संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : कोरोना के बीच स्कूल-कॉलेज की पढ़ाई, कोई एक साईज सबको फिट नहीं बैठने वाला
02-Jan-2022 5:51 PM
 ‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय :  कोरोना के बीच स्कूल-कॉलेज की पढ़ाई, कोई एक साईज सबको फिट नहीं बैठने वाला

छत्तीसगढ़ सहित हिंदुस्तान के अधिकतर प्रदेशों में स्कूलें शुरू हो गई हैं और इसके साथ-साथ बच्चों के मां-बाप के दिल-दिमाग पर एक तनाव बढऩा भी शुरू हो गया है क्योंकि रोजाना ही कोरोना वायरस फ़ैलने की खबरें आ रही है। यह दिख रहा है कि किस तरह से दिल्ली-मुंबई में एक-एक दिन में कोरोनावायरस संक्रमण दोगुना हो रहा है, और जो अंदाज जानकार विशेषज्ञों द्वारा सामने रखा जा रहा है वह यह है कि आने वाले महीनों में हिंदुस्तान में तीसरी लहर बहुत अधिक तबाही भी ला सकती है। इस बार कोरोना का एक नया वेरिएंट ओमिक्रॉन भी अभूतपूर्व तबाही ला सकता है और उसे लेकर लोगों के मन में एक अलग आशंका है। स्कूल-कॉलेज में जगह-जगह जहां जांच हो पा रही है वहां पर दर्जनों की संख्या में छात्र-छात्राओं और शिक्षक-कर्मचारियों के कोरोनावायरस पॉजिटिव होने की खबरें मिल रही हैं, और जहां पर जांच नहीं हो रही है वहां पर अभी तक मामला दबा-छुपा दिख रहा है। छत्तीसगढ़ में भी बहुत से स्कूलों में दर्जन-दर्जनभर कोरोना संक्रमित निकले हैं और बच्चों के मां-बाप इस दहशत में हैं कि क्या इस खतरे की कीमत पर स्कूल की पढ़ाई जरूरी है? लोगों की फिक्र अलग-अलग तबकों के बीच अलग-अलग है। जो मां-बाप अपने बच्चों को महंगे और निजी स्कूलों में पढ़ा रहे हैं, वे घर पर भी उनकी ऑनलाइन पढ़ाई कुछ या अधिक हद तक करवा पा रहे थे, और उन्हें लग रहा है कि अब पढ़ाई घर पर भी हो सकती है, बजाय बच्चों के बीच संक्रमण फैलने का खतरा झेलने के। दूसरी तरफ सरकारी स्कूलों में गरीब तबकों के जो बच्चे हैं, उनके पास ठीक से मोबाइल फोन भी नहीं हैं, इंटरनेट की सहूलियत नहीं है, और उनकी ऑनलाइन पढ़ाई पूरे देश में ही बेअसर सी है।

ऐसी नौबत को देखते हुए हमने कुछ ही दिन पहले इसी जगह पर यह लिखा था कि स्कूलें शुरू तो हो रही हैं लेकिन स्कूलों को यह योजना बनानी चाहिए कि अगर कुछ हफ्तों के भीतर उनके दोबारा बंद होने की नौबत आई, तो बच्चे घर पर किस तरह से पढ़ाई कर सकेंगे। हमने सुझाया था कि स्कूलों को पूरी पढ़ाई स्कूलों में करवाने की योजना के बजाय ऐसी योजना बनानी चाहिए कि कुछ हफ्तों के बाद अगर जरूरत रहे तो बच्चे घर पर रहकर किस तरह से पढ़ सकते हैं। लेकिन जैसा कि सरकार या किसी भी बड़े संस्थान में होता है, शायद ही किसी स्कूल में इस लाइन पर सोचा गया हो और तैयारी की हो कि ऑनलाइन और ऑफलाइन के बीच भी कोई एक ऐसा रास्ता निकल सकता था जिसमें अभी की कुछ हफ्तों की तैयारी के बाद बच्चे अगले कुछ महीने घर पर पढ़ लेते। समझदारी की बात तो यह होती कि सरकार के स्तर पर ही ऐसी कोई योजना बनाई जाती और सरकारी और निजी स्कूल सभी को सुझाया जाता कि अगले खतरे के पहले तक स्कूलों में अगर कम समय मिलता है तो घर पर पढ़ाई की तैयारी बच्चों से करवानी चाहिए, लेकिन ऐसा हो नहीं पाया। छत्तीसगढ़ में तो शायद इसलिए भी ऐसा मुमकिन नहीं है कि स्कूल शिक्षा और स्वास्थ्य इन दोनों ही सबसे बड़े विभागों का सचिव एक ही अफसर को बनाकर रखा गया है और जाहिर है कि इन दोनों के बीच प्राथमिकता तो स्वास्थ्य विभाग को ही मिलेगी। इसलिए भी स्कूल शिक्षा को लेकर कई तरह की बातें जो कि हो सकती थीं, नहीं हो पा रही हैं। वैसे भी स्कूल शिक्षा विभाग जितने तरह के अप्रिय विवादों से घिरे रहता है, उससे यह समझ पड़ता है कि यहां पर पढ़ाई से अधिक कमाई की फैक्ट्री चलती है और इसलिए भी स्कूल शिक्षा के उन्हीं पहलुओं पर अधिक मेहनत हो रही है जिनमें सरकार में बैठे लोगों की अधिक कमाई हो सकती है। भ्रष्टाचार पर अधिक चर्चा करना आज के इस मुद्दे को भटकाना हो जाएगा क्योंकि भ्रष्टाचार सरकार के किस विभाग में नहीं है, कहीं कम है कहीं अधिक है, और यह कोई नई बात भी नहीं है। जबसे सरकार की व्यवस्था शुरू हुई है तब से ही भ्रष्टाचार चले आ रहा है। आज यह खटकता अधिक इसलिए है कि यह कोरोना के खतरे के बीच भी जारी है, और इस खतरे को बढ़ाने की कीमत पर भी जारी है।

अब जहां तक स्कूल शिक्षा की बात है तो निजी और सरकारी स्कूलों के बीच बंटे हुए बच्चों को हिफाजत के साथ पढ़ाने को लेकर कोई एक तरीका नहीं हो सकता। पढ़ाई का यह सिलसिला फ्री साइज की तरह नहीं है जिसमें कि एक ही साइज की चीज हर किसी को फिट आ जाए. अलग-अलग सरकार और बच्चों के मां-बाप के सामने यह चुनौती आसान नहीं है। लोगों ने पिछली बार वह बदहवासी देखी है जब एक अस्पताल के बिस्तर पर कोरोना के इलाज की लागत लाखों रुपए आ रही थी और उस दाम पर भी अस्पतालों में बिस्तर मिल नहीं रहे थे। आज बहुत से मां-बाप को यह लगता है कि अगर वह खतरा फिर सामने आने जा रहा है, तो क्या सचमुच ही स्कूलों में भेजकर पढ़ाई करवाना इतना जरूरी है? एक बात तो तय है कि पूरे देश में कहीं भी कोरोना की जांच के सरकारी आंकड़ों पर लोगों को भरोसा कम है और लोग यह मानकर चलते हैं कि सरकारें इन आंकड़ों को दबाकर दिखा रही हैं। हो सकता है कि यह बात सच हो, और अगर ऐसा है तो स्कूल-कॉलेज कोरोना के फैलने की एक बड़ी खतरनाक जगह बन सकती हैं क्योंकि वहां बच्चे आसपास बैठकर पढ़ते हैं, खेलते-कूदते हैं, और साथ में खाते-पीते हैं। छत्तीसगढ़ में राज्य सरकार को हम इस बारे में बच्चों के मां-बाप से और स्कूल संचालकों से राय-मशविरा करते नहीं देख पाए हैं, पढ़ाई की रणनीति तय करने में इन तबकों से जरूर बात करनी चाहिए। जो निजी स्कूल हैं वहां के मां-बाप कुछ अलग तरह से परेशान हैं कि वे स्कूलों के बतलाए हुए गैरजरूरी खर्च से लदे हुए हैं. निजी स्कूलों को यह भी चाहिए कि आज महंगाई और मंदी से परेशान या बेरोजगार हो चुके मां-बाप पर अधिक बोझ डालने के बजाय यह ध्यान रखा जाए कि उनका गैर जरूरी खर्च न हो। बहुत से स्कूलों में बच्चों के कपड़ों, जूतों, और बैग, किताब-कॉपियों पर बड़ी रकम खर्च करवाई जा रही है जिससे स्कूलों को आज के परेशान माहौल में बचना चाहिए।
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