विचार / लेख

ईश्वर को हटा दिया जाए तब भी एक धर्म...
20-Jan-2022 11:32 AM
ईश्वर को हटा दिया जाए तब भी एक धर्म...

-संजय श्रमण

 

हम यह मानकर चलते हैं कि धर्म का नाश जरूरी है। कई लोग इसे संभव मानते भी हैं। लेकिन भारतीय लोगों के मनोविज्ञान का अध्ययन करें तो भारत के लिये कम से कम यह संभव नहीं है।

धर्म का नाश न तो संभव है और ना ही जरूरी है। हाँ ईश्वर, आत्मा और पुनर्जन्म जैसे तीन महत्वपूर्ण अंधविश्वासों का नाश हो सकता है, होना भी चाहिए लेकिन धर्म किसी न किसी रूप मे बना रहेगा, बना रहना भी चाहिए। ईश्वर के या अदृश्य के नाम पर जो गलत होता आया है उससे धर्म को अनिवार्य रूप से जोडऩा गलत है।

भारत में बौद्ध, आजीवक, जैन और अन्य प्राचीन धर्म ईश्वर के बिना ही नहीं बल्कि ईश्वर के नकार पर खड़े थे। बौद्ध धर्म तो ईश्वर ही नहीं बल्कि आत्मा को भी नहीं मानता।

ईश्वर को हटा दिया जाए तब भी एक धर्म होता है जिसमे नैतिकता सर्वोपरि हो सकती है। धर्म का नाश और ईश्वर का नाश दो भिन्न बातें हैं। ईश्वर के साथ और ईश्वर के बाद भी धर्म होता है क्योंकि धर्म असल में समाज के जीवन की व्यवस्था का नाम है। उसे धर्म का नाम न भी दिया जाए तब भी समाज कोई न कोई व्यवस्था खोजेगा ही। इस तरह समाज को किसी न किसी महा-कथा या महा-सिद्धांत की जरूरत हमेशा बनी रहेगी।
 
भारत ही नहीं दुनिया में सभी समाजों और समुदायों को किसी न किसी महाकथा या महा-सिद्धांत या ग्रैंड नेरेटिव की जरूरत होती है, वह ग्रैंड नेरेटिव धर्म के रूप में सबसे आकर्षक ढंग से हमारे सामने आता है।

कम से कम भारत के बहुजन इस ग्रैंड नेरेटिव की शक्ति का उपयोग करने से स्वयं को दूर नहीं रख सकते। धर्म को नकारने की सभी रणनीतियाँ ब्राह्मणवाद को ही मजबूत करती हैं। धर्म के विरुद्ध लड़ाई कम से कम बहुजनों के लिए एक अन्य ही विशेष अर्थ रखती है।

ग्लोबल नास्तिकता के प्रोजेक्ट मे जो पोजीशन ग्लोबल एलिट या ग्लोबल वंचित या यूरोपीय वंचित ले सकते हैं वह उनकी अपनी जगह ठीक हो सकती है लेकिन ग्लोबल एलीट/वंचित और भारतीय बहुजनों के बीच कोई अनिवार्य साम्य नहीं है।

इसीलिए नास्तिकता का ग्लोबल प्रोजेक्ट और बहुजनों की मुक्ति का भारतीय प्रोजेक्ट दो भिन्न बाते हैं।

इन दो प्रोजेक्ट्स को एक या साझे प्रोजेक्ट की तरह देखना गलत है। इससे बड़ा कन्फ्यूजन पैदा हुआ है। इस कन्फ्यूजन में भारतीय बहुजनों का काफी नुकसान हो चुका है।

अब भारत के बहुजनों को अपनी विशिष्ठ समस्या के अनुरूप अपनी  विशिष्ट भारतीय संदर्भ की वैचारिकी और रणनीति को पृथक करते हुए उसकी घोषणा करनी होगी।

 

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