संपादकीय
दुनिया में जैसे-जैसे कंप्यूटरों का इस्तेमाल बढ़ते चल रहा है वैसे-वैसे कई हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस पर काम करने वाले बनते जा रहे हैं। इसका सीधा-सीधा अनुवाद करें तो ये ऐसी कृत्रिम बुद्धि पर काम करते हैं जो कि इस्तेमाल से धीरे-धीरे बढ़ते चलती है। इन कंप्यूटरों पर जितना काम करें, उनसे जितनी बात करें, उन सबको वे अपने दिमाग में दर्ज करते चलते हैं, और बाद में अपनी अकल से भी फैसला लेने लगते हैं। इन दिनों एक बहुत आम उपकरण कुछ संपन्न घरों में इस्तेमाल हो रहा है जिसे एलेक्सा कहते हैं। यह अमेजॉन नाम की दुनिया की एक सबसे बड़ी कंपनी का बनाया हुआ एक ऐसा स्पीकर और माइक्रोफोन है जिसे घर के बीच किसी जगह पर रख दिया जाता है जहां वह सबकी बातचीत सुन सके और उससे निकलने वाली आवाज को और लोग भी सुन सकें। एलेक्सा से लोग बात करते हैं और उसे कहते हैं एलेक्सा फलाने को फोन लगाओ, तो वह लोगों के मोबाइल फोन से उस नाम वाले को फोन लगा देती है। घर के एसी का टेंपरेचर कम या अधिक करना हो, लाइट बंद करनी हो, कोई गाना सुनना है, तो ऐसी दर्जनों बातें एलेक्सा से कही जा सकती हैं। अभी एक नए किस्म की दिक्कत सामने आ गई। एक घर में एक बच्ची ने एलेक्सा से कहा कि मुझे कोई चुनौती दो। तो एलेक्सा ने उस बच्ची को कहा कि वह फोन के चार्जर के प्लग को प्लग प्वाइंट में आधा डाले और फिर प्लग के बाहर बच गए आधे हिस्से में दोनों पिनों को एक सिक्के से छुए। अब गनीमत कि उसी वक्त उस बच्ची की मां घर पहुंची और उसने इस हादसे को होने नहीं दिया, वरना वह बच्ची बिजली के करंट की शिकार हो गई रहती। अब एलेक्सा ने ऐसी चुनौती क्यों दी, यह अपने-आपमें एक जांच का मुद्दा है और कंपनी ने अपने एलेक्सा उपकरणों से, और उसकी प्रोग्रामिंग से इस तरह की बात को हटा दिया है। लेकिन इसके पहले की भी ऐसी और बातें हुई हैं जिनमें किसी परिवार में पति-पत्नी आपस में तनाव की कोई बात कर रहे थे, और इलेक्शन ने फोन करके पुलिस को बुला लिया क्योंकि उसे यह लग रहा था कि यहां पर कोई जुर्म हो सकता है।
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस या कृत्रिम बुद्धि का इस्तेमाल अब गाडिय़ों को चलाने में भी हो रहा है, और बहुत से दूसरे कामों में इसका इस्तेमाल बढ़ते चल रहा है। अब दिक्कत यह है कि यह एक ऐसी तकनीक है जिसे विकसित करके उसका इस्तेमाल तो शुरू हो गया है लेकिन यह कृत्रिम बुद्धि कहां तक पहुंचेगी और वह अपने-आपको कितना विकसित कर लेगी इस बात का ठीक-ठीक अंदाज अभी इसे बनाने वालों के पास भी नहीं है। लोगों को याद होगा कि रोबोकॉप नाम की एक फिल्म कई बरस पहले आई थी जिसमें एक रोबो के दिमाग में एक मरने वाले पुलिस अफसर की पूरी बुद्धि डाल दी जाती है, और फिर वह कानून के मुताबिक पुलिस अफसर का जिम्मा पूरा करने लगता है। लेकिन बाद में जाकर वह पुलिस के कई हुक्म मानने से इंकार कर देता है क्योंकि उसकी अपनी बुद्धि उन आदेशों को सही नहीं मानती है। आज इस बारे में लिखने की एक वजह यह भी है कि दुनिया में आज बड़ी बहस चल रही है कि आने वाले जंग के मैदानों में दूर से नियंत्रित ऐसे मशीन मानवों का कितना इस्तेमाल किया जाए जो कि किसी भी तरह की तबाही ला सकते हैं और उनमें उनकी अपनी फौज के किसी इंसानी फौजी की जिंदगी खतरे में भी नहीं पड़ेगी। रिमोट कंट्रोल से कितनी मारक क्षमता का ऐसा इस्तेमाल किया जाए इस पर नैतिक और रणनीतिक दोनों किस्म की बहस चल रही है। हाल में ऐसा हुआ भी है. ईरान में एक परमाणु वैज्ञानिक किसी कार से कहीं जाने वाला था और उसके रास्ते में एक जगह एक ट्रक खड़ी थी जिस पर एक बंदूक फिट थी। इस वैज्ञानिक की कार उसके पास किसी वजह से रुकी और ट्रक की बंदूक से निकली गोलियों ने उस वैज्ञानिक की धज्जियां उड़ा दीं। बाद में पता लगा कि इस बंदूक को उपग्रह के माध्यम से इजराइली खुफिया एजेंसी या फौज चला रही थी, और जैसे ही इसने अपना काम पूरा किया, उपग्रह से ही कमांड भेजकर इस पूरी ट्रक को विस्फोटक से उड़ा दिया गया। इस मामले में तो इजराइली अफसरों ने दूर बैठकर सब कुछ किया, लेकिन अब ऐसे भी रोबो बन सकते हैं जिनकी याददाश्त में किसी का चेहरा, उसका ऑडियो और वीडियो, उसकी आवाज, सब कुछ डाल दिया जाए और उसके बाद वह रोबोट उस व्यक्ति को ढूंढकर उसे मार डाले। इस तकनीक का एक छोटा सा नमूना हिंदुस्तान के कुछ एयरपोर्ट पर अभी शुरू हो रहा है जहां पर चेहरा पहचानने की आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस तकनीक शुरू हो रही है और वहां कैमरों के सामने खड़े होने पर चेहरा देखकर ही वे रास्ता खोल देंगे और किसी टिकट या बोर्डिंग पास को दिखाने की जरूरत नहीं रहेगी। चेहरा पहचानने की यह तकनीक तरह-तरह से काम आएगी और हो सकता है कि हिंदुस्तान की खुफिया एजेंसियां यहां की जांच एजेंसियां या पुलिस चेहरा पहचानने के ऐसे कैमरे लगाकर मुजरिमों को भी पकड़ सके और सरकारों को जो लोग नापसंद हैं उन पर निगरानी भी रख सकें। यह बहुत आसान हो जाएगा कि किसी जगह पर एक कैमरा लगाकर उसके आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस में कोई चेहरा दर्ज कर दिया जाए और उस चेहरे के वहां से गुजरते ही उसकी खबर सुरक्षा या खुफिया एजेंसी को सीधे चली जाए।
लोगों को याद होगा कि अभी कुछ समय पहले फेसबुक ने वहां पोस्ट की जाने वाली तस्वीरों पर से फेस डिटेक्शन टेक्नोलॉजी को हटा दिया है क्योंकि लगातार इस तकनीक का विरोध हो रहा था कि इससे लोगों के चेहरे पहचाने जा रहे हैं उनकी निजता ख़त्म हो रही है। इसलिए अब आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का और कैसा-कैसा इस्तेमाल होता है यह देखने की बात है। ब्रिटेन में अभी एक महिला ने अपने पड़ोसी के खिलाफ एक मामला जीता है जिसने अपने घर पर ऐसा कैमरा लगा रखा था जिसका मुंह उस महिला के घर की तरफ था और इससे वह उस महिला के घर में आने-जाने वाले लोगों पर नजर रख सकता था। पड़ोसी के घर आने-जाने वाले अनजान लोगों के चेहरों को डालकर फेसबुक पर या किसी और जगह उन चेहरों की तलाश करना एक ऐसा काम था जिससे कि लोगों की निजी जिंदगी की गोपनीयता खत्म हो रही थी। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस ऐसे बहुत से काम करने जा रहा है. वह निजी जिंदगी की गोपनीयता का भी कत्ल करेगा, और जंग के मैदानों में भी बिना इंसानी फौजियों के गए हुए वह सिर्फ रोबो भेजकर भी बहुत से हमले कर सकेगा। टेक्नोलॉजी तो अपने-आपमें नासमझ होती है, उसका इस्तेमाल यह तय करता है कि वह विकास के लिए इस्तेमाल हो रही है या विनाश के लिए। लोगों को अपनी जिंदगी में एलेक्सा जैसी दखल के बहुत से पहलुओं के बारे में भी सोचना चाहिए कि उनके घर के भीतर की पूरी तरह से निजी बातचीत किस तरह किसी कंपनी के कंप्यूटर पर दर्ज हो रही है, वहां उसका विश्लेषण किया जा रहा है, लोगों की पसंद, उनकी बातचीत सब कुछ रिकॉर्ड हो रही है, और जाहिर है कि सरकार और कारोबार दोनों ही ऐसी जानकारी का बेजा इस्तेमाल करना चाहेंगे। अपने आस-पास कृत्रिम बुद्धि की मौजूदगी बढ़ाने के बजाय अपनी बुद्धि के ही दुबारा इस्तेमाल की सोचना चाहिए।
(क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)