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मैंने अखिलेश को बड़ा भाई माना है, वो मुझे छोटा भाई मानें तो बन सकती है बातः चंद्रशेखर
17-Jan-2022 8:54 AM
मैंने अखिलेश को बड़ा भाई माना है, वो मुझे छोटा भाई मानें तो बन सकती है बातः चंद्रशेखर

इमेज स्रोत,BASFORIGINAL, भीम आर्मी के संस्थापक चंद्रशेखर ने आज़ाद समाज पार्टी का गठन किया है

-दिलनवाज़ पाशा

भीम आर्मी के नेता और आज़ाद समाज पार्टी के संस्थापक चंद्रशेखर आज़ाद ने समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन की संभावनाओं को बरकरार रखते हुए कहा है, "अखिलेश को मैंने बड़ा भाई मान लिया है, यदि वो मुझे छोटा भाई नहीं मानेंगे तो मैं अपना निर्णय लूंगा. अभी मैं उनके संदेश का इंतेज़ार कर रहा हूं."

बीबीसी से बातचीत में चंद्रशेखर आज़ाद ने कहा, "मैंने ये कह दिया है कि ये लड़ाई अकेले चंद्रशेखर की नहीं है. ये दलितों, वंचितों, शोषितों, मुसलमानों, बौद्धों, अल्पसंख्यकों हर वर्ग के अधिकार की लड़ाई है. यदि अखिलेश ये कहेंगे कि यूपी में बीजेपी को रोकने के लिए मुझे चंद्रशेखर की ज़रूरत है तो मैं बिना एक सीट लिए भी उनके साथ जाने को तैयार हूं."

वहीं समाजवादी पार्टी का भी कहना है कि अभी चंद्रशेखर से गठबंधन के रास्ते बंद नहीं हुए हैं. क्या चंद्रशेखर के साथ बिगड़ी बात बन सकती है इस सवाल पर पार्टी प्रवक्ता मनोज पांडे ने कहा, "राजनीति में कभी संभावनाएं ख़त्म नहीं होती हैं ना ही स्थायी रूप से कोई दरवाज़ा बंद होता है. राजनीति में बातचीत चलती रहती है."

चंद्रशेखर ने शनिवार को एक प्रेसवार्ता करके आरोप लगाया था कि अखिलेश यादव ने 'दलितों को सम्मान' नहीं दिया और आज़ाद समाज पार्टी का गठबंधन नहीं हुआ.

इसके जवाब में अखिलेश ने एक प्रेसवार्ता में कहा, ''चंद्रशेखर से बात पक्की हो गई थी. हम उन्हें गठबंधन में दो सीटें देने के लिए तैयार थे. लेकिन फिर उनके पास किसी का फ़ोन आया और उन्होंने कहा कि वो चुनाव नहीं लड़ना चाहते हैं और उठकर चले गए.''

क्या चंद्रशेखर को कोई निर्देशित कर रहा है?
ये सवाल पूछा जा रहा है कि वो कौन है जिसने चंद्रशेखर को फ़ोन किया और फिर गठबंधन की बात बनते-बनते बिगड़ गई. राजनीतिक हलकों में ये चर्चा भी हुई कि क्या कोई चंद्रशेखर को पीछे से निर्देशित कर रहा है.

इस सवाल को ख़ारिज करते हुए चंद्रशेखर कहते हैं, "हम लोकतांत्रिक व्यवस्था में विश्वास रखते हैं. भीम आर्मी और आज़ाद समाज पार्टी में सिर्फ़ मैं ही अंतिम निर्णय नहीं लेता हूं. हमारी कोर समिति निर्णय लेती है. पिछले छह महीनों की वार्ता के बाद मैं 25 सीटों के प्रस्ताव के साथ अखिलेश यादव के पास गया था. इसके बदले में जो प्रस्ताव उन्होंने दिया वो मैंने भीम आर्मी के समक्ष रखा. भीम आर्मी कोर कमेटी ने मुझसे कहा कि अगर अखिलेश यूपी के 25 फ़ीसदी दलितों के प्रतिनिधित्व को सिर्फ़ दो सीटें दे रहे हैं तो ये हमें स्वीकार नहीं है."

बीबीसी से बातचीत में चंद्रशेखर कहते हैं, "अखिलेश यादव ने मुझे मंत्री बनाने का प्रस्ताव दिया. उन्होंने मुझसे कहा कि मैं विधायक बन जाऊंगा. लेकिन मैं राजनीति में सत्ता सुख के लिए नहीं बल्कि अपने लोगों के मुद्दों के समाधान के लिए आया हूं. मैं अखिलेश जी के साथ बीजेपी को रोकने के लिए जाना चाहता हूं. बीजेपी ने लोकतंत्र, संवैधानिक संस्थाओं और आरक्षण पर प्रहार किया है. महिलाएं सुरक्षित नहीं हैं. मुझे लगता है कि यदि फिर से बीजेपी सत्ता में आएगी तो यूपी के वंचित वर्ग पर और अत्याचार बढ़ जाएंगे."

चंद्रशेखर ने एक दिन पहले ही समाजवादी पार्टी पर दलितों के सम्मान के साथ खिलवाड़ के आरोप लगाए थे. उन्होंने कहा था कि समाजवादी पार्टी दलितों का वोट तो चाहती है, लेकिन उसे उचित प्रतिनिधित्व नहीं देना चाहती. चंद्रशेखर के बयानों में अखिलेश यादव और समाजवादी पार्टी के लिए तल्खी साफ़ नज़र आई थी.

लेकिन चौबीस घंटों के भीतर ही उनकी राय बदल गई लगती है. जब उनसे पूछा गया कि क्या वो अब भी अखिलेश के साथ गठबंधन में जाना चाहते हैं तो उन्होंने कहा, "अखिलेश का ये कहना है कि वो सामाजिक न्याय के मुद्दों पर हमारे साथ हैं. जो ग़लतियां पहले उनसे हुई हैं उन्हें वो स्वीकार करें. प्रमोशन में आरक्षण, मुसलमानों के प्रतिनिधित्व का वादा करें, तो मैं बिना किसी शर्त के, बिना कोई सीट लिए उनके साथ जाने को तैयार हूं. ये मामला दलितों के स्वाभिमान का है. वो दलितों के स्वाभिमान को सम्मान दें, हम उनके साथ हैं."

अखिलेश यादव सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी के ख़िलाफ़ सभी सामाजिक और राजनीतिक वर्गों का गठबंधन तैयार कर रहे हैं. इसके लिए उन्होंने छोटे दलों से गठबंधन किए हैं. हालांकि दलितों का प्रतिनिधित्व करने वाली बहुजन समाज पार्टी इस गठबंधन से दूर है. कांग्रेस पार्टी भी इसमें शामिल नहीं है.

अखिलेश यादव ने पश्चिमी उत्तर प्रदेश में राष्ट्रीय लोकदल को साथ लिया है. ओम प्रकाश राजभर की सुभासपा (सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी), कृष्णा पटेल की अपना दल कमेरावादी भी समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन में शामिल है.

हाल ही में स्वामी प्रसाद मौर्य समेत पिछड़ा वर्ग के कई नेता भाजपा छोड़कर समाजवादी पार्टी में शामिल हुए हैं. अखिलेश यादव सभी वर्गों को साथ लेकर बीजेपी को चुनौती देने की कोशिश कर रहे हैं.

उत्तर प्रदेश में जातिगत गणना नहीं हुई है, लेकिन अनुमानों के मुताबिक़ अनुसूचित जाति और जनजातियों की संख्या बीस प्रतिशत से अधिक है.

हालांकि पारंपरिक तौर पर ये वर्ग समाजवादी पार्टी का हिस्सा नहीं रहे हैं. विश्लेषक मानते हैं कि चंद्रशेखर को साथ लेकर अखिलेश यादव इन्हीं वर्गों में अपनी पैठ मज़बूत कर सकते हैं. लेकिन अभी तक अखिलेश यादव और चंद्रशेखर के बीच गठबंधन नहीं हो सका है.

बीबीसी से बात करते हुए चंद्रशेखर कहते हैं, "उत्तर प्रदेश में भाजपा को रोकने के लिए जो भी ज़रूरी है, मैं वो करने के लिए तैयार हैं. मैंने अपने लोगों के विरोध के बावजूद अखिलेश के साथ जाने का प्रयास किया था. मैं पिछले छह महीनों से अखिलेश के साथ जाने की तैयारी कर रहा था. हम सामाजिक न्याय की लड़ाई लड़ना चाहते हैं. हमारे लिए सत्ता से अधिक महत्व सामाजिक लड़ाई का है."

चंद्रशेखर कहते हैं, "मैंने कल प्रेस कांफ्रेस में अपनी बात कही है. मैंने कोई विवाद नहीं किया है. अखिलेश ने छह महीने से मेरा समय ख़राब किया. अगर वो हमसे कहते कि तुम अलग लड़ो तो मैं अपनी ताक़त साबित करता. यूपी में 25 फ़ीसदी दलित और आदिवासी समाज है. इस समाज ने पहले भी अपने आप को साबित किया है. मैंने शनिवार को अखिलेश यादव को 48 घंटों का समय दिया है. सोमवार सुबह दस बजे वो समय समाप्त हो रहा है. मैं अखिलेश के संदेश का इंतेज़ार कर रहा हूं. उसके बाद मैं अपना निर्णय लूंगा."

समाजवादी पार्टी का तर्क है कि सीटों की संख्या को लेकर चंद्रशेखर के साथ बात नहीं बन सकी है. सपा प्रवक्ता मनोज पांडे कहते हैं, "अखिलेश यादव ने सभी दलों को जोड़ने का प्रयास किया है. सभी छोटे दल जिनसे स्वाभाविक रूप से गठबंधन हो सकता था, उनके साथ गठबंधन किया है, उन्हें शामिल करने की पूरी कोशिश की है. उत्तर प्रदेश में सीटें सीमित हैं, सीटों के हिसाब से ही दलों को जगह दी जाएगी. जहां तक हम समझते हैं कि दलित समाज के प्रतिनिधित्व का सवाल है तो अखिलेश जी ने हर मंच से कहा है कि समाजवादी और अंबेडकरवादी एक साथ काम कर रहे हैं."

जब उनसे पूछा गया कि चंद्रशेखर के साथ आने से पार्टी को अनुसूचित जाति और जनजाति वर्ग में पैठ बनाने में मदद मिल सकती थी और चंद्रशेखर के अखिलेश के ख़िलाफ़ जाने से पार्टी को नुक़सान हो सकता है तो उन्होंने कहा, "सावित्री बाई फुले इसी वर्ग से हैं. उन जैसे कई बड़े चेहरे समाजवादी पार्टी में हैं. अवधेश पासी हैं, इंद्रजीत सरोज हैं, आरके चौधरी हैं, मिठाई लाल हैं. समाजवादी पार्टी ने वंचित समाज को पूरा प्रतिनिधित्व दिया है और उन्हें साथ लिया है. वंचित वर्ग हमारे मुद्दों के साथ है."

भीम आर्मी के ज़रिए वंचित समूहों के अधिकारों की लड़ाई लड़ने वाले चंद्रशेखर ने सुर्खियां तो ख़ूब बटोरी हैं लेकिन अभी राजनीति में वो अपनी छाप नहीं छोड़ सके हैं. उनकी आज़ाद समाज पार्टी अभी भी गठन की प्रक्रिया में ही है. पार्टी का कोई मज़बूत ढांचा नहीं है. उनके वित्तीय स्रोत भी सीमित हैं. समाजवादी पार्टी से गठबंधन नहीं हुआ तो चंद्रशेखर के लिए चुनाव लड़ना बहुत आसान नहीं होगा.

चंद्रशेखर के क़रीबी रहे पत्रकार वसीम अगरम त्यागी मानते हैं कि उत्तर प्रदेश का चुनाव राजनीति में चंद्रशेखर की पहली बड़ी परीक्षा है और इसमें उन्हें अपना नेतृत्व साबित करना होगा.

त्यागी कहते हैं, "अभी भी दलित समाज के एक बड़े वर्ग की पहली पसंद बसपा ही है, चंद्रशेखर ने युवाओं के बीच अपनी पहचान तो बना ली है, लेकिन उसे वोट में परिवर्तित करने के लिए उन्हें भविष्य की कसौटी पर भी खरा उतरना पड़ेगा. यूपी का चुनाव उनका पहला बड़ा चुनाव है, इसमें चंद्रशेखर की यह परीक्षा होनी है कि जो दलित उनको पसंद करता है वो उन्हें वोट करेगा, या फिर अपनी परंपरागत पार्टी को ही वोट देना पसंद करेगा."

प्रदर्शनों और आंदोलनों में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते रहे चंद्रशेखर ने अपनी अलग पहचान बनाई है. पश्चिमी उत्तर प्रदेश के सहारनपुर से आने वाले चंद्रशेखर दलितों, ग़रीबों और अल्पसंख्यकों के मुद्दे उठाते रहे हैं. नागरिकता संशोधन क़ानून विरोधी प्रदर्शनों में भी उन्होंने बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया था.

त्यागी कहते हैं, "चंद्रशेखर ने दलित युवाओं में अपनी पकड़ मज़बूत की है. दलित समाज का युवा चंद्रशेखर में भविष्य का नेतृत्व देख रहा है. इसकी वजह मायावती का आंदोलन से दूर रहना और वहीं चंद्रशेखर का आंदोलन में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेना है. युवा दलित को लगता है कि उनका नेता वह हो जो उनके मुद्दे उठाए, उनके साथ न्याय के लिए आंदोलन करे, चंद्रशेखर आंदोलन से ही निकले हैं, उनकी आंदोलनकारी छवि ही दलित युवाओं को आकर्षित करती है. हालांकि वो वोट हासिल कर पाएंगे या नहीं, ये चुनावों में ही तय होगा."

समाजवादी पार्टी को होगा नुक़सान?
उत्तर प्रदेश में 403 विधानसभा सीटों में से क़रीब 300 सीटे ऐसी हैं जहां दलित वोटों का अच्छा ख़ासा प्रभाव है. प्रदेश के कई ज़िलों में दलित मतदाताओं की बड़ी आबादी है. विश्लेषक मानते हैं कि यदि अखिलेश यादव चंद्रशेखर को गठबंधन में शामिल नहीं करते हैं और चंद्रशेखर इसे 'दलितों के सम्मान का मुद्दा बनाते हैं तो समाजवादी पार्टी को चुनावों में नुक़सान हो सकता है.

वसीम अकरम त्यागी कहते हैं, 'जहां तक सपा और चंद्रशेखर के गठबंधन न होने का सवाल है तो इससे नुक़सान सपा का ही हुआ है क्योंकि जिस तरह अखिलेश यादव सभी जातियों को साधने की कोशिश कर रहे हैं, उसमें दलित वर्ग को सपा की ओर लाने में चंद्रशेखर एक पुल का काम कर सकते थे, लेकिन वह पुल नहीं बन पाया तो इसका नुक़सान सीधा अखिलेश यादव को होना है. जिस तरह चंद्रशेखर ने अखिलेश पर दलितों के'अपमान' का आरोप लगाया है, जो मीडिया की सुर्खियां भी बना है, इससे कहीं न कहीं अखिलेश यादव की छवि को नुक़सान पहुंचा दिया है."

त्यागी कहते हैं, "यदि अखिलेश और चंद्रशेखर दूर होते हैं तो इसका फ़ायदा बसपा को भी हो सकता है, बहुत संभव है कि दलित समाज अपनी परंपरागत पार्टी को ही वोट करना उचित समझे."

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