सामान्य ज्ञान

सॉवरेन डेट रेटिंग क्या है?
14-Jan-2022 11:00 AM
सॉवरेन डेट रेटिंग क्या  है?

इंटरनेंशनल एजेंसियां देश की सरकारों की उधारी चुकाने की क्षमता का आकलन करती हैं। इसके लिए वह इकनॉमिक, मार्केट और पॉलिटिकल रिस्क को आधार बनाती हैं। सॉवरेन डेट रेटिंग यह बताती है कि क्या देश आगे चलकर अपनी देनदारियों को समय पर पूरा चुका सकेगा? यह रेटिंग टॉप इन्वेस्टमेंट ग्रेड से लेकर जंक बॉन्ड तक होती है। जंक बॉन्ड को डिफॉल्ट अंग्रेजी के लेटर में व्यक्त किया जाता है।

रेटिंग एजेंसियां आमतौर देशों की रेटिंग को फ्यूचर ऐक्शन की संभावना के हिसाब से तीन कैटिगरी में बांटती हैं। ये कैटिगरी नेगेटिव, स्टेबल और पॉजिटिव आउटलुक हैं। जिस देश का आउटलुक पॉजिटिव बताया जाता है, उसकी रेटिंग में अपग्रेडिंग के चांस ज्यादा रहते हैं और इसका उलटा होने की भी संभावना होती है। भारत की क्रेडिट रेटिंग को स्टेबल से घटाकर नेगेटिव कर दिया गया है। फिच ने इसे घटाकर जंक स्टेटस करने की वॉर्निंग दी है। रेटिंग आमतौर पर तब बदलती है, जब इकनॉमिक ग्रोथ, एक्सटर्नल फैक्टर और सरकारी खजाने की हालत में ज्यादा बदलाव होता है।

क्रेडिट रेटिंग में सिर्फ क्रेडिट के एक पहलू पर फोकस किया जाता है। वह है समय पर मूलधन और ब्याज चुकाने की क्षमता। जिन देशों में पूरी कैपिटल कनवर्टिबिलिटी है, वे अपनी जरूरतें पूरी करने के लिए दुनिया भर के इन्वेस्टर से कर्ज लेते हैं। इन्वेस्टर कोई फैसला लेने से पहले रेटिंग पर गौर करते हैं। रेटिंग जितनी ऊंची होगी, रिस्क उतना ही कम माना जाएगा। इससे कम रेटिंग वाले देश के मुकाबले कम रेट पर कर्ज लेने का मौका मिलेगा।

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