विचार / लेख

सुरक्षा और गांधी
08-Jan-2022 12:05 PM
सुरक्षा और गांधी

नोआखली पदयात्रा के दौरान एक स्थानीय मुसलिम बुजुर्ग से बतियाते गांधी।

-पुष्य मित्र

आज से ठीक 75 साल पहले की बात है। साल 1947 और जनवरी का पहला हफ्ता था। बंगाल के नोआखली के श्रीरामपुर गांव में अकेले 42 दिन गुजारने के बाद गांधी ने तय किया था कि वे अब नोआखली के दंगा ग्रस्त इलाके के गांव-गांव तक जायेंगे।

उसने अपनी यह यात्रा दो जनवरी, 1947 को श्रीरामपुर से शुरू की थी। लगभग तीन मील पैदल चलने के बाद उसका पहला पड़ाव आया। उस गांव का नाम चंडीपुर था। उस गांव पहुंच कर गांधी ने नोआखली के पुलिस सुप्रिंटेंडेंट अब्दुल्ला सबसे पहले याद किया, वह अब्दुल्ला जो गांधी से बहुत स्नेह करने लगा था और इस यात्रा के दौरान बीस पुलिसकर्मियों के साथ शामिल हुआ था, ताकि गांधी की सुरक्षा में कोई कमी न हो। गांधी ने उसे बुलाकर कहा, मैं यह पसंद नहीं करता कि पुलिस वाले मेरे साथ रहें। बंगाल की सरकार जिस जागरूकता के साथ मेरी सुरक्षा का प्रयत्न कर रही है, उसकी मैं कदर करता हूं। मगर मुझे ईश्वर के सिवा किसी और की सुरक्षा नहीं चाहिए। यह कह कर अब्दुल्ला और उनकी टीम को विदा कर दिया गया।

उस वक्त बंगाल में मुस्लिम लीग की सरकार थी। शहीद सुहरावर्दी बंगाल के मुख्यमंत्री थे। वही सुहरावर्दी जिनके शासन में पहले कलकत्ता और फिर नोआखली में भीषण दंगे हुए थे। नोआखली के जिन इलाकों में गांधी घूम रहे थे, वहां मुस्लिम लीग के कट्टर समर्थक भरे पड़े थे, जो गांधी से इतनी नफरत करते थे कि उनकी राह में शीशों के टुकड़े और मल फेंक देते थे। वह इसलिए कि गांधी ने तय किया था कि वे हिंसा से जख्मी हो चुकी इस भूमि पर पैदल यात्रा करेंगे।

वे पूरे जनवरी और फरवरी महीने इसी तरह पैदल, नंगे पांव और बिना सुरक्षा के यात्रा करते रहे। इस यात्रा के दौरान उन्होंने अपने प्रेम से अपने विरोधियों को अपना मुरीद बना लिया। उनके मन में शायद बु्द्ध थे, जिनमें निहत्थे अंगुलीमाल डाकू का सामना करने का साहस था। इसे पढ़ते हुए मैंने सीखा कि सुरक्षा के लिए किसी एसपीजी फोर्स की जरूरत नहीं। जननेता अगर अपने लोगों से प्रेम करना सीख जाये तो यही उसकी सुरक्षा की गारंटी है।

हालांकि इसमें मारे जाने का खतरा भी है। जैसे गांधी मारे गये, इंदिरा मारी गईं। मगर दोनों ने यह साहस किया था कि वे खुद और अपने लोगों के बीच बेवजह की सुरक्षा की दीवार खड़ी नहीं करेंगे। यह हर नेता के लिए सीखने की बात है। सीखना चाहिए।

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