संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : हाइवे एक्सीडेंट पर तुरंत मुफ्त इलाज, गडकरी की अच्छी सोच
17-Jan-2022 3:58 PM
‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय :  हाइवे एक्सीडेंट पर तुरंत मुफ्त इलाज, गडकरी की अच्छी सोच

वैसे तो हिंदुस्तान में फसल बीमा हो या स्वास्थ्य बीमा, किसी भी तरह के बीमे के काम में दुनिया भर का फर्जीवाड़ा चलते ही रहता है, और कहीं बीमा कंपनियां भुगतान करने की नीयत नहीं रखतीं, तो कहीं लोग फर्जी बीमा दावा करने के चक्कर में रहते हैं। इन दोनों ही किस्म के नुकसानों के चलते हुए एक तो बीमे का कारोबार बदनाम होता है और दूसरा जिनका जायज हक बनता है उनके दावे भी शक-शुबहे में मरे जाते हैं। लेकिन इसके बीच भी आज राष्ट्रीय स्तर पर, और अलग-अलग प्रदेशों में भी, फसल बीमा और स्वास्थ्य बीमा दोनों खूब प्रचलन में हैं, और स्वास्थ्य बीमा के लिए तो सरकार बीमा कंपनियों को बड़ा भुगतान भी करती हैं, और उन्हीं की वजह से गरीबों को इलाज मिल पा रहा है। यह एक अलग बात है कि सरकार और बीमा कंपनियों के बीच किसी खेल के चलते हुए सरकारी भुगतान अधिक रहता है या कम रहता है, कम से कम गरीब को इलाज मिल जाता है। ऐसे में केंद्र सरकार के राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण ने अभी एक नई योजना की घोषणा की है।

इस विभाग के मंत्री नितिन गडकरी हमेशा से ही बहुत ही मौलिक और अनोखी सूझबूझ के साथ काम करने के लिए जाने जाते हैं। महाराष्ट्र के पीडब्ल्यूडी मंत्री के वक्त से लेकर केंद्र के सडक़ परिवहन मंत्री तक उन्होंने बहुत तेजी से काम किया, अच्छा काम किया, और कई तरह की नई योजनाएं लागू की। उनके मंत्रालय के तहत भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण ने बीमा कंपनियों से बोली मंगवाई है कि देश के चार प्रमुख हाईवे पर कोई एक्सीडेंट होने पर घायल को तुरंत अस्पताल पहुंचाने और उनका इलाज करवाने का इंतजाम बीमा कंपनियां करें। योजना की जानकारी यह है चार प्रमुख सडक़ों पर घायल होने पर बीमा कंपनी की एंबुलेंस तुरंत आसपास के अस्पतालों तक पहुंचाएगी और वहां अगले 48 घंटे तक इलाज का जिम्मा बीमा कंपनी का रहेगा, और इसके लिए 30 हजार रुपये तक के इलाज का भुगतान कंपनी करेगी। हाईवे के आसपास के अस्पतालों से बीमा कंपनियां ही एग्रीमेंट करेंगी। यह समाचार बताता है कि 2013 में मंत्रालय ने गुडग़ांव जयपुर हाईवे पर ऐसे कैशलैस ट्रीटमेंट का इंतजाम किया था जिसमें सौ फीसदी घायलों को आधे घंटे के भीतर अस्पताल पहुंचाया गया था, और इनमें से 50 फीसदी लोग आर्थिक सामाजिक रूप से पिछड़े थे और 80 फीसदी लोगों को अपनी तरफ से एक पैसा भी खर्च नहीं करना पड़ा था।

नितिन गडकरी शायद अकेले मंत्री हैं जो कि मोदी सरकार में पूरे 7 बरस से एक ही विभाग के मंत्री बने हुए हैं। उन्होंने हाईवे को रिकॉर्ड रफ्तार से बनाने का काम भी किया, और फास्ट टैग जैसी कई और योजनाएं भी लागू कीं जिनसे सडक़ों पर रफ्तार बढ़ी है। वे शुरू से ही पहले तो टोल टैक्स के हिमायती रहे कि अगर सडक़ें अच्छी चाहिए तो लोग उनके लिए भुगतान करें, और उसके बाद उन्होंने टोल कलेक्शन के लिए फास्ट टैग जैसी योजना बनाई। ऐसी योजनाएं दुनिया के दूसरे देशों में पहले से चल रही हैं लेकिन हिंदुस्तान में आमतौर पर सरकारें कोई नई बात लागू करने में कतराती हैं, और ऐसे में ही नितिन गडकरी जैसे मंत्री एकदम से अलग दिखते हैं। अब हाईवे की ही बात चल रही है तो कुछ और चीजों पर भी केंद्र और राज्य सरकारों को सोचना चाहिए। अभी हाईवे पर गाडिय़ों की रफ्तार बहुत बढ़ गई है क्योंकि देसी-विदेशी कारें अंधाधुंध रफ्तार वाली आ रही हैं, और सडक़ें भी बेहतर हो गई हैं। लेकिन नशा करके गाड़ी चलाने पर रोका का कोई इंतजाम अभी तक हो नहीं पाया है। ऐसे में अगर देश के टोल नाकों पर गाडिय़ों की अचानक जांच का इंतजाम हो, और अचानक किसी गाड़ी के ड्राइवर की हालत की जांच हो, तो भी दुर्घटनाएं कम हो सकती हैं। लोगों को जब लगेगा कि किसी जांच में वे फंस सकते हैं, और नशे की हालत में मिलने पर कुछ महीनों के लिए उनका लाइसेंस सस्पेंड हो सकता है, तो नशे में गाड़ी चलाना कम होगा। एक्सीडेंट में घायल लोगों के इलाज का बीमा तो ठीक है लेकिन एक्सीडेंट ही घटाए जा सकें और घायल घटाए जा सके तो इससे भी अच्छी बात होगी। इलाज का बीमा अपनी जगह बना रहे, लेकिन हादसों को कम करने के लिए कई तरह की जांच की जरूरत है। यह भी जरूरी है कि गाडिय़ां तेज रफ्तार होती जा रही हैं तो लोग सीट बेल्ट लगाकर ही चलें, यह इंतजाम भी बड़ी आसानी से हो सकता है क्योंकि टोल नाकों के कैमरे गाडिय़ों की फोटो तो खींचते ही हैं और उसी में अगर दिखे कि लोग बिना सीट बेल्ट लगाए हुए हैं, तो उनका जुर्माना भी साथ-साथ उसी फास्ट टैग से कट सकता है। अमेरिका जैसे देश में लंबे समय से ऐसा ही इंतजाम चलता है कि वहां चौराहों पर लगे हुए कैमरे गाडिय़ों की तस्वीरें लेते रहते हैं और कोई भी गलती होने पर जुर्माने की रकम गाड़ी नंबर के साथ जुड़े हुए क्रेडिट कार्ड से कट जाती है, और अक्सर ही कुछ सेकंड के भीतर ही लोगों के मोबाइल पर यह जानकारी आ जाती है कि किस चौराहे पर किस ट्रैफिक नियम उल्लंघन के लिए उनके खाते से कितनी रकम काटी गई है। आज जब टोल नाके पर कैमरे लगे हुए हैं, तो बड़ी आसानी से ऐसे जुर्माना को जोड़ा जाना चाहिए।

नितिन गडकरी ने अभी दो-तीन दिन पहले ही एक और अच्छा काम किया है कि उन्होंने वाहन बनाने वाली कंपनियों से कहा है कि 8 सीटर गाडिय़ों में कम से कम 6 एयरबैग लगाए जाएं ताकि किसी दुर्घटना में मौत या जख्म का खतरा कम किया जा सके। उन्होंने यह भी कहा है कि कम दाम वाले मॉडलों में भी इस बात को अनिवार्य किया जाए। यह बात बहुत समझदारी की इसलिए है कि सुरक्षा को आराम से जोडक़र देखना गलत है कि वह सिर्फ महंगी गाडिय़ों में ही हासिल रहे। एयर बैग और सीट बेल्ट जैसी सुरक्षा सबसे सस्ती गाड़ी की भी बुनियादी जरूरत बनाना चाहिए, और 8 सीटर गाडिय़ों के बजाय केंद्र सरकार को हर किस्म की गाडिय़ों में सीट बेल्ट और एयर बैग लगाने चाहिए ताकि जिंदगी का नुकसान घट सके। आने वाले वक्त में बैटरी से चलने वाली गाडिय़ों की लोकप्रियता बढऩे का दावा नितिन गडकरी ने कई बार किया है।

देश में एक ऐसा हाईवे का ढांचा भी तैयार करना चाहिए जहां पर जगह-जगह बैटरी चार्जिंग का इंतजाम हो, और उतने वक्त तक लोग खा सकें, आराम कर सकें, या कंप्यूटर-इंटरनेट पर काम कर सकें। यह भी इंतजाम करने की कोशिश करनी चाहिए कि गाडिय़ों की बैटरी किस तरह तुरंत बदली जा सके ताकि लोग चार्जिंग खत्म हो रही बैटरियों को छोड़ सकें और पूरी चार्ज बैटरी लेकर आगे बढ़ सके। आने वाले वक्त में सडक़ों पर गाडिय़ों को लेकर, आवाजाही की हिफाजत को लेकर, और सडक़ किनारे की सहूलियतों को लेकर बहुत किस्म की दूसरी योजनाओं की जरूरत है, और एक कल्पनाशील मंत्री के रहने से यह काम बड़ा मुश्किल भी नहीं है। यह देश अब बैटरी की गाडिय़ों की तरफ तेजी से बढ़ रहा है, और इसके लिए जरूरी ढांचा शहरों के भीतर भी जरूरी है, और हाईवे पर भी। फिलहाल नितिन गडकरी को चाहिए कि वे देश भर के लोगों से देश के सडक़ परिवहन को सुधारने के लिए तरह-तरह की सलाह आमंत्रित करें, क्योंकि बहुत से ऐसे लोग हैं जो दुनिया के दूसरे देशों में रह कर आए हैं, और जिन्होंने हिंदुस्तान से बेहतर इंतजाम देखे हुए हैं, ऐसे लोग आज सलाह भेजते हैं तो उसे सरकार को सोचने का सामान भी मिलता है। वैसे नितिन गडकरी कुछ चुनिंदा हाइवे पर तो दुर्घटना-इलाज बीमा लागू करने जा रहे हैं, उस पर राज्य सरकारें भी अपने स्तर पर सोच सकती हैं।
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