना भी अभी शुरू नहीं हुआ है। यह समानता इस कीमत पर भी जारी रखी जा रही है कि ऐसे गरीब अफ्रीकी देशों में कोरोना चारों तरफ फैल रहा है और उसके अधिक फैलने की वजह से वहां पर इस वायरस के नए वेरिएंट भी आ रहे हैं जो कि दुनिया के तमाम देशों में किसी न किसी तरह से पहुंच जा रहे हैं। जो संपन्न और विकसित देश अपने आपको वैक्सीन से घिरा हुआ एक सुरक्षित टापू मानकर चल रहे हैं, कोरोना का सबसे नया वेरिएंट ओमीक्रॉन इन सबको अपनी गिरफ्त में ले चुका है। लोगों की संपन्नता उनको सुरक्षित बनाने में कहीं काम नहीं आ रही है और विश्व स्वास्थ्य संगठन लगातार इस बात को कहते आ रहा है कि दुनिया को टुकड़ों-टुकड़ों में महफूज नहीं बनाया जा सकता। या तो पूरी दुनिया वैक्सीन लगाकर सुरक्षित की जाए, या फिर यह सिलसिला ऐसा ही चलता रहेगा, और बढ़ता भी रहेगा।

दुनिया के 50 से अधिक देश ऐसे हैं जो अपने स्वास्थ्य कर्मचारियों को भी ठीक से वैक्सीन नहीं लगा पाए हैं। और विकसित और संपन्न देशों का हाल यह है कि वहां के बहुत से लोग वैक्सीन लगवाने को तैयार नहीं हैं, लेकिन सरकार ने उनके लिए भी इंतजाम करके रखा है और जब वह वैक्सीन खराब होने के करीब पहुंच जाती है तो ऐसी दसियों लाख डोज गरीब देशों को एकमुश्त दान में दे दी जाती है, जिन्हें उस बचे हुए थोड़े से दिनों में लगाने की भी कोई क्षमता इन देशों में नहीं है। इन देशों के पास वैक्सीन को खरीदने की ताकत भी नहीं है, और वैक्सीन का बाजार गिनी-चुनी दवा कंपनियों के एकाधिकार का बाजार हो गया है, जिनके बाहर कोई और कंपनियां यह वैक्सीन बना नहीं पा रही हैं, और खुली बाजार व्यवस्था का नतीजा यह है कि दुनिया की जिंदगी को बचाने वाली यह वैक्सीन भी रियायती दामों पर सब्सिडी के साथ गरीब देशों को नहीं मिल पा रही है। बहुत से गरीब देशों का यह हाल है कि वहां के सुरक्षा कर्मचारी, वहां के स्वास्थ्य कर्मचारी भी बिना वैक्सीन के काम कर रहे हैं और जान गंवा रहे हैं। लेकिन शायद कोरोना वायरस दुनिया के संपन्न देशों के मुताबिक अधिक समानतावादी है, और वह गरीब देशों के साथ-साथ अमीर देशों को भी बराबरी से मार रहा है, जो कि बात तो तकलीफ की है, लेकिन इससे विकसित और संपन्न देशों की आंखें खोल लेनी चाहिए थीं, जो कि नहीं खुल रही हैं।

आज सुबह की एक रिपोर्ट बतलाती है कि 2024 आधा गुजर जाने तक भी अफ्रीका में 70 फ़ीसदी लोगों को टीका नहीं लग पाएगा। एक बड़े अखबार की यह भरोसेमंद रिपोर्ट विश्व स्वास्थ्य संगठन सहित कई जगह के आंकड़ों के आधार पर बनी हुई है और यह बतलाती है अफ्रीकी महाद्वीप में टीकों की पहुंच बहुत ही सीमित है और वहां कुल 6 देशों में 40 फ़ीसदी नागरिकों का टीकाकरण हो पाया है, और 20 अफ्रीकी देशों में कुल 10 फीसदी लोगों को टीके लगे हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन का यह अनुमान है कि 2021 में अगर टीकाकरण हो पाया रहता तो अफ्रीका में दसियों हजार मौतों को टाला जा सकता था। और उनका कहना है कि यह केवल व्यक्तियों की मौत नहीं है, जिन परिवारों में मां-बाप इस तरह से मर रहे हैं तो उनमें पीछे बच गए लोग भी तरह-तरह से तकलीफ और मुसीबत झेल रहे हैं। एक ताजा आंकड़ा यह बताता है कि क्रिसमस के पहले के छह हफ्तों में संपन्न देशों ने वैक्सीन का तीसरा बूस्टर डोज जितनी संख्या में पाया है, उतनी संख्या में अफ्रीकी देशों में पूरे साल भर में भी वैक्सीन नहीं लगी है। आज अफ्रीका के केन्या में कोरोना वायरस ओमीक्रॉन की वजह से पॉजिटिविटी रेट छलांग लगाकर 40 फ़ीसदी तक पहुंच गई है और जिंबाब्वे में यह 47 फ़ीसदी हो गई  है।

दुनिया में अमीरी और गरीबी का यह एक ऐसा भयानक फासला देखने मिल रहा है जिसमें कि अमीरों की भी मौत हो रही हैं। ब्रिटेन जैसे सबसे संपन्न और सबसे अधिक टीकाकरण वाले देश में भी आज लाखों लोग अपनी मर्जी से बिना टीके के हैं, और नतीजा यह है कि अगले तीन-चार महीनों में वहां पर लाखों मौतों का अंदाज है। ब्रिटेन और अमेरिका में रोजाना लाखों नए कोरोना पॉजिटिव आ रहे हैं और उनकी तमाम सावधानियों के बावजूद कोरोना के नए वेरिएंट किसी न किसी रास्ते से इन देशों में घुस रहे हैं और चारों तरफ फैल भी रहे हैं। दुनिया के पूंजीवाद को यह समझना होगा कि धरती की आधी हवा जहरीली हो और आधी हवा साफ-सुथरी हो जाए, ऐसा नहीं हो सकता। आधी दुनिया का मौसम खराब रहे और आधी दुनिया का मौसम अच्छा रहे, यह भी नहीं हो सकता। महामारी वाले ऐसे वायरस से बचना किसी सिक्के की तरह हो सकता है जिसके दोनों ही पहलू या तो खरे होंगे, या फिर दोनों ही खोटे होंगे।

हिंदुस्तान ने आज ही कई लाख वैक्सीन तालिबान के राज वाले अफगानिस्तान को भेजी है, और यह एक बड़ी मदद है। इस से 100 गुना अधिक मदद की जरूरत वहां पर है लेकिन हिंदुस्तान ने आगे बढक़र एक रास्ता खोला है जिस पर हो सकता है कि और बहुत से देश आगे बढ़ें। अफगानिस्तान भी आज अफ्रीकी देशों के मुकाबले टक्कर की भुखमरी की कगार पर खड़ा हुआ देश है और पाकिस्तान के रास्ते अफगानिस्तान से किस तरह के वायरस हिंदुस्तान तक आ सकते हैं यह सोचना बहुत मुश्किल बात भी नहीं है। लोगों को याद होगा कि इसी रास्ते तरह-तरह के डीएनए लेकर तरह-तरह की नस्लें हिंदुस्तान पहुंची थीं, और यहां की आबादी को उसने एक मिली-जुली नस्लों की आबादी बनाया था। आज भी अफगानिस्तान और पाकिस्तान से भारत को वायरस का खतरा भी हो सकता है। हर जिम्मेदार देश को दुनिया के बाकी जरूरतमंद देशों की वैक्सीन मदद करनी चाहिए जो कि अपनी आत्मरक्षा के लिए भी जरूरी है। पूंजीवाद ने अपना सबसे हिंसक चेहरा आज दिखाया है क्योंकि इथोपिया जैसे जो देश भूख के शिकार होकर लाखों लोगों को हर बरस खो रहे हैं, उनसे भी पूंजीवाद को कोई सीधा खतरा नहीं था। लेकिन आज गरीब देश अगर वायरस के लिए एक उपजाऊ जमीन बन रहे हैं, तो वह फसल हवा के झोंकों से उडक़र आने वाले पेड़-पौधों के पराग कणों की तरह किसी न किसी जरिए से विकसित देशों तक पहुंचेगी, और किसी देश की संपन्नता उसकी सुरक्षा की गारंटी नहीं कर पाएगी। विश्व स्वास्थ्य संगठन लगातार पिछले डेढ़ बरस से इस बात के लिए लोगों को सावधान करते आ रहा है लेकिन जिम्मेदार देशों के बड़े तजुर्बेकार नेता भी इस खतरे को समझ नहीं पा रहे हैं और यह मानकर चल रहे हैं कि सरहद पर कुछ देशों के लोगों की आवाजाही रोकने से उन पर से खतरा टल जाएगा। ऐसी कोई सरहद नहीं बनी है जो कि वायरस को भी रोक ले। और एक बड़ा खतरा यह है कि जिन देशों में टीकाकरण न होने से कोरोना का वार बढ़ते चल रहा है कमा वहां पर इसके नए वेरिएंट भी आते रहेंगे जिनसे बच पाना किसी भी विकसित देश के लिए भी न मुमकिन होगा, न आसान होगा। पूंजीवाद का सबसे हिंसक चेहरा कोरोना ने उजागर कर दिया है, और यह साबित कर दिया है कि वह पूंजीवाद से अधिक रहमदिल है।
(क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)

अन्य पोस्ट

Comments

chhattisgarh news

cg news

english newspaper in raipur

hindi newspaper in raipur
hindi news