संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : पंजाब और प्रधानमंत्री, सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में जांच की जरूरत
07-Jan-2022 5:09 PM
 ‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय :  पंजाब और प्रधानमंत्री, सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में जांच की जरूरत

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पंजाब यात्रा के दौरान मौसम बिगड़ा और हेलीकॉप्टर के बजाय उन्हें सडक़ के रास्ते एक आम सभा के लिए रवाना होना पड़ा। इस लंबे रास्ते में किसी जगह पर किसानों का प्रदर्शन चल रहा था और उसकी वजह से मोदी के काफिले को 20 मिनट सडक़ पर रुकना पड़ा जिसे एक बड़ी सुरक्षा चूक माना गया है, और इस पर आज सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई है जहां अदालत ने सुरक्षा इंतजाम के सारे रिकॉर्ड अपने कब्जे में लेने के लिए पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार से कहा है। केंद्र सरकार इसकी अलग स्तर पर जांच करना चाहती है और राज्य सरकार इसकी जांच शुरू कर चुकी है। अब इन दोनों में से किसकी जांच होनी चाहिए यह मामला सुप्रीम कोर्ट में तय होना है, और हो सकता है कि केंद्र और राज्य के बीच की तनातनी को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट अगली सुनवाई में अपनी निगरानी में किसी जांच का आदेश दे. फिलहाल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी राष्ट्रपति से जाकर मिले हैं और उन्हें इस घटना की जानकारी दी है, और राष्ट्रपति ने इसे सुरक्षा चूक लिखते हुए इस पर फिक्र जाहिर की है। इस बीच देशभर से मोदी समर्थकों ने सोशल मीडिया पर प्रधानमंत्री के बच निकलने पर राहत की सांस ली है, और आज बहुत सी जगहों पर अलग-अलग मंदिरों में प्रधानमंत्री के जिंदा बच निकलने को लेकर पूजा-पाठ चल रहा है। छत्तीसगढ़ में भी जगह-जगह मंदिरों में मोदी के बैनर लगाकर भाजपा के नेता पूजा कर रहे हैं। दरअसल जान बचने वाली यह बात खुद नरेंद्र मोदी ने शुरू की जब उनका काफिला करीब 20 मिनट किसान प्रदर्शन की वजह से रुके रहा, और उन्हें एयरपोर्ट लौटना पड़ा, और वहां उन्होंने पंजाब के अफसरों से कहा-अपने मुख्यमंत्री को धन्यवाद देना कि मैं कम से कम भठिंडा एयरपोर्ट जिंदा पहुंच गया।

किसी राज्य सरकार पर किसी प्रधानमंत्री का इससे अधिक गंभीर कोई बयान शायद ही हो सकता है कि उस प्रदेश से प्रधानमंत्री जिंदा निकल पाने पर मुख्यमंत्री को धन्यवाद भेजें। केंद्र और राज्य के संबंधों में यह बहुत ही तनावपूर्ण मौका है जब किसी राज्य के कार्यक्रमों में पहुंचे हुए प्रधानमंत्री इस किस्म से नौबत को खतरनाक पाएं और अपने जिंदा बच निकलने पर राहत महसूस करें। प्रधानमंत्री अपनी आम सभा के लिए जिस रास्ते से निकलने वाले थे उस रास्ते पर कुछ किसानों का प्रदर्शन चल रहा था जिसकी वजह से वह रास्ता बंद था। और यह रास्ता पहले से तय रास्ते से अलग था, या वही रास्ता था, या किसानों का प्रदर्शन वहां पर होने ही नहीं देना था, या प्रधानमंत्री की जिंदगी पर उस किस्म का कोई खतरा था जैसा कि उन्होंने कहा और जैसा कि उनके समर्थक देश भर में कह रहे हैं, इन तमाम बातों पर तो सुप्रीम कोर्ट में बहस चल ही रही है और वहां से जो भी जांच तय होगी उस जांच में यह सारे मामले सामने आएंगे। फिलहाल जो तथ्य सामने दिख रहे हैं उनको देखते हुए प्रधानमंत्री के सार्वजनिक बयान, उनकी नाराजगी, और अपने-आपके लिए फिक्र, देश के लिए एक बहुत बड़ी फिक्र की बात है। उनके बयान के बाद यह भी समझने की जरूरत है कि अब तक जो तथ्य सामने आए हैं क्या उनसे प्रधानमंत्री की जिंदगी पर ऐसा कोई खतरा मंडरा रहा था? या प्रधानमंत्री के समर्थक और प्रशंसक जिस तरह से इसे एक साजिश करार दे रहे हैं, तो क्या यह सचमुच राज्य सरकार की एक साजिश थी? जैसा कि छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल सहित कांग्रेस के बहुत से लोग मीडिया में कह रहे हैं, दूसरी जगहों पर बयान दे रहे हैं कि क्या यह प्रधानमंत्री की आम सभा में खाली पड़ी हुई कुर्सियों की वजह से खुद होकर रद्द की गई सभा थी? यह तमाम बहुत असुविधाजनक सवाल हैं लेकिन चूंकि यह एक सार्वजनिक मुद्दा है और प्रधानमंत्री ने इसे और अधिक सार्वजनिक बनाया है, इसलिए पंजाब सरकार से लेकर प्रधानमंत्री तक, और राज्य से लेकर केंद्र तक की सुरक्षा एजेंसियों से सवाल तो होंगे ही। और जैसा कि कांग्रेस के नेताओं ने कल याद दिलाया है कि इस देश ने पहले प्रधानमंत्रियों को हमलों में खोया है, इसलिए प्रधानमंत्री की जिंदगी देश का सबसे बड़ा सुरक्षा मुद्दा है। इसलिए प्रधानमंत्री को अपनी जिंदगी पर लगते हुए खतरे को कम आंकना गलत होगा। हम बस केवल इतना समझना चाह रहे हैं कि अभी तक जो बातें सामने आई हैं उनमें से कौन सी ऐसी बात है जिसकी वजह से प्रधानमंत्री को ऐसा लगा और उन्होंने सार्वजनिक रूप से ऐसा कहा जिससे कि पूरे पंजाब की सरकार और जनता के ऊपर एक ऐसा लांछन दिखता है कि वहां प्रधानमंत्री की जिंदगी खतरे में थी।

यह बात जरूर है कि प्रधानमंत्री जिस रास्ते से निकलने वाले थे वहां पर किसानों का एक प्रदर्शन चल रहा था। लेकिन ये वही किसान हैं जो दिल्ली की सरहद पर साल भर से अधिक वक्त तक डटे हुए थे और जिन्होंने वहां कोई हिंसा नहीं होने दी। ऐसे किसान अब उस आंदोलन को खत्म करने के बाद जब बाकी मुद्दों को लेकर आंदोलन कर रहे हैं तो क्या उनसे प्रधानमंत्री को अपनी जान का कोई खतरा लग रहा था? अगर ऐसी बात है तो यह बहुत ही गंभीर लांछन है कि किसान आंदोलन से प्रधानमंत्री की जिंदगी को खतरा लग रहा। दूसरी तरफ राज्य सरकार के इंतजाम से अगर प्रधानमंत्री को ऐसा कोई खतरा लग रहा था, तो भी यह बहुत गंभीर बात है और अगर ऐसी कोई बात साबित होती है तो राज्य की सरकार बर्खास्त कर दी जानी चाहिए। लेकिन अभी तक जो बातें देखने में आ रही हैं, उन्हें देखकर लगता है कि प्रधानमंत्री एक पुल पर अपनी कार में अपने काफिले के बीच सुरक्षित बैठे हुए थे, न तो उनके सामने कोई विरोध प्रदर्शन हो रहा था, और न ही उनके सुरक्षा अधिकारियों में कोई हड़बड़ी या भगदड़ दिख रही थी। बल्कि आज जो वीडियो सामने आए हैं उनके मुताबिक तो उसी पुल पर दूसरी तरफ उनकी कार के ठीक सामने भाजपा के झंडे लेकर भाजपा का दुपट्टा गले में डाले हुए बहुत से लोग प्रधानमंत्री के समर्थन में नारे लगा रहे थे जो कि पहली नजर में भाजपा के देख रहे थे और वह भी कोई विरोध विरोध प्रदर्शन नहीं था। या भी बात याद रखने लायक है कि अभी दो-चार दिन पहले ही यह खबर आई थी कि प्रधानमंत्री की कार किस तरह सुरक्षित कार है, और पंजाब में प्रधानमंत्री के लिए अगर कोई दूसरी कार भी थी तो भी वह बुलेट प्रूफ रही होगी, और पूरे काफिले के सामने किसी ने कोई खतरा खड़ा किया हो ऐसी कोई बात अब तक सामने नहीं आई है। इसलिए प्रधानमंत्री की कही हुई यह बात पंजाब की सरकार, वहां के मुख्यमंत्री, और वहां की जनता पर एक बड़ा लांछन है कि प्रधानमंत्री बचकर एयरपोर्ट तक पहुंच पाए, जिंदा पहुंच पाए, और इसके लिए वे मुख्यमंत्री के आभारी हैं। देश का प्रधानमंत्री सबसे जिम्मेदार ओहदा होता है और चुनाव के दौरान भी केंद्र और राज्य के संबंधों के बीच कोई प्रधानमंत्री किसी मुख्यमंत्री के लिए गैर जिम्मेदारी से इतना बड़ा बयान नहीं दे सकता, अब बस इंतजार इस बात का है कि उन्हें किस बात से ऐसा लगा कि उनकी जान को कोई खतरा था? देश के प्रधानमंत्री की जिंदगी पर कोई खतरा हो यह पूरे देश के लिए एक खतरे की बात है, और इस देश के लोगों को यह जानने का हक है कि प्रधानमंत्री को अपनी जिंदगी पर खतरा किस बात को लेकर लगा? आज कई राज्यों में चुनाव होने जा रहे हैं जिनमें पंजाब भी शामिल है। लेकिन ऐसा नहीं लगता है कि इनमें से कोई भी राज्य प्रधानमंत्री पर हमला करके कुछ हासिल कर सकता है। पंजाब के मुख्यमंत्री चाहे किसी पार्टी के हो, वे प्रधानमंत्री के काफिले पर किसी हमले की सोच सकते हैं ऐसा हमें दूर-दूर तक नहीं लगता है, देश का कोई भी मुख्यमंत्री ऐसा नहीं सोच सकता और न ही किसी भी राज्य या मुख्यमंत्री की इतनी ताकत है।

यह मामला केंद्र और राज्य के संबंधों को लेकर एक बहुत ही खतरनाक नौबत पेश करता है जिसमें प्रधानमंत्री को राज्य सरकार, मुख्यमंत्री, और शायद प्रदेश के लिए भी ऐसी बात करनी पड़ी। प्रधानमंत्री का बयान देश के लोगों के लिए बहुत मायने रखता है और मोदी तो सबसे अधिक लोकप्रिय प्रधानमंत्री हैं। इसलिए उनकी कही हुई कि कोई एक बात देशभर में पंजाब के लोगों के लिए भी एक तनाव खड़ी कर सकती है, इसलिए इस बात पर कुछ अधिक खुलासा होना चाहिए कि प्रधानमंत्री को अपनी जिंदगी पर ऐसा खतरा क्यों महसूस हुआ?आज आरोप लगाने वाले बहुत से लोग इस साजिश या इस चूक के लिए पंजाब के मुख्यमंत्री, वहां की कांग्रेस सरकार के साथ-साथ सोनिया गांधी और राहुल के परिवार को भी साजिश में शामिल बता रहे हैं। इस बात की भी जांच होनी चाहिए कि प्रधानमंत्री के रास्ते में ऐसा कोई खतरा खड़ा करने के पीछे क्या इस परिवार का कोई हाथ था? और क्या यह परिवार इतनी ताकत रखता है कि देश के प्रधानमंत्री पर, उनकी जिंदगी पर एक खतरा खड़ा कर सके? यह सिलसिला सचमुच ही सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में एक जांच के लायक है, और देश के प्रधानमंत्री की जिंदगी किसी भी दूसरे नागरिक की जिंदगी के मुकाबले अधिक महत्वपूर्ण है, खासकर इस संदर्भ में जबकि उन्हें अपनी जिंदगी पर एक खतरा महसूस हुआ है, और उनके समर्थक देशभर में उनकी जिंदगी के लिए पूजा करने पर मजबूर हुए हैं। देश की सर्वोच्च अदालत की निगरानी में यह जांच होनी चाहिए कि प्रधानमंत्री की जिंदगी पर किस तरह का खतरा था और जाहिर है कि ऐसी जांच इस बात को तो देखेगी ही कि प्रधानमंत्री को किस आधार पर ऐसी बात कहनी पड़ी थी।
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