सामान्य ज्ञान
भरहुत एक गांव है, जो बरदावती, बरदादोह या भैरोंपुर भी कहलाता है। इलाहाबाद से 190 किमी दक्षिण-पश्चिम में, पूर्वोत्तर मध्यप्रदेश राज्य, मध्य भारत का यह हिस्सा है। सतना-अमरपाटन सडक़ मार्ग पर सतना से 14 किमी की दूरी पर भरहुत स्थित है।
स्थानीय मान्यता है कि इस गांव की स्थापना भोरो जाति ने की थी। भरहुत 1873 में अलेक्जेंडर कनिंघम द्वारा खोजे गए बौद्घ स्तूप के अवशेषों के लिए विख्यात है। स्तूप की मूर्तियों के अवशेष अब कोलकाता (भूतपूर्व कलकत्ता) के राष्टï्रीय संग्रहालय और इलाहाबाद के नगर पालिका संग्रहालय में संरक्षित है। भरहुत के स्तूप की दीवारों पर बड़ी संख्या में जातक कथाएं (बुद्घ के पूर्वजन्म की लोककथाएं) चित्रित हैं।
स्तूप का निर्माण संभवत: अशोक (लगभग 250 ई.पू.) के समय प्रारंभ हुआ था। यह मूलत: ईंटों का बना है। दूसरी शताब्दी ई.पू. में इसका आकार बढ़ाकर इसके आसपास के क्षेत्र को पत्थर की दीवार से घेर दिया गया था। इस दीवार के भीतरी हिस्से से अत्यंत सजीव चित्रकारी की गई है। पहली शताब्दी ई.पू. के आरंभ में पत्थर के चार द्वारों (तोरण) का प्रवेश मार्गों के रूप में निर्माण किया गया। प्रवेश द्वारों पर मिले अभिलेख से पता चलता है कि 72 ई.पू. से पहले शूंगों ने इसका निर्माण किया था। चैत्य में सुसज्जित कलाकृतियां भारत में विकासोनमुख बौद्घ कला का प्राचीनतम व उत्कृष्टï उदाहरण प्रस्तुत करती हैं।
कनिंघम ने स्तूप के अवशेषों के निकट ही एक खंडित मंदिर भी खोज की। भरहुत में पाई गई मूर्तियां बड़ी संख्या में और विविध रूपाकृतियों की हैं, जिनका भारतीय इतिहास के अध्ययन में विशेष महत्व है। यथ, यक्षिणियों, नागों देवताओं तथा राजा-रानियों और शिल्पियों की मानव आकृतियां इसके कुछ उदाहरण हैं। सांची ओर बोध गया के साथ भरहुत मौर्यों की राजसी कला के विपरीत समष्टिï में भारतीय जनसाधारण की पहली संगठित कला संबंधी गतिविधियों का प्रतिनिधित्व करता है।