संपादकीय
हिंदुस्तान की राजनीति में कांग्रेस और भाजपा के बीच तो आमने-सामने की लड़ाई चलती ही रहती है, और ऐसा लगता है कि देश का ऐसा कोई गठबंधन कभी भी नहीं बन सकेगा जिसमें ये दोनों पार्टियां एक साथ हों, लेकिन कांग्रेस और वामपंथी दलों से परे बाकी किसी पार्टी को भाजपा से ऐसा कोई परहेज नहीं है, और कश्मीर की दोनों मुस्लिम पार्टियां भी भाजपा के साथ रह चुकी हैं, उत्तर प्रदेश की कई पार्टियां भाजपा के साथ काम कर चुकी हैं, और अभी देश के एक कोने के छोटे से राज्य गोवा के चुनाव में भाजपा से परे दो पार्टियों के बीच एक जुबानी जमाखर्च शुरू हुआ है। वहां पर कांग्रेस के पी. चिदंबरम ने अभी यह बयान दिया कि गोवा में कांग्रेस और बीजेपी के बीच मुख्य लड़ाई है और आम आदमी पार्टी या टीएमसी के उम्मीदवार अगर कुछ वोट हासिल करते हैं, तब वे गैरभाजपा वोट काटेंगे। चिदंबरम की बात का साफ-साफ मतलब यह है कि तृणमूल कांग्रेस और आम आदमी पार्टी गोवा में वोटकटवा की तरह रहेंगे जो कि कांग्रेस का ही नुकसान करेंगे, और एक दूसरे हिसाब से भाजपा को फायदा पहुंचाएंगे। जाहिर है कि देश की सबसे तेजतर्रार और सबसे अधिक तैश वाली नेता ममता बनर्जी की पार्टी इस बात को आसानी से बर्दाश्त नहीं करती, और उनकी तरफ से गोवा के लिए प्रभारी बनाई गई लोकसभा की एक सबसे तेज वक्ता, महुआ मोइत्रा ने इसके जवाब में कहा कि कांग्रेस को यह समझ लेना चाहिए कि उसके नेता देश के राजा नहीं हैं। उन्होंने कहा कि गोवा में सबसे पुरानी पार्टी, कांग्रेस ने अपना काम ठीक से नहीं किया, और अगर किया होता तो बीजेपी को हराने के लिए तृणमूल कांग्रेस को इस तटीय राज्य में आने की जरूरत नहीं पड़ती। महुआ मोइत्रा ने कहा कि आज वक्त की जरूरत है कि बीजेपी को हराया जाए, और टीएमसी यहां बीजेपी को हराने के लिए गठबंधन करने को तैयार है, लेकिन इसके लिए कांग्रेस को अपना सर्वोच्च वाला व्यवहार छोडऩा होगा कि मानो वही सुप्रीम है।
यह बात बड़ी दिलचस्प है क्योंकि अभी कुछ दशक पहले तक ममता बनर्जी कांग्रेस के भीतर ही एक नौजवान नेत्री थी और पार्टी छोडक़र उन्होंने तृणमूल कांग्रेस बनाई और कभी एनडीए के साथ, तो कभी अपने दम पर, उन्होंने तरह-तरह से राजनीति की, और आज उन्होंने बंगाल के चुनाव में मोदी और शाह को सीधी शिकस्त देकर अपने-आपको राष्ट्रीय स्तर पर नेतृत्व का एक दावेदार बनाकर पेश कर दिया है। जाहिर है कि कांग्रेस को ममता बनर्जी के तेवरों को बर्दाश्त करना आसान नहीं लगेगा और इन दोनों के बीच तालमेल की अधिक गुंजाइश कहीं भी नहीं दिख रही है। बंगाल के पिछले विधानसभा चुनाव में जिस तरह से विधानसभा में केवल विधायकों के हाथ की शक्ल में हाथ पहुंचा है, पार्टी निशान के रूप में एक भी नहीं पहुंचा, उसके बाद ममता बनर्जी के आसमान पहुंचे तेवर और कांग्रेस की बंगाल की फर्श पर पहुंची हकीकत के बीच कोई तालमेल आसान भी नहीं है। लेकिन अगर तृणमूल कांग्रेस सचमुच ही गोवा में कोई तालमेल करना चाहती है, तो उसे जहरीले और तेजाबी बयान देना छोडक़र शरद पवार जैसे एक गंभीर और परिपच् मध्यस्थ के रास्ते बात करनी चाहिए थी। यही काम कांग्रेस पार्टी को भी करना चाहिए था, और यह काम शरद पवार ने अपने स्तर पर करने की कोशिश भी की। लेकिन एक पार्टी का अपने इतिहास का दंभ, और दूसरी पार्टी का ताजा हासिल कामयाबी का घमंड, एक-दूसरे के सामने बराबरी से खड़े नहीं हो पा रहे हैं। और भाजपा की यह कामयाबी ही होगी कि गोवा में गैरभाजपाई वोट कतरा-कतरा होकर बिखर जाएं। फिर यह भी है कि यह बात महज गोवा में नहीं है। यह बात उत्तर प्रदेश में भी है जहां पर पिछले चुनाव की साझेदारी खत्म हो चुकी है, और इस बार समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी, और कांग्रेस तीनों एक-दूसरे के खिलाफ ताल ठोकते खड़े हैं। नतीजा यह है कि उत्तर प्रदेश में भाजपा के खिलाफ मतदाता के लिए चौथाई या आधा दर्जन दूसरे विकल्प मौजूद रहेंगे, और ऐसा लगता है कि समाजवादी पार्टी से परे की बाकी पार्टियों को लोग वहां वोटकटवा मान रहे हैं। कांग्रेस को यह बात बर्दाश्त करना कुछ मुश्किल हो सकता है, लेकिन पिछले चुनाव में चार सौ से अधिक सीटों वाली विधानसभा में कांग्रेस को मिली करीब आधा दर्जन सीटें इस हकीकत को बताती हैं कि उसकी जमीन वहां खो चुकी है, और अगर कोई करिश्मा होता है, तो ही कांग्रेस पार्टी कुछ अधिक सीटें पा सकती है। फिलहाल तो ऐसा लगता है कि भाजपा इस बात का मजा ले रही है कि उत्तर प्रदेश में कांग्रेस कितनी अधिक मेहनत कर सकती है, और उससे समाजवादी पार्टी की संभावनाओं का कितना नुकसान हो सकता है। उत्तर प्रदेश का चुनाव अभी दूर है और अभी से किसी को संपन्न और किसी को विपन्न करार देना बहुत अच्छी बात नहीं होगी, लेकिन जो बात पर चिदंबरम ने गोवा में तृणमूल कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के बारे में कही है, वैसी ही बात बहुत से राजनीतिक विश्लेषक उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के लिए कह रहे हैं।
अब उत्तर प्रदेश में लंबे इतिहास वाली, देश की सबसे पुरानी कांग्रेस पार्टी ने अपने लीडर परिवार की एक बड़ी धरोहर प्रियंका गांधी को पहली बार चुनाव मैदान में पूरी तरह झोंक दिया है, इसलिए वहां कोई करिश्मा हो जाए ऐसी उम्मीद भी हो सकता है कि यह पार्टी कर रही हो। अगर ऐसा नहीं होगा तो वहां कांग्रेस का नफा, सपा का नुकसान रहेगा, और यही कामना करते हुए भाजपा के लोग सुबह की पूजा और शाम की आरती कर रहे हैं। इस बार क्योंकि देश का एक सबसे बड़ा राज्य चुनावी मैदान में है, और बहुत बड़ी आबादी उत्तर प्रदेश में है, बहुत से लोगों को ऐसा लगता है कि यूपी सहित इन पांच राज्यों के चुनाव अगले लोकसभा आम चुनाव के पहले के सबसे बड़े चुनाव रहने वाले हैं। लेकिन इसमें भाजपा के खिलाफ लडऩे वाले राजनीतिक दलों के बीच किसी तरह का कोई तालमेल न होना 2024 के लोकसभा चुनावों में भी भाजपा और इंडिया एनडीए की संभावनाओं को मजबूत करता है। अभी तो पंजाब, यूपी, उत्तराखंड, गोवा, मणिपुर के चुनाव ही खासे दूर हैं, और इन चुनावों के निपटने तक ऐसा एक खतरा दिखाई देता है कि एनडीए विरोधी पार्टियों के बीच एक कटुता और कड़वाहट बढ़ चुकी रहेगी। आगे-आगे देखें होता है क्या...
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