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चीन और ताइवान के बीच अगर युद्ध हुआ तो क्या होगा...
17-Jan-2022 6:24 PM
चीन और ताइवान के बीच अगर युद्ध हुआ तो क्या होगा...

चीन के लड़ाकू विमानों ने पिछले साल रिकॉर्ड बनाने के बाद इस साल महज एक पखवाड़े में नौ बार ताइवान की हवाई सीमा में घुसपैठ कर ली है.

घुसपैठ की इन घटनाओं से चीन और ताइवान के बीच तनाव लगातार बढ़ रहा है. इसकी असली वजह ताइवान को 'चीन में मिलाने' का लक्ष्य है.

चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने कहा है कि "ताइवान के साथ चीन का फिर से एकीकरण ज़रूर होगा."

उन्होंने यह लक्ष्य पाने के लिए ताक़त का इस्तेमाल करने की संभावनाओं को ख़ारिज़ नहीं किया.

चीन मानता है कि ताइवान उसका एक प्रांत है, जो अंतत: एक दिन फिर से चीन का हिस्सा बन जाएगा.

दूसरी ओर, ताइवान ख़ुद को एक आज़ाद मुल्क मानता है.

उसका अपना संविधान है और वहां लोगों द्वारा चुनी हुई सरकार का शासन है.

ताइवान दक्षिण पूर्वी चीन के तट से क़रीब 100 मील दूर स्थित एक द्वीप है.

यह ''पहली द्वीप शृंखला'' में मौजूद है, जिसमें अमेरिका समर्थक कई देश स्थित हैं.

अमेरिका की विदेश नीति के लिहाज़ से ये सभी द्वीप काफ़ी अहम हैं.

चीन यदि ताइवान पर क़ब्ज़ा कर लेता है तो पश्चिम के कई जानकारों की राय में, वो पश्चिमी प्रशांत महासागर में अपना दबदबा दिखाने को आज़ाद हो जाएगा.

उसके बाद गुआम और हवाई द्वीपों पर मौजूद अमेरिकी सै​न्य ठिकाने को भी ख़तरा हो सकता है.

हालांकि चीन का दावा है कि उसके इरादे पूरी तरह से शांतिपूर्ण हैं.

चीन से अलग क्यों हुआ ताइवान?
दोनों के बीच अलगाव क़रीब दूसरे विश्वयुद्ध के बाद हुआ.

उस समय चीन की मुख्य भूमि में चीनी कम्युनिस्ट पार्टी का वहां की सत्ताधारी नेशनलिस्ट पार्टी (कुओमिंतांग) के साथ लड़ाई चल रही थी.

1949 में माओत्से तुंग के नेतृत्व में चीनी कम्युनिस्ट पार्टी जीत गई और राजधानी बीजिंग पर क़ब्ज़ा कर लिया.

उसके बाद, कुओमिंतांग के लोग मुख्य भूमि से भागकर दक्षिणी-पश्चिमी द्वीप ताइवान चले गए.

उसके बाद से अब तक कुओमिंतांग ताइवान की सबसे अहम पार्टी बनी हुई है. ताइवान के इतिहास में ज़्यादातर समय तक कुओमिंतांग पार्टी का ही शासन रहा है.

फ़िलहाल दुनिया के केवल 13 देश ताइवान को एक अलग और संप्रभु देश मानते हैं.

चीन का दूसरे देशों पर ताइवान को मान्यता न देने के लिए काफ़ी कूटनीतिक दबाव रहता है.

चीन की ये भी कोशिश होती है कि दूसरे देश कुछ ऐसा न करे जिससे ताइवान को पहचान मिलती दिखे.

ताइवान के रक्षा मंत्री ने कहा है कि चीन के साथ उसके संबंध पिछले 40 सालों में सबसे ख़राब दौर से गुजर रहे हैं.

ऐसा दोनों देशों के आर्थिक संबंधों को मजबूत बनाकर हो सकता है.

लेकिन दोनों देशों में यदि लड़ाई हुई तो ताइवान की सैन्य ताक़त चीन के सामने बौनी साबित होगी.

चीन का अपनी सेना पर सालाना ख़र्च दुनिया में अमेरिका को छोड़कर सबसे ज़्यादा है. उसकी सैन्य ताक़त काफ़ी विविध और विशाल है.

चाहे मिसाइल टेक्नोलॉजी को देखें या नौसेना या वायुसेना को. साइबर हमले करने में भी चीन का मुक़ाबला करना कुछ ही देश के बूते की बात है.

सैन्य ताक़त में चीन का कोई मुक़ाबला नहीं
इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ़ स्ट्रेटेजिक स्टडीज़ (आईआईएसएस) के मुताबिक़, चीन के पास हर तरह के सैनिकों को मिला लें तो वहां 20.35 लाख सक्रिय सैनिक हैं.

वहीं, ताइवान में केवल 1.63 लाख सक्रिय सैनिक हैं.

इस तरह चीन की ताक़त इस मामले में ताइवान से क़रीब 12 गुना ज़्यादा हुई.

बात य​दि थल सेना की करें तो चीन में 9.65 लाख थल सैनिक हैं, जबकि ताइवान में 11 गुना कम केवल 88 हज़ार.

वहीं नौसेना में चीन के पास 2.60 लाख कार्मिक हैं और ताइवान में केवल 40 हज़ार.

चीन की वायुसेना में क़रीब चार लाख लोग हैं, लेकिन ताइवान में केवल 35 हज़ार कार्मिक हैं. इन सबके अलावा, चीन के पास और 4.15 लाख दूसरे सैनिक हैं. वहीं ताइवान के साथ ऐसा नहीं है.

पश्चिम के कई जानकारों का अनुमान है कि दोनों देशो के बीच यदि आमने सामने की भिड़ंत हुई तो ताइवान बहुत कोशिश करके चीन के हमले को थोड़ा धीमा कर सकता है.

उसे अमेरिका से मदद मिल सकती है, जो ताइवान को हथियार बेचता है. हालांकि अमेरिका की औपचारिक नीति ''कूटनीतिक अस्पष्टता'' की रही है. दूसरे शब्दों में कहें तो अमेरिका जानबूझकर अपनी नीति को साफ़ नहीं करता कि हमले की सूरत में क्या और कैसे वो ताइवान की मदद करेगा.

कूटनीतिक तौर पर चीन फ़िलहाल ''एक चीन की नीति'' का समर्थन करता है. इसका मतलब ये हुआ कि अमेरिका की आधिकारिक लाइन है कि बीजिंग सरकार ही असली चीन की प्रतिनिधि है. उसका औपचारिक संबंध ताइवान की बजाय चीन के साथ है.

क्या हालात ख़राब होते जा रहे हैं?
2021 में, चीन ने ताइवान के वायु रक्षा क्षेत्र में अपने लड़ाकू विमान भेजकर उस पर दबाव बनाता हुआ दिखा.

किसी देश का वायु रक्षा क्षेत्र, वो इलाक़ा होता है, जहां देश की रक्षा के लिए विदेशी विमानों को पहचानकर, उन पर निगरानी और नियंत्रण रखा जाता है.

ताइवान ने 2020 में विमानों की घुसपैठ के आंकड़े सार्वजनिक किए. वैसे इस तरह की घुसपैठ में तेज़ी पिछले साल के अक्टूबर में आई.

अक्टूबर 2021 में एक ही दिन में चीन के 56 विमानों को ताइवानी इलाक़े में दाख़िल होने की सूचना मिली.

दुनिया के रोज़ाना इस्तेमाल के इलेक्ट्रॉनिक गैजेटों जैसे फोन, लैपटॉप, घड़ियों और गेमिंग उपकरणों में जो चिप लगते हैं, वे ज़्यादातर ताइवान में बनते हैं.

चिप के मामले में ताइवान फ़िलहाल दुनिया की बहुत बड़ी ज़रूरत है. उदाहरण के लिए 'वन मेज़र' नाम की कंपनी को लें.

अकेले यह कंपनी दुनिया के आधे से अधिक चिप का उत्पादन करती है.

2021 में दुनिया का चिप उद्योग क़रीब 100 अरब डॉलर का था और इस पर ताइवान का दबदबा है.

यदि ताइवान पर चीन का क़ब्ज़ा हो गया तो दुनिया के इतने अहम उद्योग पर चीन का नियंत्रण हो जाएगा.

क्या ताइवान के लोग चिंतित हैं?
चीन और ताइवान के बीच के तनाव के बढ़ जाने के बावजूद हाल के रिसर्च बताते हैं कि इसका ज़्यादा असर वहां के लोगों पर नहीं पड़ा है.

अक्टूबर में ताइवान पब्लिक ओपिनियन फ़ाउंडेशन ने लोगों से पूछा कि क्या वे सोचते हैं कि चीन के साथ युद्ध होकर ही रहेगा. ताइवान के क़रीब 64 फ़ीसदी लोगों ने इसका जवाब 'न' में दिया.

वहीं एक दूसरे रिसर्च से पता चला कि ताइवान के ज़्यादातर लोग ख़ुद को चीनी लोगों से अलग मानते हैं.

नेशनल चेंग्ची यूनिवर्सिटी के एक सर्वे में पता चला कि 1990 की तुलना में आज ताइवान में लोगों के बीच ताइवानी पहचान बढ़ती गई है. लोगों में ख़ुद को चीनी या ताइवानी और चीनी दोनों मानने की प्रवृत्ति पहले से काफ़ी कम हो गई है. (bbc.com)

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