सामान्य ज्ञान
शास्त्र अनुसार पुराणों की संख्या 18 है। जिसमें पहले छह पुराण वैष्णव पुराण हैं, तो छह ब्रह्म और छह शिव पुराण हैं।
वैष्णव पुराण में विष्णु पुराण, भागवत पुराण, नारद पुराण, गरूड पुराण, पद्य पुराण, वराह पुराण शामिल हंै। इन छह पुराणों को वैष्णव पुराण कहा जाता है। इसके पश्चात ब्रह्मा पुराण है। ब्रह्मा पुराण में सर्वप्रथम ब्रह्म पुराण का नाम आता है और उसके बाद ब्रह्माण्ड पुराण, ब्रह्मा वैवर्त पुराण, मार्कण्डेय पुराण, भविष्य पुराण, वामन पुराण आते हैं।
अन्त के छह पुराण, शैव पुराण कहे जाते हैं। इसमें शिव पुराण, लिंग पुराण, स्कन्द पुराण, अग्नि पुराण, मत्स्य पुराण, कूर्म पुराण शामिल हैं।
शिव पुराण में भगवान शिव के अवतार, महिमा और आशुतोष देव से जुड़ी लीला-कथाओं का विवेचन किया गया है। व्यक्ति को जीवन की किस अवस्था में किस प्रकार का आचरण करना चाहिए, शिवपुराण में इसका विस्तार से वर्णन किया गया है। कहा जाता है कि भगवान शिव की शिव पुराण का श्रवण मात्र करने से व्यक्ति को उसके द्वारा किए गये सभी पापों से मुक्ति मिलती है और ऐसा व्यक्ति विष्णु लोक को प्राप्त करता है।
शिवपुराण में चौबीस हजार श्लोक हैं। तथा इसका प्रत्येक श्लोक व्यक्ति को जीवन जीने की कला सिखाता है। यह ग्रंथ व्यक्ति को भक्ति, ज्ञान और वैराग्य का भाव स्पष्ट करता है।
शिव पुराण में आठ संहिताएं है,पहली शिव संहिता विश्वेश्वर संहिता, रुद्र संहिता, शतरुढ संहिता, कोटिरुद्र संहिता, उमा संहिता, कैलास संहिता, वायु संहिता पूर्व भाग, वायु संहिता उत्तर भाग आदि।